खगोलशास्त्र में रूचि लेनेवाले पाठक ब्रह्मांड के सबसे बड़े तारों के बारे में जानने में उत्सुक रहते हैं. ब्रह्मांड के सबसे बड़े तारों को जान पाना कठिन है क्योंकि ब्रह्मांड असीम है. हम तो केवल अपनी आकाशगंगा के अरबों तारों के बारे में भी अच्छे से नहीं जानते. बहरहाल, हमारी आकाशगंगा के सबसे बड़े तारे लाल दानव सुपरजाइंट या हाइपरजाइंट तारे हैं. इनमें से यूवाई स्कूटी (UY Scuti) नामक तारा वर्तमान में सबसे बड़े तारों की लिस्ट में नंबर 1 पर है. यह तारा पृथ्वी से 9,500 प्रकाश वर्ष दूर स्कूटम (Scutum) तारामंडल में स्थित है. इस हाइपरजाइंट तारे का औसत व्यास सूर्य के व्यास का लगभग 1,708 गुना है. इस प्रकार इस तारे का व्यास 2.4 अरब किलोमीटर या 15.9 AU है. 1 AU सूर्य से पृथ्वी की दूरी लगभग 15 करोड़ किलोमीटर होती है. इस प्रकार इस तारे का आयतन सूर्य के आयतन का 5 अरब गुना है.
यह तो बात हुई सबसे बड़े तारे की, लेकिन सबसे छोटा तारा कौन सा है?
छोटे लाल बौने (red dwarfs) तारे सबसे छोटे तारे होते हैं. ये वे तारे हैं जिनका द्रव्यमान सूर्य के द्रव्यमान का लगभग 50% होता है और ये सूर्य से छोटे होते हैं. अब तक देखे गए सबसे हल्के लाल बौने तारे का द्रव्यमान सूर्य के द्रव्यमान का केवल 7.5% ही है. इतना कम आकार होने पर भी इन तारों के भीतर इतना ताप और दाब होता है कि उनमें नाभिकीय संलयन हो सकता है.
लाल बौने तारे का एक अच्छा उदाहरण है सूर्य के सबसे निकट स्थित तारा प्रोक्सिमा सैंटोरी (Proxima Centauri). यह तारा सूर्य से केवल 4.2 प्रकाश वर्ष दूर है. इसमें सूर्य के द्रव्यमान का केवल 12% है और इसका आकार सूर्य के आकार का लगभग 14.5% है. इस सारे का व्यास केवल 2,00,000 किलोमीटर है. तुलना के लिए बता दें कि ब्रहस्पति ग्रह का व्यास 1,43,000 किलोमीटर है. इस प्रकार यह तारा ब्रहस्पति से थोड़ा ही बड़ा है.
लेकिन यह अब तक देखा गया सबसे छोटा तारा नहीं है. सबसे छोटे तारे का नाम OGLE-TR-122b है. यह तारा भी एक लाल बौना तारा है और एक बाइनरी तारक सिस्टम (binary stellar system) का सदस्य है. इस तारे का व्यास सूर्य के व्यास का केवल 12% है जो कि लगभग 1,67,000 किलोमीटर है अर्थात ब्रहस्पति ग्रह के व्यास से केवल 20% अधिक है. लेकिन आपको यह जानकर हैरानी होगी कि इस तारे का द्रव्यमान ब्रहस्पति के 100 गुना से भी अधिक है.
अंतरिक्ष में इससे छोटे और भी कई तारे हो सकते हैं लेकिन छोटी चीजों को खोज पाना हमेशा से ही कठिन रहा है. सैद्धांतिक दृष्टि से 0.07 या 0.08 सूर्य द्रव्यमान वाले तारों में नाभिकीय संलयन कर पाने की क्षमता होनी चाहिए अर्थात इतने छोटे तारे भी अंतरिक्ष में हो सकते हैं.
इस उत्तर को दूसरी तरह से देना चाहें तो यह कहा जा सकता है कि जो तारे अपने जीवनकाल के अंतिम बिंदु पर आ गए हैं वे सबसे छोटे तारे हैं. ये तारे कभी बहुत विशाल हुआ करते थे. जब किसी बहुत बड़े तारे का ईंधन खत्म हो जाता है तो उसकी कोर में नाभिकीय क्रियाएं बंद हो जाती हैं और उसके पदार्थ को बांधे रख सकनेवाले बल क्षीण हो जाते हैं. तब ऐसा तारा अपने आप में ही धंसने लगता है. इसका सारा पदार्थ केंद्र की ओर गिरने लगता है और इसकी कोर संपीडित होती जाती है. यदि ऐसा तारा पर्याप्त विशाल हो तो इसकी कोर पर इतना अधिक दबाव पड़ता है कि परमाणु भी टूटने लगते हैं. ऐसे में न्यूट्रॉन्स की एक विशाल गेंद बनती है. यह पदार्थ इतना सघन होता है कि इन तारों की कोर में सूर्य के द्रव्यमान की दोगुनी मात्रा होती है लेकिन उस कोर का आकार केवल 20 किलोमीटर होता है. कोर में मौजूद उस पदार्थ की एक चम्मच मात्रा का भार एक अरब टन तक हो सकता है. (featured image)
Aap vigyan ki bahut acche se sewa kar rahe hai.thanks a lot
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