अधिकांश तारे जब मरते हैं तो गायब नहीं हो जाते. उनके केंद्र में ईंधन समाप्त हो जाने के कारण नाभिकीय संलयन की प्रक्रिया रुक जाती है. उनका द्रव्यमान और गुरुत्व बना रहता है, वह नष्ट नहीं होता.
कुछ तारों की मृत्यु किसी विध्वंसकारी घटना जैसे किसी अन्य बड़े पिंड से टकराने के कारण होती है. इस स्थिति में उनके द्रव्यमान का बहुत बड़ा अंश बिखर जाता है और उनके ग्रह अपने परिक्रमा पथों से विचलित हो जाते हैं. कभी-कभी इतनी उग्र टक्करों से परिणामस्वरूप ऐसे बहुत से ग्रह धमाके में उड़कर बिखर जाते हैं इसलिए उन्हें कहीं और बचकर जाने का मौका नहीं मिल पाता.
हमारे मामले में सूर्य अपनी मृत्यु के निकट जाने पर फूलता जाएगा और लाल दानव (Red Giant) तारा बन जाएगा. इस प्रक्रिया में यह आंतरिक ग्रहों (बुध से मंगल तक) को निगल जाएगा. ये आंतरिक ग्रह सूर्य की सर्पीली करते-करते उसमें समा जाएंगे. जो बाहरी ग्रह सूर्य का भोजन बनने से बचे रह जाएंगे वे अपने परिक्रमा पथों पर बेरोकटोक घूमते रहेंगे. अंततः सूर्य अपनी बाहरी पर्त को छिटककर श्वेत वामन (white dwarf) तारा बन जाएगा. यदि ग्रह श्वेत वामन बन रहे तारे से निकलती गैस की प्रचंड बलशाली धारा को सह लेंगे तो संभवतः ब्रह्मांड के अंत तक अपने तारे के साथ बने रहेंगे.
सूर्य से बहुत बड़े तारे विराट सुपरनोवा के रूप में फूट जाते हैं और अपने ग्रहों को नष्ट कर देते हैं. ये बहुत दूर-दूर के ग्रहों को नष्ट करने में सक्षम होते हैं. सुपरनोवा से बहुत दूर स्थित ग्रह उसके गर्म गैसों के बादलों से बच सकते हैं लेकिन वे नए बने न्यूट्रॉन तारे, पल्सार, या ब्लैक होल की परिक्रमा उसी तरह करते रहते हैं जैसे वे पहले तारे की परिक्रमा करते थे.
दो तारों के बीच होनेवाली किसी भी प्रकार की टक्कर या उनमें होनेवाले विस्फोट को झेल चुके ग्रहों के परिक्रमा पथ तारे के द्रव्यमान में आनेवाले परिवर्तन के कारण कम या अधिक हो जाते हैं. ऐसे ग्रहों के परिक्रमा पथ कभी-कभी धूमकेतु (comet) की तरह बहुत अधिक उत्केंद्री (eccentric) भी हो जाते हैं. कभी-कभी ऐसे ग्रह अपने तारे से बहुत दूर छिटककर अथाह अंतरिक्ष में अनाथ ग्रह की तरह घूमते रहते हैं और अपने तारे के पास लौटकर कभी नहीं आते. (featured image)