यह बड़ी सामान्य सी बात है कि हमें बीमार करके वायरस को किसी प्रकार का लाभ नहीं होता. वे फ़ायदे में तो तब रहते जब वे हमें स्वस्थ बनाते. हमें बीमार करके वायरस को सिर्फ एक ही लाभ होता है – वे विभाजित होकर हमारे भीतर अपनी संख्या बढ़ाते जाते हैं ताकि वे अधिक-से-अधिक मनुष्यों तक फैल सकें.
जब हम बीमार होते हैं तो हम घर में कैद होकर रह जाते हैं. हम ज्यादा चलते-फिरते नहीं हैं. हम बीमार दिखते हैं और दूसरे लोग भी हमारे बहुत पास तक नहीं आते. किसी वायरस के दृष्टिकोण से सोचें तो ये सारी परिस्तिथियां उसके फायदे में नहीं होतीं. यदि हम बीमार होकर दूसरे लोगों से संपर्क सीमित कर लेंगे तो वायरस को नए-नए शिकार कैसे मिलेंगे?
इस स्थिति में बेचारे वायरस को कुछ समझौता करना पड़ता है. ऩए शिकारों तक पहुंचने के लिए इसे अपनी बहुत सारी प्रतियां (copies) बनानी पड़ती हैं. प्रतियां बनाने के लिए यह पहले हमारे शरीर की कोशिकाओं में प्रवेश करता है फिर उनकी मशीनरी के मुताबिक खुद को बदल लेता है और अपनी प्रतियां बनाने लगता है. फिर ये प्रतियां उन कोशिकाओं को तोड़कर बाहर निकलती हैं. इन टूटी कोशिकाओं के नुकसान की भरपाई करने के लिए हमारा शरीर नई कोशिकाएं तेजी से बनाता है. इस प्रक्रिया में हमारे अंगों को नुकसान पहुंचता है. वायरस द्वारा कोशिकाओं को क्षति पहुंचाना सामान्यतः बीमारी के होने का प्रमुख कारण नहीं होता.
हमारी कोशिकाएं वायरस के हमले का विरोध करती हैं. इससे हमारा प्रतिरक्षा तंत्र (immune system) सक्रिय हो जाता है जो हमारे शरीर का तापमान बढ़ा देता है. वायरस शरीर के तापमान के बढ़ने को पसंद नहीं करते क्योंकि वे कम तापमान पर अपनी संख्या अधिक तेजी से बढ़ा सकते हैं). प्रतिरक्षा तंत्र शरीर में शोथ (inflammation) उत्पन्न करता है जिससे वायरस और उनसे प्रभावित कोशिकाएं नष्ट होने लगती हैं. हमारा शरीर भी हर संभव मार्ग से वायरसों को बाहर निकालने का प्रयास करता है जो कि वायरस के लिए वरदान साबित होता है क्योंकि इससे उनको नए शिकार तक पहुंचने का मौका मिलता है क्योंकि हमारे शरीर के भीतर उन्हें प्रतिरोध का सामना करना पड़ता है. हमारे प्रतिरक्षा तंत्र, वायरस, और उनसे प्रभावित होनेवाले ऊतकों (tissues) के बीच होनेवाली खींचतान से हमारे शरीर में वायरस से संक्रमित होने के लक्षण प्रकट होने लगते हैं जिससे हम बीमार होने का अनुभव करते हैं.
हमारे शरीर के भीतर बहुत तेजी से बढ़ने वाला वायरस प्रतिरक्षा तंत्र को भी तेजी से सक्रिय कर देता है, जिसके परिणामस्वरूप वायरस जल्दी ही हमारे शरीर से निकलकर दूसरों को संक्रमित करता है. इसके विपरीत धीरे-धीरे बढ़ने वाला वायरस देर से नए शिकार तक पहुंचता है. वायरस इस समस्या का समाधान कई तरह से करते हैं. कुछ वायरस जैसे साधारण सर्दी-जुकाम के वायरस बहुत आसानी से आते-जाते रहते हैं. वे हमारे नाक और गले को प्रभावित करते हैं और वहां तेजी से बढ़ते हैं. ये वायरस यह मानकर चलते हैं कि हमारा प्रतिरक्षा तंत्र उन्हें शीघ्र ही परास्त कर देगा और वे एक शिकार से दूसरे शिकार तक फैलने के लिए अधिक प्रयास नहीं करते.
