ऊपर दिए गए फोटो में लोहे में लगी जंग देखिए. विज्ञान में इसे लोहे का ऑक्सीकरण (या उसका प्रभाव) कहते हैं.
सांस में हवा के साथ ऑक्सीजन लेने पर यही घटना हमारी कौशिकाओं में मौजूद माइटोकॉंड्रिया (mitochondria) में होती है. माइटोकॉंड्रिया को कोशिका का पॉवर-हाउस कहते हैं क्योंकि यह भोजन से प्राप्त होनेवाले ग्लूकोज़ को ATP ऊर्जा में बदलता है. हमारे शरीर में बहुत सूक्ष्म स्तर पर इसी तरह की अन्य बहुत सी प्रक्रियाएं होती रहती हैं जिनमें ऑक्सीकरण की घटना होती रहती है. यही कारण है कि ऑक्सीजन हमारे लिए बहुत महत्वपूर्ण गैस है.
क्या हम ऑक्सीजन के बिना रह सकते हैं? बिल्कुल नहीं. लेकिन यह बहुत बड़ी विसंगति है कि एक निश्चित सीमा से अधिक मात्रा में ऑक्सीजन हमारे शरीर को गंभीर नुकसान पहुंचा सकती है.
ऑक्सीजन का एक अणु इसके दो परमाणुओं से मिलकर बनता है. ऑक्सीजन से होने वाली विषाक्तता (poisoning) अधिक सांद्रता (high concentration) में आण्विक ऑक्सीजन के शरीर में जाने से होती है. ऑक्सीजन की मात्रा में बढ़ोत्तरी का शरीर पर अनेक प्रकार से प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है.
इस बुरे प्रभाव का कारण क्या है? इसे समझने के लिए हमें यह जानना ज़रूरी है कि फ़्री रेडिकल (free radicals) क्या होते हैं. फ़्री रेडिकल ऑक्सीजन के अत्यधिक सक्रिय आयन परमाणु या अणु होते हैं जिनमें परमाणु की बाहरी कक्षा में मात्र एक अकेला इलेक्ट्रॉन होता है. यह अकेला इलेक्ट्रॉन उन परमाणुओं या अणुओं को अस्थिर और प्रतिक्रियाशील बना देता है. ये फ़्री रेडिकल शरीर की कोशिकाओं में स्थित दूसरे अणुओं और परमाणुओं से इलेक्ट्रॉन चुराने या खींचने लगते हैं जिससे कोशिकाओं , प्रोटीन, वसा और DNA की संरचना में परिवर्तन होने लगता है. ये हानिकारक परिवर्तन उनकी कार्यप्रणाली को प्रभावित करते हैं.
माइटोकॉंड्रिया में फ़्री रेडिकल के बनने की घटना बहुत सामान्य है और यह हमेशा चलती रहती है. जब ये फ़्री रेडिकल संख्या में कम होते हैं तो शरीर इनका मुकाबला करने के लिए एंटी-ऑक्सीडेंट (antioxidants) बनाता रहता है. लेकिन सांस के द्वारा अधिक ऑक्सीजन जाने पर फ़्री रेडिकल की संख्या भी बढ़ जाती है. ऐसे में उनका सामना करने के लिए शरीर में एंटी-ऑक्सीडेंट की पर्याप्त मात्रा उपलब्ध नहीं होती.
शरीर में अधिक ऑक्सीजन जाने से दूसरी तरह के फ़्री रेडिकल जैसे नाइट्रिक ऑक्साइड (nitric oxide), पेरॉक्सीनाइट्राइट (peroxynitrite) और ट्राइऑक्सीडेन (trioxidane) भी बनने लगते हैं जो हमारे DNA को नुकसान पहुंचाते हैं.
शरीर में ऑक्सीजन की मात्रा बढ़ने से उन अंगों को सीधा-सीधा नुकसान पहुंचता है जिन्हें रक्त के माध्यम से अधिक ऑक्सीजन मिलती है. मस्तिष्क और फेफड़े जैसे अत्यधिक महत्वपूर्ण अंगों को नुकसान पहुंचने से जीवन संकट में आ सकता है.
जैसा कि ऊपर बताया गया है, हमारा शरीर ऑक्सीजन से उत्पन्न होनेवाले फ़्री रेडिकल का सामना करने के लिए एंटी-ऑक्सीडेंट बनाता रहता है लेकिन बहुत ही धीरे धीरे हर समय हो रहे नुकसान के परिणामस्वरूप शरीर बूढ़ा होते-होते एक दिन मर जाता है. बहुत से वैज्ञानिक यह मानते हैं कि ऑक्सीजन ही हमें बूढ़ा कर देती है. यही कारण है कि आजकल लोग ऐसे आहार और पोषक तत्व खाना चाहते हैं जिनमें एंटी-ऑक्सीडेंट अधिक मात्रा में हों.
शुद्ध ऑक्सीजन हमारे शरीर को पल भर में ही ऑक्सीकृत कर सकती है. यह एक दुर्लभ संयोग है कि जिस हवा में हम सांस लेते हैं उसमें ऑक्सीजन की मात्रा केवल 20.95% है और नाइट्रोजन की मात्रा 78.09% है. नाइट्रोजन हमारे लिए हानिकारक गैस नहीं है और वातावरण में उसकी इतनी अधिक मात्रा होने से ऑक्सीजन के हानिकारण प्रभाव का खतरा कम हो जाता है. (featured image)
जरूरी अच्छी जानकारी दी गई है
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