यूरेनियम तत्व की खोज की कहानी और रोचक तथ्य

06 अगस्त, 1945 के दिन जापान के हिरोशिमा शहर पर एक 10 फुट लंबा बम गिराया गया. एक मिनट से भी कम समय में बम के फटने के स्थान से एक मील की दूरी तक की हर चीज तबाह हो गई. आग का तूफान उठा जिसने मीलों दूर तक हर वस्तु को जला दिया. लगभग 1 लाख लोग उस दिन मारे गए. 50,000 अतिरिक्त व्यक्तियों की मृत्यु अगले कुछ महीनों में हुई.

यह किसी भी युद्ध में परमाणु बम का पहला प्रयोग था. इस तबाही ने एक प्रसिद्ध तत्व को बदनाम कर दिया जिसे हम यूरेनियम (Uranium) कहते हैं. इस तत्व का एक आइसोटोप यूरेनियम-235 प्रकृति में मिलनेवाला एकमात्र आइसोटोप है जिसमें नाभिकीय विखंडन (nuclear fission) की क्षमता है. आइसोटोप किसी तत्व के उस वर्जन को कहते हैं जिसमें तत्व के परमाणु के नाभिक में न्यूट्रॉन की संख्या भिन्न होती है.

यूरेनियम को समझने के लिए हमें पहले रेडियोएक्टीविटी को समझना होगा. यूरेनियम प्राकृतिक रूप से रेडियोएक्टिव होता है. इसके परमाणु का नाभिक अस्थिर होता है इसलिए इसका हर समय क्षय होता रहता है और यह अपेक्षाकृत अधिक स्थाई तत्वों में बदलता रहता है. दरअसल, यूरेनियम के कारण ही रेडियोएक्टीविटी की खोज संभव हो सकी थी. 1897 में फ़्रांसीसी भौतिकशास्त्री हेनरी बैकुरेल (Henri Becquerel) ने यूरेनियम के एक यौगिक को फोटोग्राफिक प्लेट पर रख दिया और वे यह देखकर आश्चर्यचकित रह गए कि फोटोग्राफिक प्लेट पर प्रकाश पड़ने का प्रभाव दिख रहा था. इससे यह पता चल रहा था कि यूरेनियम के यौगिक से किसी प्रकार की अदृश्य किरणें निकल रही थीं. पोलैंड की वैज्ञानिक मेरी क्यूरी (Marie Curie) ने अपने फ़्रांसीसी वैज्ञानिक पति पियेर क्यूरी (Pierre Curie) के साथ खोज को आगे बढ़ाते हुए पहली बार रेडियोएक्टीविटी शब्द का प्रयोग किया. उन्होंने यूरेनियम के खनिज से नए तत्वों पोलोनियम और रेडियम की खोज की. रेडियोएक्टीविटी की खोज के लिए बैकुरेल, मेरी और पियेर क्यूरी को 1903 का नोबल पुरस्कार दिया गया. मेरी क्यूरी ने कुल सात रेडियोएक्टिव तत्वों की खोज की थी. कहा जाता है कि रेडियोएक्टीव पदार्थों के लंबे समय तक संपर्क में रहने के कारण उन्हें एप्लास्टिक एनीमिया हो गया था जिससे 1934 में उनकी मृत्यु हो गई.

यूरेनियम के भौतिक-रासायनिक गुणधर्म इस प्रकार से हैंः

  • परमाणु संख्या (नाभिक में प्रोटॉन की संख्या): 92
  • परमाण्विक प्रतीक चिन्ह (तत्वों की आवर्ती सारणी में): U
  • परमाण्विक भार (परमाणु का औसत द्रव्यमान): 238.02891
  • घनत्व: 18.95 ग्राम प्रति घन सेंटीमीटर. यह सबसे अधिक भारी प्राकृतिक तत्व है.
  • कमरे के तापमान पर तत्व का स्वरूप: ठोस
  • गलनांक: 2,075 डिग्री फैरनहाइट (1,135 डिग्री सेल्सियस)
  • क्वथनांक: 7,468 F (4,131 C)
  • आइसोटोप्स की संख्या: 16. जिनमें से तीन प्रकृति में स्वतंत्र रूप से मिलते हैं.
  • सबसे कॉमन आइसोटोप्स: U-234 (0.0054% प्राकृतिक उपलब्धता), U-235 (0.7204% प्राकृतिक उपलब्धता), U-238 (99.2742% प्राकृतिक उपलब्धता)

यूरेनियम का इतिहास

यूरेनियम की खोज जर्मन रसायनशास्त्री मार्टिन हेनरिख क्लापरोथ (Martin Heinrich Klaproth) ने 1789 में की हालांकि इसके बारे में जानकारी वर्ष 79 ईसवी से उपलब्ध थी जब खनिज यूरेनियम ऑक्साइड का प्रयोग सिरामिक टाइलों और कांच को रंगने के लिए किया जाता था. क्लापरोथ ने यूरेनियम की खोज इसके अयस्क पिचब्लेंड (pitchblende) में की. लोगों का मानना था कि इस अयस्क में केवल जस्ता और लोहा था. क्लापरोथ ने अयस्क को नाइट्रिक एसिड में घोलकर इसमें पोटाश मिलाया. क्लापरोथ ने यह अनुमान लगाया कि उसने एक नए तत्व की खोज की है क्योंकि घोल में पोटाश मिलाने पर किसी ज्ञात तत्व से होनेवाली प्रतिक्रिया नहीं हुई. उसने अपनी खोज को आगे बढ़ाते हुए यूरेनियम ऑक्साइड की खोज की लेकिन वे शुद्ध यूरेनियम को अलग नहीं कर सके.

