नहीं. अंतरिक्षीय पिंडों पर कोई भी सरकार या प्राइवेट कंपनी स्वामित्व का दावा नहीं कर सकती. The Outer Space Treaty नामक एक अंतर्राष्ट्रीय संधि इसका निषेध करती है और अंतरिक्ष में यान व उपग्रह भेजनेवाले हर देश और कंपनी पर इसे मानने की बाध्यता है.
कोई भी कंपनी या सरकार केवल किसी ग्रह-उपग्रह पर भेजे गए यान व उपकरणों के स्वामित्व का दावा कर सकती है. ऐसी सामग्री को परित्यक्त नहीं माना जाता और इसे कोई भी इसके स्वामी से पूछे बिना उपयोग में नहीं ले सकता.
किसी भी वस्तु पर स्वामित्व का संबंध कानून से है और यह बात अंतरिक्षीय पिंडों पर भी लागू होती है.
यदि कोई प्राइवेट कंपनी मंगल ग्रह पर मानव-रहित यान भेजकर मंगल के स्वामित्व की घोषणा करेगी तो कोई भी उसे गंभीरता से नहीं लेगा. इसके विपरीत इससे कंपनी की साख पर असर पड़ेगा और सरकारें उसे अंतरिक्षीय अभियानों के लिए ज़रूरी अनुमतियां देने से हिचकिचाएंगीं.
यदि कोई प्राइवेट कंपनी अगले कुछ वर्षों में कुछ मनुष्यों को मंगल ग्रह पर भेजने में सफल हो जाएगी तो यह निस्संदेह हमारी बहुत बड़ी उपलब्धि होगी. लेकिन यदि वे मनुष्य वहां अपनी कंपनी का झंडा गाड़कर उसे कंपनी की पर्सनल प्रॉपर्टी घोषित करेंगे तो कंपनी का दुनिया भर में मजाक बनेगा और लोग उसकी विश्वसनीयता और नीयत पर सवाल उठाएंगे.
लेकिन यदि कोई प्राइवेट कंपनी मंगल ग्रह पर सैंकड़ों मनुष्यों को भेजकर वहां आत्मनिर्भर स्थाई कॉलोनी बना ले और इतनी सक्षम हो जाए कि वह अपनी कॉलोनी की अन्य अंतरिक्षीय दावेदारों व आक्रमणों से रक्षा कर सके तो मंगल ग्रह में रुचि लेने वाली दूसरी पार्टियों को मंगल ग्रह के संसाधनों का उपयोग करने के लिए उनके दावे को गंभीरता से लेना पड़ेगा. वे उनसे संपर्क करके किसी तरह की डील करने का प्रयास करेंगे. जब किसी तरह की डील की जाएगी तो मंगल ग्रह पर उनके दावे को भी किसी सीमा तक स्वीकार करना पड़ेगा. यह सत्य है कि वर्तमान अंतरिक्षीय संधियां इसका निषेध करती हैं लेकिन संधियों का अस्तित्व तभी तक है जब उन्हें प्रवर्तित किया जा सकता हो.
1969 में जब सं.रा. अमेरिका ने चंद्रमा पर कदम रखा तो उसपर अधिकार का दावा नहीं किया. ऐसा नहीं है कि अमेरिका ऐसा नहीं कर सकता था, बल्कि इस बात पर किसी ने विचार ही नहीं किया. अमेरिका ने चंद्रमा पर अपना झंडा गाड़कर केवल यह इंगित किया कि वहां किसने लैंडिंग करके अपने उपकरण पीछे छोड़े थे. अमेरिका ने हमेशा यह कहा कि वह किसी देश की नहीं बल्कि पूरी मानव जाति की उपलब्धि थी. याद कीजिए कि पहला कदम रखते वक्त नील आर्मस्ट्रॉंग ने क्या कहा था, “That’s one small step for man, one giant leap for mankind.” वहां से लाए गए पत्थरों के अंशों को हर देश को उपहार के रूप में भेंट किया गया. यदि भारत भी भविष्य में किसी मनुष्य को चंद्रमा पर भेजेगा तो वही करेगा जो अमेरिका ने किया.
और मंगल ग्रह के मामले में भी ऐसा ही किया जाएगा. (featured image)