सबसे पहले तो हम यह जान लें कि विज्ञान की भाषा में जलने का क्या अर्थ है. विज्ञान कहता है कि ऑक्सीजन के साथ किसी तत्व या पदार्थ की होनेवाली प्रतिक्रिया को जलना कहते हैं. विज्ञान की शब्दावली में इसे ऑक्सीकरण (oxidation) कहते हैं. अपने रोजमर्रा के अवलोकनों के आधार पर हम चीजों को जलता हुआ तब मानते हैं जब हम इनमें से लौ या लपट निकलते देखते हैं, लेकिन आण्विक स्तर पर यह सही नहीं है.
अब कल्पना कीजिए आपके घर के किसी कोने में पड़े लोहे के पुराने सामान की. इसमें निकल रही लाल-भूरी पपड़ियों को हम जंग कहते हैं. लोहे को जंग वायुमंडलीय हवा में मौजूद ऑक्सीजन से प्रतिक्रिया करने के कारण लगती है. यह भी एक प्रकार का जलना ही है लेकिन इसमें हमें लपट नहीं दिखाई देती.
किसी वस्तु के जलने पर हमें लपट क्यों दिखाई देती है? जब किसी पदार्थ को जलाने पर उसका तापमान उसके ज्वलनांक से अधिक हो जाता है तो उसमें आग लग जाती है. पदार्थ को उसके ज्वलनांक के ताप के ऊपर पहुंचने के लिए अपने आसपास से बहुत अधिक ऊष्मा चाहिए होती है.
सामान्य मिथ्या धारणा यह है कि धातुओं में आग नहीं लगती. अधिकांश धातुएं जल सकती हैं. वास्तविकता यह है कि जब धातुएं जलना शुरु करती हैं तो बहुत तेजी से जलती हैं और उनमें लगी आग को बुझाना कठिन होता है. धातुओं में लगी आग से तो दूर रहने में ही समझदारी है.
हम सामान्यतः धातुओं को जलते इसलिए नहीं देखते क्योंकि उनके भीतर हवा नहीं जा पाती. धातुओं की ऊपरी सतह ऑक्सीजन से प्रतिक्रिया करती है और वहां एक अवरोध बन जाता है जिससे ऑक्सीजन धातु की भीतरी सतहों तक नहीं जा पाती इसलिए धातुएं आंच नहीं पकड़तीं. यदि हम धातु को ऐसा स्वरूप दें कि उनके भीतर हवा पहुंच सके (जैसे कि हवा में बिखरा हुआ धातु का पाउडर या बहुत बारीक स्टील-वूल (steel wool) तो इनमें आग बहुत आसानी से लग सकती है और उस आग को बूझाना कठिन हो सकता है. उन फैक्टरियों में आग लगने का खतरा बहुत होता है जहां धातु का चूर्ण बनाया जाता है. यदि हवा में धातु की धूल बहुत ज्यादा मात्रा में उड़ रही हो तो वहां विशाल आग का गोला किसी भी समय भभक सकता है.
धातु की तुलना में लकड़ी के आसानी से जलने का कारण यह है कि लकड़ी वास्तव में जलती नहीं है बल्कि गैस बनकर उड़ती रहती है. जब हम लकड़ी को जलाने का प्रयास करते हैं तो उसमें मौजूद यौगिकों के अणु टूटकर ज्वलनशील गैसों में बदलने लगते हैं. ये गैसें हवा में मिलकर जलने लगती हैं. लकड़ी तब तक गैसों में बदलती रहती है जब तक यह सुलगती या जलती रहती है और गैसों के निकलते रहने के कारण इसमें लगी आग बुझ नहीं पाती. धातुएं इस प्रकार से अणुओं में नहीं टूटतीं और उन्हें वाष्पीभूत होने के लिए बहुत अधिक ऊंचा तापमान लगता है इसलिए उनमें सामान्यतः आग नहीं लगती. यदि धातुओं को जलने के लिए आदर्श परिस्तिथियां मिल जाएं तो उन्हें जलते देखना कोई अच्छा विचार नहीं है क्योंकि उनमें लगी आग बहुत खतरनाक होती है. (featured image)
अति उत्तम लेख है…..
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