क्लापरोथ ने नए तत्व का नाम उस दौरान खोजे गए नए ग्रह यूरेनस के आधार पर रखा. यूरेनस का नाम आकाश के ग्रीक देवता के नाम पर रखा गया था. फ़्रांसीसी रसायनशास्त्री यूजीन-मेलशियो पेलिगो (Eugène-Melchior Péligot) ने 1841 में यूरेनियम टेट्राक्लोराइड को पोटेशियम के साथ गरम करके शुद्ध यूरेनियम प्राप्त किया. शुद्ध यूरेनियम चांदी जैसा दिखता है और हवा के संपर्क में जल्दी ही ऑक्सीडाइज़ होकर धूसर रंग का दिखने लगता है. यूरेनियम के अयस्क की खुदाई 20 देशों में होती है और आधे से अधिक यूरेनियम कनाडा, कज़ाखिस्तान, ऑस्ट्रेलिया, नाइजर, रूस और नामीबिया से मिलता है. यूरेनियम की ओपन मार्केट में कहीं भी बिक्री नहीं होती है. एक किलो शुद्ध यूरेनियम की कीमत अंतर्राष्ट्रीय बाजार में लगभग 75 लाख रुपए है.

ब्रह्मांड में यूरेनियम तत्व की उत्पत्ति 6.6 अरब वर्ष पूर्व सुपरनोवा तारों के विस्फोट के दौरान हुई. यह पृथ्वी पर हर जगह मिलता है और अधिकांश चट्टानों में यह 2 से 4 भाग प्रति दस लाख भाग के औसत से उपलब्ध है. यह पृथ्वी में प्राकृतिक रूप से मिलनेवाला 48वां सबसे प्रचुर तत्व है. रोचक बात यह है कि यह चांदी से 40 गुना अधिक और सोने से 500 गुना अधिक प्रचुरता में उपलब्ध है. पृथ्वी में यूरेनियम इतनी मात्रा में है कि कई दशकों तक उससे नाभिकीय संयंत्र चलाए जा सकते हैं.

रेडियोएक्टिविटी शब्द सुनते ही सबके दिमाग में यूरेनियम का विचार आता है लेकिन यूरेनियम के क्षय होने की दर इतनी कम है कि इसे अधिक रेडियोएक्टिव तत्व नहीं माना जाता. यूरेनियम-238 की अर्ध-आयु (half-life) आश्चर्यजनक रूप से 4.5 अरब वर्ष है. यूरेनियम-235 की अर्ध-आयु 70 करोड़ वर्ष है. यूरेनियम-234 की अर्ध-आयु इनमें सबसे कम 2,45,500 वर्ष है. प्रकृति में मिलनेवाला सबसे अधिक रेडियोएक्टिव तत्व पोलोनियम है जिसकी अर्ध-आयु केवल 138 दिन है. तत्व एस्टाटीन की अर्ध-आयु केवल 8 घंटा है लेकिन वह पृथ्वी पर न-के-बराबर उपलब्ध है.

फिर भी यूरेनियम का महत्व इसलिए है क्योंकि यह नाभिकीय चेन रिएक्शन कर सकता है. यूरेनियम-235 विखंडनीय है अर्थात इसके नाभिक को न्यूट्रॉन्स की बौछार करके दो स्थाई तत्वों में तोड़ा जा सकता है. यूरेनियम-235 के परमाणु में 143 न्यूट्रॉन्स होते हैं. जब एक मुक्त न्यूट्रॉन इसके नाभिक से टकराता है तो वह नाभिक को तोड़ देता है. इससे कुछ अतिरिक्त न्यूट्रॉन्स निकलते हैं जो अन्य नाभिकों को तोड़ते जाते हैं. इसे ही चेन रिएक्शन कहा जाता है. इस प्रक्रिया में बहुत अधिक ऊर्जा निकलती है. न्यूक्लीयर रिएक्टर में इस ऊर्जा को नियंत्रित करके इससे पानी उबाला जाता है. पानी उबालने से भाप बनती है जो टरबाइनों को घुमाती है और इससे बिजली बनती है. नाभिकीय विखंडन की इस प्रक्रिया को कैडमियम या बोरॉन तत्व की छड़ों से नियंत्रित किया जाता है. ये छड़ें अतिरिक्त न्यूट्रॉन्स को सोख लेती हैं ताकि चेन रिएक्शन एक सीमा से अधिक नहीं बढ़ने पाए.

परमाणु बम में यह चेन रिएक्शन अनियंत्रित गति से आगे बढ़ती जाती है. इससे अत्यधिक ऊर्जा निकलती है और विस्फोट होता है. हिरोशिमा पर गिराए गए बम की शक्ति 15 किलोटन TNT के विस्फोट के समान थी. इस बम को बनाने में 64 किलो (140 पौंड) यूरेनियम का प्रयोग हुआ था लेकिन इसमें से केवल एक किलो से भी कम (2.2 पौंड) यूरेनियम में नाभिकीय विखंडन हुआ.

यूरेनियम तत्व के एक रूप को डिप्लीटेड यूरेनियम कहते हैं. इसका उपयोग मिलिटरी टैंक की बाहरी सतह और बुलेट्स बनाने में किया जाता है. डिप्लीटेड यूरेनियम परमाणु संयंत्र में अनुपयोगी यूरेनियम के रूप में बचनेवाला तत्व है. इसमें प्राकृतिक यूरेनिमय की तुलना में 40% कम रेडियोएक्टीविटी होती है. यह मानव शरीर को तभी नुकसान पहुंचाता है जब यह किसी तरह से शरीर के भीतर चला जाता है. (featured image)

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