सोने और चांदी जैसे कुछ तत्व या धातुएं हजारों वर्षों से फैशन में हैं और शायद हजारों वर्षों तक लोगों को अपनी ओर खींचती रहेंगी. अन्य बहुत सी धातुओं में वह बात नहीं जो वे लोगों का दिल जीत सकें. लेकिन सिलिकन जैसे कुछ तत्व ऐसे हैं जो सदियों की धूल फांकने के बाद वर्तमान में महत्वपूर्ण सिद्ध हो रहे हैं. वहीं कुछ तत्व ऐसे भी हैं जो किसी सुपरस्टार की तरह परिदृश्य में आए लेकिन धीरे-धीरे लोगों के दिलों से उतर गए. आवर्ती सारणी में ऐसे बहुत से तत्व हैं, लेकिन इनमें से एल्युमीनम (aluminum) या एल्युमीनियम (aluminium) जितनी रोचक कहानी और किसी की नहीं है.
एल्युमीनम लोहे के बाद पृथ्वी की पपड़ी (crust) में सर्वाधिक मात्रा में मिलनेवाली दूसरी धातु है. एल्युमीनम का एक सर्वत्र आसानी से मिलनेवाला लवण फिटकरी (alum) अपने शोधक गुणों के कारण सदियों से इस्तेमाल किया जा रहा है. लेकिन एल्युमीनम को इसके अयस्कों से निकाल पाना पहले बहुत कठिन था. लोहे के अयस्क को गरम करके उससे लोहे को आसानी से निकाला जा सकता है लेकिन एल्युमीनम को इस तरह से निकालना बहुत कठिन है. 1820 में पहली बार एक जर्मन रसायनशास्त्री ने एल्युमीनम के कुछ कतरे निकालने में सफलता पाई और ऐसा होते ही चहुंओर एल्युमीनम की चर्चा होने लगी.
लोगो को 13 नंबर के इस तत्व की रंगत और चमक बहुत भाई. वे इसे सोने और चांदी जैसी कीमती धातु मानने लगे. 19वीं शताब्दी में एल्युमीनम की कीमत सोने से भी अधिक पहुंच गई क्योंकि इसे प्राप्त करना बहुत कठिन था. फ़्रांस की सरकार ने एल्युमीनम की छड़ों को शाही रत्न-जवाहरात के समकक्ष रखा और नेपोलियन तृतीय ने शाही मेहमानों की दावत के लिए खास तौर पर एल्युमीनम के छुरी-कांटे बनवाए जबकि कम महत्वपूर्ण मेहमानों को सोने के छुरी-कांटे इस्तेमाल के लिए दिए गए. अमेरिका ने 1884 में अपनी औद्योगिक क्षमता का प्रदर्शन करने के लिए वाशिंगटन के स्मारक पर 6 पौंड भारी एल्युमीनम का पिरामिड लगवाया.
लेकिन कुछ वर्षों के भीतर ही एल्युमीनम का मार्केट बुरी तरह से धराशायी हो गया. अमेरिका और यूरोप के कुछ उद्यमियों ने अंततः बॉक्साइट अयस्क से एल्युमीनम निकालने की आसान और सस्ती विधि खोज निकाली और इसका बहुत बड़े पैमाने पर उपयोग होने लगा. उन्होंने अयस्क के घोल में करेंट दौड़ाया और धातु अलग हो गई. विद्युत ने घोल में घुले हुए एल्युमीनम के अणुओं को छिटका दिया और वे धूसर रंग की डली के रूप में पेंदी में बैठ गए.
कुछ दशक पहले जिस धातु का पूरी दुनिया में कुछ छंटाक उत्पादन होता था वह अब टनों से उपल्बध थी. 1888 में अमेरिका की सबसे बड़ी एल्युमीनम कंपनी (Alcoa) प्रतिदिन 50 पौंड एल्युमीनम का उत्पादन कर रही थी. बीस वर्षों के भीतर मांग बढ़ने के साथ-साथ इसका उत्पादन बढ़कर 88,000 पौंड प्रतिदिन हो गया. उत्पादन बढ़ने के साथ ही इसकी कीमत में कमी आने लगी. 19वीं शताब्दी के मध्य में एल्युमीनम की पहली सिल्लियां 550 डॉलर प्रति पौंड की दर से बिकी थीं. पचास साल बाद यही सिल्लियां 25 सेंट्स में बिक रही थीं.
इतनी बुरी तरह से नीचे आने के बाद जिस धातु को लोग पहले हाथों-हाथ लेते थे वह अब दो कौड़ी की हो गई. अब इस धातु से सस्ते बर्तन-भांडे, सोडा कैन, बेसबॉल के बैट्स और हवाई-जहाज का ढांचा बनता है, हालांकि वाशिंगटन स्मारक पर स्थापित किया गया इसका पिरामिड अभी भी मौजूद है.
चलते-चलते यह भी बता दिया जाए कि इस तत्व के ये दो नाम कैसे पड़े. महान रसायनशास्त्री सर हम्फ़्री डेवी ने इसके नामकरण में बहुत सर खपाने के बाद 1807 में सबसे पहले इसे एल्युमियम (alumium) कहा. फिर नाम को बदलकर एल्युमीनम (aluminum), कर दिया. अततः 1812 में इसका नाम एल्युमीनियम (aluminium) निर्धारित कर दिया गया. इसे अमेरिका में सभी एल्युमीनम कहते हैं और यूरोप में एल्युमीनियम. (featured image)
रोचक……..
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