पृथ्वी पर मिलनेवाला सबसे दुर्लभ तत्व कौन सा है?

जिन्होंने हाइस्कूल के स्तर तक की कैमिस्ट्री पढ़ी है वे जानते हैं कि मेंडेलीफ़ की आवर्त सारणी में लगभग 100 तत्व हैं. इसके अलावा कुछ तत्व ऐसे भी हैं जो वैज्ञानिकों ने प्रयोगशालाओं में बनाए हैं. उनमें से कुछ तत्व जैसे तत्व क्रमांक 118 इतने दुर्लभ हैं कि उनका अस्तित्व ही नहीं है. ऐसे मानव निर्मित कुछ तत्वों के तो नाम भी नहीं हैं. इस प्रकार के कुछ तत्व पार्टिकल एक्सेलरेटर को चलाने पर एक सेकंड के अरबवें-खरबवें हिस्से के लिए अस्तित्व में आते हैं, फिर स्थाई तत्वों में बिखर जाते हैं. हम दावे से कह सकते हैं कि पूरे ब्रह्मांड में ऐसे किसी तत्व का एक परमाणु भी मौजूद नहीं होता. आपकी जानकारी के लिए बता दें कि तत्व क्रमांक 118 को अनयूनॉक्टियम (Ununoctium) का नाम दिया गया है जिसका शाब्दिक अर्थ है “तत्व क्रमांक 118”.

ये तो हुई बात मानव निर्मित तत्वों की. लेकिन प्रकृति में पाया जानेवाला एक तत्व इतना दुर्लभ है कि पूरी पृथ्वी पर उसकी मात्रा केवल 30 ग्राम है.

उस तत्व का नाम है एस्टाटीन (Astatine). आपने आवर्ती सारणी में हैलोजन समूह के तत्वों के बारे में पढ़ा होगा. इस समूह में से फ्लोरीन, क्लोरीन, ब्रोमीन और आयोडीन के बारे में तो सभी जानते हैं लेकिन अंतिम सदस्य एस्टाटीन के बारे में वैज्ञानिक भी लगभग न के बराबर जानते हैं. यह एक रेडियोएक्टिव तत्व है. इसका रासायनिक प्रतीक At है और इसका परमाणु क्रमांक 85 है. यह पृथ्वी की क्रस्ट में सबसे कम मात्रा में मिलनेवाला प्राकृतिक तत्व है. इसका निर्माण अन्य भारी रेडियोएक्टिव तत्व यूरेनियम और थोरियम के क्षय होने की प्रक्रिया के दौरान होता है. इसके सभी आइसोटोप्स अल्पजीवी होते हैं. इनमें से सबसे अधिक स्थाई है Astatine-210, लेकिन उसकी हाफ़-लाइफ़ भी केवल 8.1 घंटा होती है. इसका अर्थ यह है कि हमें किसी तरह एस्टाटीन की कुछ मात्रा मिल भी जाए तो भी इसकी आधी से ज्यादा मात्रा दिन बीतते-बीतते अपने आप नष्ट हो जाएगी. नष्ट होने के दोरान यह Bismuth-206 या Polonium-210 में रूपांतरित हो जाता है

एस्टाटीन तत्व को आज तक किसी ने भी नहीं देखा है क्योंकि इसका सैंपल तत्काल ही इसकी स्वयं की रेडयोएक्टिव ऊष्मा से वाष्प बन जाता है. वैज्ञानिक इसका प्रयास कर रहे हैं कि किसी प्रकार की कूलिंग करके इस तत्व को देखा जा सके.

एस्टाटीन का नाम ग्रीक शब्द astatos के आधार पर रखा गया है, जिसका हिंदी अर्थ है ‘अस्थाई’. वैज्ञानिकों ने अभी तक केवल इसकी 0.5 माइक्रोग्राम अर्थात 0.00000005 ग्राम मात्रा ही प्रयोगशाला में बनाई है. उनका यह अनुमान है कि यदि हम इसे देख पाते तो यह किसी गहरे रंग की धातु जैसा दिखता. स्पष्ट है कि आसे किसी तत्व का कोई उपयोग भी नहीं है जो हमें मिल ही नहीं सकता. इस प्रकार यह हमारे लिए सबसे अनुपयोगी तत्व भी सिद्ध हो जाता है. (featured image)

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