कुछ दूसरी तरह के वायरस जैसे खतरनाक बीमारी ईबोला (ebola) का वायरस हमें बहुत तेजी से गंभीर रूप से बीमार कर सकता है. साधारण सर्दी-जुकाम के विपरीत ये वायरस शिकार के शरीर के बहुत से ऊतकों को प्रभावित करते हैं. उनकी रणनीति हमें जल्दी-से-जल्दी वायरसों से ठूंसकर भरे और रिसते हुए पैकेट जैसा बनाने की होती है और वे यह उम्मीद करते हैं कि यह पैकेट जल्द ही किसी और के सिर पर फट जाए. वास्तव में यह एक अच्छी रणनीति नहीं है क्योंकि आधुनिक विश्व में सभी की जानकारियों का स्तर बहुत अच्छा है और कोई भी व्यक्ति ईबोला के उस मरीज के पास नहीं जाना चाहेगा जिसके शरीर के बहुत से हिस्सों से गंदा स्त्राव हो रहा हो.
इनके अलावा बहुत अलग स्थिति में वे वायरस हैं जो सैक्स द्वारा (Sexually transmitted infections, STIs) फैलते हैं. जेनिटल हरपीज़ (genital herpes) वायरस यही चाहते हैं कि उनका शिकार बहुत आकर्षक शारीरिक अवस्था का हो. वे चाहते हैं कि उनका शिकार स्वच्छंद प्रकृति का हो और कम-से-कम समय में अधिक से अधिक व्यक्तियों से संभोग करने में रूचि लेता हो और इसमें सक्षम हो. यदि ऐसे व्यक्ति के जननांगों से इन्फ़ेक्शन का बदबूदार स्त्राव हो रहा हो तो वायरस के लिए यह अच्छी खबर नहीं है.
इसलिए हर्पीज़ और इस प्रकार के STIs के वायरस बहुत धीरे-धीरे अपना काम करते हैं. उनकी कार्यप्रणाली के बहुत सुस्त होने से उन्हें अपने लक्षणों को शिकार के भीतर लंबे समय तक छुपाए रखने में मदद मिलती है. इस बीच उनका शिकार भीतर पलते खतरे से अनजान होकर उन्हें यहां-वहां फैलाता रहता है. पुरुषों का कुख्यात यौन रोग सिफ़लिस (syphilis, इसे हिंदी में उपदंश, सूजाक, या फिरंग जैसे नामों से जाना जाता है) इसी प्रकार से कम आक्रामक होता जा रहा है. कई पीढ़ियों पहले यह बहुत उग्रता से फैलकर अपने मरीजों को तेजी से बदसूरत बनाकर पागल कर देता था लेकिन अब सिफ़लिस के मरीजों में रोग के लक्षण संक्रमण के कई वर्ष बाद धीरे-धीरे प्रकट होते हैं.
कुछ STIs के वायरस अपने शिकार व्यक्तियों के यौनसुख जीवन को निर्बाध लंबा बनाए रखने की अनूठी रणनीति पर काम करते हैं. इसके लिए वे उन लक्षणों को दबाते हैं जिनसे प्रतिरक्षा तंत्र हरकत में आकर संक्रमित कोशिकाओं को नष्ट कर सकता है. हमारा प्रतिरक्षा तंत्र केवल संक्रमण से मुकाबला ही नहीं करता बल्कि कोशिकाओं को एक सीमा से अधिक बढ़कर कैंसर बनने से भी रोकता है. क्या आपको पैपिलोमा (human papillomavirus या HPV), गर्भाशय के कैंसर, ओरस सैक्स, और गले के कैंसर में कुछ कनेक्शन दिखता है?
चलते-चलते यहां एक बात स्पष्ट कर दूं कि वायरस और कोशिकाओं में किसी प्रकार की भावनाएं या पसंद-नापसंद नहीं होती. ऐसे शब्द केवल रूपक (metaphor) की तरह प्रयुक्त किए गए हैं. वायरस और बैक्टीरिया उसी तरह से पलते-बढ़ते हैं जैसा विकासवाद ने उन्हें बना दिया है.
तो, इस वायरस कथा का सार यह है कि वायरस को हमें बीमार बनाकर कुछ नहीं मिलता. हम उनके लिए सिर्फ एक होस्ट (host) हैं. (featured image, Ebola Virus)