अंतरिक्ष के अत्यधिक ठंडा होने का कारण क्या है?

एक प्रयोग कीजिए. साइकिल में हवा भरने वाला पंप लीजिए. उसकी ट्यूब का सिरा अंगूठे से बंद कर दीजिए और पंप चलाइए. क्या आपको पंप हल्का सा गरम लगता है? ऐसा इसलिए होता है क्योंकि ताप और दबाव का आपस में गहरा संबंध है. जब हम किसी पदार्थ का दबाव बढ़ाते हैं तो ताप भी बढ़ने लगता है.

इसका उल्टा भी सत्य है. यदि हम दबाव घटाएंगे तो ठंडक बढ़ेगी. इसे भी आप प्रयोग के द्वारा जांच सकते हैं. किसी डियो स्प्रे का कैन लेकर स्प्रे कीजिए. स्प्रे करते ही कैन हल्का सा ठंडा लगने लगता है. ऐसा इसलिए होता है क्योंकि स्प्रे के बाहर निकलते ही कैन के भीतर का दबाव कम हो जाता है और ताप गिर जाता है.

बहुत समय पहले जब ब्रह्मांड की उत्पत्ति हुई तब वह बहुत ही सूक्ष्म और सघन था. इसका तापमान चरम था. फिर यह फैलने लगा और विशाल होता गया. विशाल होते समय इसकी सघनता कम होती गई और तापमान भी गिरता गया. अरबों डिग्री केल्विन के तापमान से गिरते-गिरते यह वर्तमान के ~3 डिग्री केल्विन के तापमान तक गिर गया. इसमें कुछ ऊष्मा अभी भी शेष है जिसे हम माइक्रोवेव बैकग्राउंड रेडिएशन के नाम से जानते हैं.

इसे ऊपर दिए गए दृश्य ब्रह्मांड के नक्शे में लाल रंग से दिखाया गया है. यह पूरे ब्रह्मांड में इतनी समानता से फैला हुआ है कि इसके अतीत में अत्यधिक गर्म होने का पता नहीं चलता. यह अंतरिक्ष के बाकी हिस्से जितना ही ठंडा है.


हमें अंतरिक्ष के बेहद ठंडे होने का अहसास इसलिए नहीं होता क्योंकि हमारे बहुत पास ही एक तारा है जिसे हम सूर्य कहते हैं. सूर्य हमारे लिए साइकिल के पंप का काम करता है. अंतरिक्ष असीम है लेकिन सूर्य के हमारे अपेक्षाकृत बहुत निकट होने के कारण इस क्षेत्र में पदार्थ की मात्रा बढ़ जाती है. अतीत में सूर्य का गुरुत्वाकर्षण इसके आसपास मौजूद पदार्थ को अपने में समाता गया और यह हाइड्रोजन और धूल की बड़ी सी गेंद में रूपांतरित होता गया.

अंततः धूल और गैस की यह गेंद दबाव बढ़ने के कारण सघन और गर्म होती गई. जब दबाव और तापमान एक सीमा से बढ़ गया तो इसके केंद्र में नाभिकीय संलयन की प्रक्रिया शुरु हो गई. फिर सूर्य तारे की तरह धधकने लगा और अपने आसपास के क्षेत्र में अपनी ऊष्मा फेंकने लगा.

सूर्य के आसपास पदार्थ की कई डिस्क भी मौजूद थीं जो उनके अपने गुरुत्व के कारण सघन होती गईं. उनमें से एक डिस्क कालांतर में पृथ्वी बनी.

संक्षेप में कहें तो पहले सब कुछ बहुत गर्म था. फिर हर चीज फैलने लगी और ठंडी होने लगी. फिर अंतरिक्ष में यहां-वहां पदार्थों के ढेरों से तारों का निर्माण होता गया और गर्मी बढ़ने लगी. अंतरिक्ष के जिन क्षेत्रों में तारे बहुत दूर-दूर हैं वहां तापमान लगभग परमशून्य है.


