आपको लगता होगा कि परमाणुओं की खोज विशालकाय इलेक्टॉन माइक्रोस्कोप जैसी किसी बहुत जटिल मशीन या ऐसी किसी मशीन पर हुई होगी जिसमें बहुत सारे मैकेनिकल पार्टस, घिरनियां, और यांत्रिक कलपुर्जे लगे होंगे.
लेकिन वास्तविकता में परमाणुओं की खोज बहुत साधारण मशीन के द्वारा की गई. इस मशीन का एक प्रारूप नीचे फोटो में दिया गया हैः
परमाणुओं को खोजने में इस मशीन से भी मदद मिलीः
और अंत में बिल्कुल इसी माइक्रोस्कोप से परमाणुओं को खोजा गयाः
1827 में वनस्पतिविज्ञानी रॉबर्ट ब्राउन (Robert Brown) ने पानी में एक फूल के परागकणों को अजीब सी गति करते देखा. उन्होंने पाया कि परागकणों से निकलनेवाले सूक्ष्म कण बहुत रैंडम व्यवहार कर रहे थे.
एक ओर जहां बड़े परागकण पानी में बहुत धीरे-धीरे गति कर रहे थे, सूक्ष्म कण इसके विपरीत सभी दिशाओं में अनियमित गति कर रहे थे. ब्राउन ने कई प्रयोग करके यह जांच लिया कि सूक्ष्म कणों का यह व्यवहार हर प्रकार के पदार्थ के साथ एक जैसा ही था. लेकिन वे यह नहीं समझा सके कि सूक्ष्म कणों की इस गति का कारण क्या था.
इसके अगले 90 वर्षों में “गैसों का कायनेटिक सिद्धांत (Kinetic Theory of Gases)” नामक एक शक्तिशाली थ्योरी विकसित हुई जिसमें अनेक महान वैज्ञानिकों जैसे क्लॉसियस, मैक्सवेल, बोल्ट्ज़्मैन आदि ने अपना योगदान दिया.
इस काइनेटिक सिद्धांत ने यह प्रतिपादित किया कि पदार्थ की अति सूक्ष्म मात्रा भी अरबों-अरब गतिशील कणों (जिन्हें परमाणु कहा गया) से बनी थी और गैसों व द्रवों के गुणों को इन परमाणुओं के टकराने और काइनेटिक ऊर्जा के द्वारा समझाया जा सकता था.
लेकिन इन तथाकथित परमाणुओं से जुड़ी बातों को अधिकांश लोगों ने महज़ गणितीय सिद्धांत मानकर गंभीरता से नहीं लिया, हालांकि यह सिद्धांत पदार्थ के गुणधर्मों को सटीकता से व्याख्यायित करने में बहुत उपयोगी था लेकिन लोग यह मानने के लिए तैयार नहीं थे कि हवा ऐसे सूक्ष्म कणों से मिलकर बनी है जिन्हें किसी भी तरह से देखा नहीं जा सकता. इसका कारण यह है कि लोग वाकई हवा में किसी तरह के कणों की मौजूदगी को नहीं देख सकते थे. उनके लिए हवा किसी गैस की भांति महीन और सतत माध्यम थी. इसके कणों से मिलकर बने होने का कोई प्रश्न ही नहीं उठता था.
फिर बीसवीं शताब्दी के वैज्ञानिक परिदृश्य में एक बहुत बुद्धिमान व्यक्ति का पदार्पण हुआ. उसका नाम था अल्बर्ट आइंस्टीन (Albert Einstein).
1905 में भौतिकी में PhD करने के फौरन बाद ही आइंस्टीन ने अकेले ही लगभग 1 साल तक काम करके विज्ञान की सबसे महत्वपूर्ण और फलदायी स्थापना की. उनसे पहले किसी वैज्ञानिक ने उन विषयों पर मनन नहीं किया था. अपने 2 पेपरों में (On the Electrodynamics of Moving Bodies और Does the Inertia of a Body Depend Upon Its Energy Content?) आइंस्टीन ने सापेक्षिकता के विशिष्ट सिद्धांत (Special Relativity) का प्रतिपादन किया और विश्वप्रसिद्ध सूत्र E=mc² दिया जिसने विराट स्तर पर सार्वभौमिक नियमों के बारे में हमारी जानकारियों में बहुत इज़ाफ़ा किया.
अपनी तीसरे पेपर (On a Heuristic Point of View about the Creation and Conversion of Light) आइंस्टीन ने यह बताया कि फोटॉन्स प्रकाश के क्वांटम पैकैटेस की तरह होते हैं और प्रकाश विद्युत प्रभाव के बारे में बताया (जिसके लिए उन्हें नोबल पुरस्कार मिला). इसके साथ ही उन्होंने मैक्स प्लांक की अल्ट्रावॉयलेट से जुड़ी समस्या पर भी विचार किया और क्वांटम भौतिकी के क्षेत्र में गहराई से प्रवेश कर गए.
लेकिन यहां हमारे लिए उनके चौथे पेपर (On the Motion of Small Particles Suspended in a Stationary Liquid, as Required by the Molecular Kinetic Theory of Heat) के बारे में जानना महत्वपूर्ण है. इस पेपर में आइंस्टीन ने “ब्राउनियन गति (Brownian Motion)” की संकल्पना पर विचार किया. यह सूक्ष्म कणों की वही रैंडम गति थी जिसे वनस्पतिविज्ञानी रॉबर्ट ब्राउन ने कई दशक पहले देखा था.
आइंस्टीन ने हमें बताया कि यह गति उन कणों के कारण हो रही थी जिनसे द्रव की रचना हुई थी. चूंकि इन कणों में से हर कण हर अवस्था में किसी भी दिशा में रैंडम गति कर रहा था इसलिए हमें द्रव में जो गति दिख रही थी वह बहुत अनियमित-सी थी. इसे आप नीचे दिए गए वीडियो में देख सकते हैं.
आइंस्टीन ने न केवल इस गतिशीलता की सटीक व्याख्या की बल्कि इस बात का पता भी लगाया कि ब्राउनियन गति का अध्ययन करके हम गणितीय सूत्रों की सहायता से द्रव में उपस्थित अणु/परमाणु की संख्या और आकार का अनुमान भी लगा सकते हैं.
1906 में एक अन्य वैज्ञानिक (Marian Smoluchowski) ने स्वतंत्र रूप से खोज की और अनेक प्रयोग करके आइंस्टीन की संकल्पनाओं को अगले कुछ वर्षों में सिद्ध कर दिखाया.
आइंस्टीन ने अपने वैज्ञानिक चिंतन के द्वारा हमें यह बताया था कि द्रव पदार्थ भी ठोस पदार्थ की भांति कणों से मिलकर ही बने थे. उनके विचारों और अन्य वैज्ञानिकों के प्रयोगों ने यह सिद्ध कर दिया कि परमाणुओं का अस्तित्व होता है और ये मैक्सवेल और बोल्ट्ज़्मैन की संकल्पना मात्र नहीं हैं. इस विष्य पर कार्य करने की प्रेरणा उन्हें रॉबर्ट ब्राउन के अवलोकन से ही मिली थी.
और रॉबर्ट ब्राउन ने सबसे पहले इस घटना को कहां देखा.
वे परागकणों को पानी में अनियमित गति करते देख रहे थे. (featured image)
महत्पूर्ण जानकारी दी गई है
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