हमारा छोटा सा तारा और नन्हे ग्रह जिस मंदाकिनी (galaxy) में रहते हैं उसे आकाशगंगा (Milky Way) कहते हैं. इसे यह नाम ग्रीक शब्द galaxias kyklos (दूधिया घेरे) और लेटिन नाम via lactea (दूधिया मार्ग) से मिला है. यदि आप अमावस की रात किसी बहुत दूर के गांव या जंगल को जाएं जहां शहरी रौशनी का अंश भी न हो तो आप समझ जाएंगे कि हमने इसे यह नाम क्यों दिया. वहां आपको आकाश धुंए भरा काला नहीं दिखेगा बल्कि चमचमाते रंगों की छटा दिखेगी जिसमें सफेद तारों की भरमार के साथ-साथ लाल, नीले तारे और विशाल धुंधली आकृतियां भी दिखेंगी.
आकाशगंगा के बारे में रोचक और अनूठी जानकारियां ये रहींः
1. आकाशगंगा बहुत विशाल है – आकाशगंगा लगभग 1,000,000,000,000,000,000 किलोमीटर (621,371,000,000,000,000 मील) चौड़ी है. प्रकाश की गति 3 लाख किलोमीटर प्रति सेकंड से चलने पर भी हमें इसके एक छोर से दूसरे छोर तक जाने में लगभग 1,00,000 साल लग जाएंगे. अब अंदाजा लगाइए कि जिस अंतरिक्ष में ये आकाशगंगा है वह स्वयं कितना बड़ा होगा… लेकिन पहले यह भी जान लीजिए कि अंतरिक्ष में हमारी आकाशगंगा जैसी 2 ट्रिलियन मंदाकिनियां हैं. 1 ट्रिलियन = 1,000 अरब.
2. आकाशगंगा तारों, धूल और गैस से भरी है – हमारी आकाशगंगा एक बार्ड स्पाइरल गैलेक्सी है. इसमें लगभग 300 अरब तारे हैं. तारों के अलावा इसमें अपार धूल, गैस, और नेबुला भी हैं जो आकाशगंगा के केंद्र गैलेक्टिक सेंटर (Galactic Center) का चक्कर लगाते हैं. इस गैलेक्टिक सेंटर में एक सुपरमैसिव ब्लैक होल (supermassive black hole) है जिसका नाम सैजिटेरियस-ए (Sagittarius A) है. इसे ए-स्टार (A-star) भी कहते हैं. आकाशगंगा की चार स्पाइरल भुजाएं हैं. सूर्य इनमें से एक भुजा ओरायन (Orion) के भीतरी किनारे पर स्थित है. हम आकाशगंगा की एक अलग-थलग सी जगह पर हैं लेकिन हमारे लिए यही अच्छी बात है.
3. हमारी आकाशगंगा भी दूसरी मंदाकिनियों जैसी है – यदि आप दूसरी स्पाइरल मंदाकिनियों को देखेंगे तो पाएंगे कि हमारी आकाशगंगा के आकार में कुछ खास नहीं है. इसका आकार बहुत रेगुलर है. इसमें तारों की बसाहट सामान्य है और दूसरी मंदाकनियों की भांति इसके केंद्र में भी सुपरमैसिव ब्लैक होल है. स्पाइरल मंदाकिनियां सामान्यतः दूसरी तरह की मंदाकिनियों से बड़ी होती हैं. आकाशगंगा भी अपनी तरह की मंदाकिनियों में बहुत बड़ी है. सबसे अच्छी बात तो यह है कि इसमें जीवन है. चूंकि सूर्य के पास पृथ्वी ग्रह पर जीवन उत्पन्न हो सका इसलिए हमारी आकाशगंगा में कहीं और जीवन के होने की प्रबल संभावना है.
4. इसमें रहते हुए इसके स्वरूप का आकलन करना कठिन है – आकाशगंगा में हमारी मौजूदगी ऐसे क्षेत्र में है कि खगोलशास्त्रियों को इसके पैटर्न का निर्धारण करने में बहुत कठिनाई होती है. हमें अपनी निकटतम मंदाकिनी एंड्रोमेडा (Andromeda) का बहुत सुंदर नजारा दिखता है क्योंकि यह पूरी-पूरी हमारे सामने है लेकिन आकाशगंगा को हम कभी एक साथ नहीं देख सकते. इसके स्वरूप का निर्धारण करने के लिए वे सभी संभावित दिशाओं और दशाओं से इसे देखने का प्रयास करते हैं और बहुत सी तस्वीरों को मिलाकर इसकी प्रचलित छवि का निर्माण करते हैं.
