प्रकाश की गति भौतिकी के उन स्थिरांकों में से एक है जिनके बारे में हम केवल यही कह सकते हैं कि उनका ऐसा होना केवल चांस की बात है. इन स्थिरांको के बारे में आप विकीपीडिया के इस पेज Physical constant पर पढ़ सकते हैं. इन स्थिरांको को केवल मापा जा सकता है. हम इस बात का पता नहीं लगा सकते कि वे नियत या फिक्स क्यों हैं.
इस प्रश्न का उत्तर हम कई तरह से दे सकते हैं. पहला यह कि हम स्वयं से यह पूछें कि प्रकाश की गति में विशेष क्या है? सच तो यह है कि कोई भी यह नहीं बता सकता कि प्रकाश की गति (c) c क्यों है. यह ब्रह्मांड का मूलभूत गुण है. हम नहीं जानते कि यदि c अथवा प्रकृति की कोई और मूलभूत वस्तु का गुणधर्म अलग होता तो उसका स्वरूप कैसा होता. बहुत संभव है कि इस दशा में ब्रह्मांड का अस्तित्व ही नहीं होता या उस रूप में नहीं होता जैसा हम इसे देखते हैं. c क्वांटम कणों के द्रव्यमान व उनके गुणों को प्रभावित करती है. यदि यह कुछ कम या अधिक होती तो परमाणु या अणु नहीं बन पाते. फिर तारे और सुपरनोवा नहीं बन पाते. फिर भारी तत्व नहीं बन पाते. फिर कार्बन आधारित जीवन उत्पन्न नहीं हो पाता. अब यदि आप बहु-ब्रह्मांड (multiverse) की संकल्पना में विश्वास भी करते हों तो यह कह सकते हैं कि प्रकाश की गति c ही है क्योंकि किसी अन्य ब्र्ह्मांड में c का मान कोई अन्य संख्या होगा तो इसपर विचार करने वाला वहां कोई नहीं होगा.
इस समस्या पर सोचने का दूसरा तरीका यह है कि हम स्वयं से यह पूछें कि प्रकाश के संदर्भ में c में क्या विशेष है, और इसका उत्तर होगा ‘कुछ नहीं’. प्रकाश की गति का संबंध केवल प्रकाश से ही नहीं है. c को हम कारणता की वह सबसे तीव्र गति मान सकते हैं जिसपर ब्रह्मांड का एक भाग किसी अन्य भाग को प्रभावित कर सकता है. लेकिन केवल प्रकाश ही नहीं है जो इस गति से विचरण करता है. गुरुत्वीय तरंगें और अन्य द्रव्यमान हीन कण भी c पर यात्रा करते हैं. यदि फोटॉन्स किसी प्रकार से हिग्स क्षेत्र (Higgs field) से संवाद कर सकेंगे तो उनमें भी द्रव्यमान संयुक्त हो जाएगा और वे c से कम गति पर चलने लगेंगे. इसे इस प्रकार से समझिए कि द्रव्यमान और गति में परस्पर विरोधी संबंध है और द्रव्यमान शून्य़ होने के कारण प्रकाश बिना किसी अवरोध के गति करता है जो कि कारणता की गति होती है जिसका मान c है.
यहां यह जानना रोचक होगा कि कई भौतिकशास्त्री प्रकाश की गति का मान 1 रखते हैं. भौतिकी के रिसर्च पेपर्स में यह दिखना आम बात है. ऐसा करने से उन्हें दूरी की मीटर, किलोमीटर, या मील जैसी यूनिटों में गणनाएं करने से मुक्ति मिल जाती है. ऐसा करने से उनके सूत्र और समीकरण आदि पढ़ने में आसान भी हो जाते हैं.
आधुनिक नापतौल की पद्धतियों में हम मीटर को प्रकाश की गति से नापते हैं. हम यह कहते हैं कि यह वह दूरी है जो प्रकाश निर्वात में एक सेकंड के 29,97,92,458वें हिस्से में तय करता है. और मीटर की यह माप हमने सुविधा के लिए मीटर की पुरानी माप जितनी ही रखी है जो बर्फ के गलनांक पर प्लेटिनम-इरीडियम की एक छड़ पर लगे दो निशानों के बीच की दूरी है.
ब्रह्मांड को इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता कि प्रकाश की गति 29,97,92,458 मीटर प्रति सेकंड क्यों है. यह मान तो हमने चुना है. हम चाहते तो इसे 1 मीटर प्रति सेकंड भी मान सकते थे लेकिन फिर हमें अपनी मीटर की परिभाषा में बड़ा फेरबदल करना पड़ता. (featured image)