यह एक प्रश्न ही अपने आप में अनेक प्रश्नों को समाए हुए हैः
विज्ञान कहता है कि मनुष्यों की उत्पत्ति या विकास बंदरों से हुआ है.
नहीं. ऐसा नहीं है. हमारी उत्पत्ति उन बंदरों से नहीं हुई है जो हमें अपने आसपास दिखते हैं. मनुष्य की उत्पत्ति बंदर (monkey) से नहीं बल्कि कपि (ape) से हुई. कपि की वह प्रजाति अन्य सभी कपियों और बंदरों की कॉमन पूर्वज थी. और कपि की जिस प्रजाति से मनुष्यों की उत्पत्ति हुई उस प्रजाति का भी बहुत-बहुत पहले एक कॉमन पूर्वज था जो सभी स्तनधारी प्राणियों का पूर्वज था. और उससे भी बहुत-बहुत-बहुत पहले पृथ्वी पर अब तक उत्पन्न सभी प्राणियों का एक कॉमन पूर्वज था. इस प्रकार हम यह कह सकते हैं कि मनुष्यों की रिश्तेदारी सिर्फ कपियों और बंदरों से ही नहीं है.
क्या यह बात 100% सत्य है?
हां. यह 100% सत्य है. और जो व्यक्ति यह कहता है कि “विज्ञान चीजों को सिद्ध करके नहीं दिखा सकता” वह व्यर्थ की बहस कर रहा है. विज्ञान के क्षेत्र में विकासवाद (evolution) उन कुछ संकल्पनाओं में से एक है जिन्हें अकाट्य प्रमाणों के साथ सिद्ध किया जा चुका है. भौतिकी में हम आज भी गुरुत्व को भली-भांति नहीं समझते हैं, लेकिन हम यह जानते हैं कि यह बेसिरपैर की विषयवस्तु नहीं है. विकासवाद पूरी तरह से सत्य है और अन्य प्राइमेट्स (primates, मनुष्य-सदृश जानवरों का परिवार – स्तनपायी प्राणियों में सर्वोच्च श्रेणी के जीव) के साथ हमारी वंश-परंपरा की समानता होने के भी अनेक प्रमाण हैं.
तो वे बंदर कौन हैं जो बचे रह गए हैं?
यदि मेरे कुछ पुरखे उत्तरप्रदेश, छत्तीसगढ़ और प्रदेश से आए तो भी इन प्रदेशों में अभी भी मेरे रिश्तेदार क्यों रहते हैं? इसका सीधा सा उत्तर यह है कि मेरे सारे पुरखे एक स्थान से निकलकर दूसरे स्थान को नहीं चले गए. कुछ चले गए और कुछ वहीं रहते रहे.
50-60 लाख साल पहले हमारे सबसे पहले कुछ पूर्वज अफ्रीका के घने जंगलों से निकलकर सवाना के घास के मैदानों में जा बसे. यहां उन्हें बिल्ली-शेर प्रजाति के जानवरों का सामना करना पड़ा और इस प्रक्रिया में वे और अधिक अनुकूल होते गए. उनकी बुद्धिमता बढ़ने लगी, वे कुटुंब व समाज का निर्माण करने लगे, उन्होंने शिकार करने के साथ-साथ फलों को भी खाना शुरु कर दिया. इसके परिणामस्वरूप वे एक ही जगह पर रहते हुए पर्याप्त संख्या में प्रजाति के रूप में बढ़ते रहे. जलवायु में आनेवाले अनेक परिवर्तनों ने उन्हें स्वयं को अनुकूल बनाने और अन्य स्थान पर जाकर बसने के लिए प्रवृत किया. इस प्रकार वे और अधिक स्मार्ट और कुशल शिकारी-फलसंग्रहकर्ता बनते रहे.
इस बीच उनके जो साथी जंगलों में पीछे छूट गए थे वे अपनी मंथर गति से विकसित होते रहे. कालांतर में वे चिंपांजी, गोरिल्ला, और बंदरों जैसे फल बीनकर खानेवाली प्रजातियां बनीं.
वे हमारी तरह मनुष्य क्यों नहीं बने?
क्योंकि उन्होंने उत्तरजीविता (survival) के लिए उन खतरों और चुनौतियों का सामना नहीं किया जो हमारे पूर्वजों को झेलनी पड़ीं. वे उस प्रकार से उस दिशा व दशा में नहीं ढले जिनमें हम ढले. यह अच्छा भी हुआ और बुरा भी. हमारे प्यारे कज़िन ओरांगउटान और बोनोबोस सुख-शांति से प्रेम से एक-दूसरे के साथ रहते हैं लेकिन वे चंद्रमा पर अपने पदचिन्ह कभी भी नहीं छोड़ सकेंगे. (featured image)
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बहुत सुंदर जानकारी दी गई है
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