नासा ने 1977 में सौरमंडल का अध्ययन करने के लिए अंतरिक्ष में विपरीत दिशाओं में दो अंतरिक्ष यान भेजे थे. इन्हें वॉयेजर प्रोग्राम (Voyager program) के अंतर्गत वॉयेजर 1 और 2 का नाम दिया गया. उस काल में कई ग्रहों के अनुकूल संरेखण (favorable alignment) की स्थिति उत्पन्न हो रही थी जिसका लाभ उठाने के लिए ये दो यान भेजे गए. इन यानों का मूल उद्देश्य बृहस्पति और शनि ग्रहों का अध्ययन करना था लेकिन वॉयेजर 2 ने यूरेनस और नेपच्यून के बारे में भी कई जानकारियां दीं. दोनों वॉयेजर सौरमंडल की बाहरी सीमा हेलियोस्फेयर (heliosphere) को पार करके अंतर्तारकीय अंतरिक्ष (interstellar space) में प्रवेश कर चुके हैं. उनके मिशन की सीमा-अवधि तीन बार बढ़ाई गई है और वे अभी भी उपयोगी वैज्ञानिक डेटा हमें भेज रहे हैं. वॉयेजर 2 के सिवाय कोई दूसरा यान अभी तक यूरेनस और नेपच्यून से होकर नहीं गुजरा है.
25 अगस्त 2012, को वॉयेजर 1 से मिले डेटा से यह पता चला कि यह पहला मानव-निर्मित ऑब्जेक्ट है जो अंतर्तारकीय अंतरिक्ष में प्रवेश कर गया है. इस प्रकार यह हमारी वह वस्तु बन गया है जो हमसे सबसे अधिक दूरी पर है. 2013 तक वॉयेजर 1 सत्रह किलोमीटर प्रति सेकंड की गति से सूर्य से दूर जा रहा था.
लेकिन यह प्रश्न उठता है कि इन दोनों यानों के साथ अंततः क्या होगा? इन यानों की किस्मत में क्या लिखा है?
वर्ष 2020 के बाद दोनों यानों को प्लूटोनियम 238 (plutonium 238) से ऊर्जा मिलनी बंद हो जाएगी. यह ऊर्जा इन यानों की RTGs (radioisotope thermoelectric generators) को चलाती है. नासा के इंजीनियर एक-एक करके इनके अनेक मॉड्यूल्स और क्रियाकलापों को बंद करते जाएंगे ताकि बची-खुची ऊर्जा से ये स्पेक्ट्रोस्कोपिक, मैग्नेटिक और प्लाज़्मा डेटा उपलब्ध करा सके. यह ऊर्जा उतनी ही होगी जितनी किसी बच्चे की छोटी सी LED रिस्ट-वॉच से मिलती है.
2025 तक दोनों वॉयेजरों की सारी ऊर्जा समाप्त हो जाएगी. उसके बाद ये अंतर्तारकीय अंतरिक्ष में बिना किसी अवरोध के आगे बढ़ते जाएंगे. ये दोनों अलग-अलग तारा समूहों की ओर जा रहे हैं, वॉजेयर 1 चालीस हजार वर्ष बाद ग्लीस 445 (Gliese 445) नामक तारे के 1.6 प्रकाश वर्ष दूर से गुजरेगा. वॉजेयर 2 साइरियस (Sirius) तारे की दिशा में जा रहा है और तीन लाख वर्ष बाद यह उससे 4.3 प्रकाश वर्ष दूर होगा. दोनों वॉजेयर इस समय लगभग 55,000 किलोमीटर प्रति घंटे की गति से आगे बढ़ रहे हैं. यदि वे किसी अन्य वस्तु जैसे कोई अंतरिक्षीय पिंड से नहीं टकराते हैं तो लाखों वर्षों तक आगे बढ़ते रहेंगे. इस बात की संभावना बहुत कम है कि वे किसी तारे के गुरुत्व के प्रभाव में आकर उसकी परिक्रमा करने लगें.
ऊपर दी गई फोटो ऊमुआमुआ (Oumuamua) की है.
ऊमुआमुआ पहला ऐसा ऑब्जेक्ट है जो सौरमंडल में गहन अंतरिक्ष से आया है. इतना तो निश्चित है कि यह UFO नहीं है हालांकि इसका आकार बहुत रोचक है. इसका वास्तविक नाम 1I/2017 U1 है और ऊमुआमुआ हवाई भाषा का शब्द है जिसका अर्थ है “बहुत दूर से आनेवाला संदेशवाहक”. यह चौथाई मील लंबी चट्टान लाखों वर्षों से अंतरिक्ष में भ्रमण कर रही है और यहां-वहां भटकते हुए यह सौरमंडल आ पहुंची. इसकी गति 1,50,000 किलोमीटर प्रति घंटा अर्थात वॉयेजरों की गति की दो गुनी से भी अधिक है. 9 सितंबर 2017 के दिन यह सूर्य के सबसे निकट था और वॉयेजरों की ही भांति यह भी सूर्य के गुरुत्व से आजाद है क्योंकि उल्काएं धूमकेतुओं और क्षुद्र-ग्रहों की तरह सूर्य की परिक्रमा नहीं करतीं. ऊमुआमुआ अब अंतरिक्ष की अपनी अनिर्धारित यात्रा पर आगे निकल गया है.
वॉयेजरों के साथ भी ऐसा ही होने की संभावना है. वे भी दूसरे तारों के सिस्टम्स से टूरिस्ट की तरह गुजरेंगे.
लेकिन अंततः उनके साथ क्या होगा? क्या कभी एलियंस उन्हें अपने कब्जे में ले लेंगे? हम सच में इस बारे में कुछ नहीं कह सकते. हम कुछ नहीं जानते.
हम जो बात जानते हैं वह यह है कि ये दोनों यान हमेशा अाकाशगंगा मंदाकिनी में ही रहेंगे. हमारा सौरमंडल लगभग 8,25,000 किलोमीटर प्रति घंटे की गति से आकाशगंगा के केंद्र की परिक्रमा कर रहा है. यह गति वॉयेजरों की वर्तमान गति की 10 गुनी से भी अधिक है. इसका अर्थ यह है कि कुछ करोड़ वर्षों में वॉयेजर एक बार फिर से हमारे बहुत निकट आ जाएंगे. उस समय तक पृथ्वी पर से तो मनुष्यों का खात्मा हो चुका होगा, लेकिन शायद हम आकाशगंगा के कोने-कोने के ग्रहों तक पहुंच चुके होंगे. ऐसे में हो सकता है कि कभी हम ही अतीत में छोड़े गए अपने इन अंतरिक्ष यानों से दोबारा संपर्क स्थापित करें. तब हम यह पाएंगे कि इन दोनों यानों पर परग्रहियों के लिए रखे गए संदेशों वाले गोल्डन रिकॉर्ड्स वास्तव में हमने अपने लिए ही भेजे थे.
ऐसा जेफ़ मवांगी ने क्वोरा पर लिखा. (featured image) This artist’s impression shows Oumuamua.
रोचक जानकारी दी गई है……
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रोचक…..
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