5. तारों के बीच की धूल हमें इसका बहुत सा भाग देखने नहीं देती – अंतर्तारकीय धूल खगोलशास्त्रियों की शत्रु है. यह आकाशगंगा के बहुत दूर के क्षेत्रों को ब्लॉक कर देती है. हमारी आंखें और दूरबीनें धूल के हजारों प्रकाश वर्ष लंबे-चौड़े बादलों के पार के दृश्य नहीं देख पाती. इस समस्या के समाधान के लिए खगोलशास्त्री लंबी वेवलेंथ जैसे रेडियो और इंफ़्रा-रेड तरंगों की मदद लेते हैं.
6. आकाशगंगा घूम रही है लेकिन कहीं कुछ गड़बड़ है – खगोलशास्त्रियों ने हम तक आने वाले प्रकाश का अध्ययन करके आकाशगंगा के द्रव्यमान का बहुत सटीकता से अनुमान लगा लिया है. वे आकाशगंगा के तारों को गिन सकते हैं और उनके द्रव्यमान का भी निर्धारण कर सकते हैं. वे आकाशगंगा में मौजूद धूल और गैस की मात्रा भी पता लगा चुके हैं. लेकिन जब वे सारी चीजों के द्रव्यमान का हिसाब लगाते हैं तो पाते हैं कि आकाशगंगा को घूमने के लिए जितना पदार्थ चाहिए उससे बहुत कम पदार्थ उपलब्ध है. तो बाकी का पदार्थ कहां है? इसका अर्थ यह है कि आकाशगंगा में किसी दूसरी तरह का पदार्थ भी है जो अपना गुरुत्वीय प्रभाव डाल रहा है लेकिन हम उसका पता नहीं लगा पा रहे. उसे वैज्ञानिक डार्क मैटर (dark matter) कहते हैं. तमाम तरह के वैज्ञानिक प्रयोगों और अध्ययनों से हमें आकाशगंगा में डार्क मैटर के वितरण के बारे में अच्छी जानकारी मिली है लेकिन हमें अभी भी नही पता है कि डार्क मैटर क्या है.
7. आकाशगंगा और एंड्रोमेडा एक-दूसरे से टकराएंगी – अगले 4 से 5 अरब वर्षों में आकाशगंगा और एंड्रोमेडा मंदाकिनियां एक-दूसरे से टकराएंगी. ये दोनों मंदाकिनियां लगभग एक जैसी हैं लेकिन इनके टकराने में डरने की कोई बात नहीं है. दोनों आकाशगंगाओं में लगभग 600 अरब तारे हैं लेकिन जब ये एक दूसरे में समाएंगी तो किसी भी तारे की दूसरे तारे से टक्कर होने की संभावना नगण्य है क्योंकि इन तारों के बीच की दूरियां बहुत अधिक हैं. ऊपर फोटो में 3.75 अरब वर्ष बाद की स्थिति की कल्पना की गई है जब एंड्रोमेडा गैलेक्सी आकाशगंगा के बहुत करीब आकर पूरे आकाश को घेर लेगी और आकाशगंगा की भुजा इसके ज्वारीय आकर्षण से विकृत होने लगेगी.
8. हमारे अंतरिक्ष अभियानों का बड़ा हिस्सा आकाशगंगा को समर्पित है – अनगिनत अंतरिक्ष यान और दूरबीनें आकाशगंगा का अध्ययन कर रही हैं. इनमें से सबसे प्रसिद्ध है हबल स्पेस टेलीस्कोप (Hubble Space Telescope) और अन्य हैं चंद्र (Chandra) स्पिट्ज़र (Spitzer) और केपलर (Kepler) जो हर समय अंतरिक्ष के अलग-अलग कोने से डेटा जुटाकर खगोलशास्त्रियों को उपलब्ध करा रहे हैं. इस कड़ी में अगला अहम कदम होगा नासा का जेम्स वेब स्पेस टेलीस्कोप (James Webb Space Telescope). इसके वर्ष 2019 में प्रक्षेपित किए जाने की संभावना है. इस बीच एपोगी (APOGEE) नाम के महत्वाकांक्षी प्रोजेक्ट पर काम चल रहा है जो आकाशगंगा की संरचना और विकास के चरणों के बारे में जानकारी देगा. इस प्रोजेक्ट में आकाशगंगा का सर्वे स्पेक्ट्रोस्कोपी के द्वारा किया जाएगा. इस विधि में हजारों तारों की रसायनिक संरचना का विस्तार से अध्ययन किया जाएगा. (featured image)