अंतरिक्ष में बहुत अधिक ठंड इसलिए है क्योंकि अंतरिक्ष में ऊर्जा के स्रोत बहुत दूर-दूर हैं और उन स्रोतों के बीच निर्वात है.

यदि हम पृथ्वी के वातावरण से निकलकर बाहरी अंतरिक्ष में जाएंगे तो हमारे शरीर के जिस भाग पर सूर्य की किरणें पड़ रही होंगी वह भाग तेजी से जल जाएगा. इसका कारण यह है कि अंतरिक्ष में सूर्य की गर्मी को अवशोषित करने के लिए वातावरण नहीं होता. इसीलिए बाह्य अंतरिक्ष में सूर्य की किरणों का प्रभाव अत्यंत विनाशकारी होता है.

पृथ्वी पर जब हम कोई वस्तु सूर्य की रोशनी में रखते हैं तो वह हल्की गर्म हो जाती है. इसका कारण यह है कि इस वस्तु के आसपास की हवा बहुत सी उष्मा को अवशोषित और संवाहित कर देती है. लेकिन अंतरिक्ष में हवा नहीं होती इसीलिए कोई भी वस्तु सूर्य के प्रकाश में बहुत तेजी से गर्म हो जाएगी. बाह्य अंतरिक्ष किसी इंसुलेटर की तरह कार्य करता है इसलिए पृथ्वी के वायुमंडल से बाहर जाते ही वस्तुएं सूर्य के प्रकाश में प्रचंड गर्म हो जाती हैं और उनका ताप लगभग 200 डिग्री सेंटीग्रेड तक हो जाता है. क्योंकि अंतरिक्ष बहुत अच्छा ताप अवरोधक नहीं है इसीलिए गर्म हो चुकी वस्तु के भीतर स्थित उष्मा कहीं और संवाहित नहीं हो पाती.

ऐसी वस्तुएं अदृश्य इंफ्रारेड विकिरण प्रकाश छोड़ते हुए ठंडी होती हैं. अंतरिक्ष में सभी वस्तुएं इंफ्रारेड प्रकाश छोड़ती हैं और बहुत धीरे-धीरे ठंडी होती जाती हैं. लेकिन अंतरिक्ष में वस्तुओं के जिस भाग पर प्रकाश नहीं पड़ रहा होता है वह भाग भी इंफ्रारेड विकिरण छोड़ता रहता है लेकिन और भी धीरे छोड़ता है. यह भाग सूर्य या किसी अन्य तारे का प्रकाश पड़ रहे भाग से भी अधिक ठंडा होता है और चूंकि इस पर किसी भी प्रकार की ऊष्मा नहीं पड़ रही होती इसलिए यह और अधिक ठंडा हो जाता है.

जब हम अंतरिक्ष में कोई अंतरिक्ष यान या उपग्रह भेजते हैं तो हम उसे इस तरह से घुमाते रहते हैं कि उसके किसी भी एक भाग पर देर तक सूर्य का प्रकाश नहीं पड़ने पाए. इस तरह वह भयानक गर्म होने से बचा रहता है. अधिकांश अंतरिक्ष यानों को बेलनाकार बनाने के पीछे भी यही कारण होता है. अंतरिक्ष यानों के बाहर भी इस प्रकार के परावर्तक पदार्थों का उपयोग किया जाता है जो उन पर पड़ने वाली अधिकांश ऊष्मा और प्रकाश को परावर्तित कर देते हैं.

अंतरिक्ष बहुत विशाल और खाली है और अंतरिक्ष में उपस्थित कोई भी पिंड हर दिशा में हर समय विकिरण उत्सर्जित करता रहता है. ऐसे में यदि किसी पिंड को गर्म रखने के लिए दूर-दूर तक सूरज जैसा कोई तारा मौजूद ना हो तो वह पिंड अंततः अपनी पूरी ऊष्मा खो देता है और लगभग परम शून्य के निकट तापमान तक ठंडा हो जाता है. (featured image)

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