अनूठे आत्मबल और खेलभावना का उदाहरण

ऊपर फोटो में आप जिस व्यक्ति को देख रहे हैं उसका नाम है वेंडरली कोर्डेरियो दे लीमा (Vanderlei Cordeiro de Lima)

किस्सा यह है कि वह 2004 के समर ऑलंपिक की मैराथन दौड़ में सबसे आगे था. जिस गति से वह दौड़ रहा था, उसे स्वर्ण पदक मिलने में कोई भी संशय नहीं था. ऐसा मौका जीवन में बस एक बार ही मिलता है. यह जीत उसके लिए और उसके परिवार और देश के लिए बहुत बड़ी जीत होती.

वह फिनिशिंग लाइन पर पहुंचनेवाला ही था कि दर्शकों में से एक व्यक्ति ने उसके सामने आकर उसका रास्ता रोक दिया. उस व्यक्ति ने हजारों लोगों के सामने इरादतन उसपर हमला जैसा किया और वेंडरली के दौड़ने की गति में अवरोध हो गया.

वह छोटी सी कुछ सेकंड के भीतर घटी घटना वेंडरली का ध्यान भंग करने के लिए पर्याप्त थी. वेंडरली की मेंटल और फ़िज़िकल रिदम टूट गई. लंबी दूरी के धावकों के लिए अपनी लय को बनाए रखना बहुत ज़रूरी होता है.

इस दौरान उसके पीछे दौड़ रहे दो धावक उससे आगे निकल गए. वेंडरली ने दौड़ना जारी रखते हुए तीसरे स्थान पर रेस फिनिश की और कांस्य पदक प्राप्त किया.

इस घटना में अनूठी बात यह थी कि फिनिशिग लाइन पार करते वक्त वेंडरली के चेहरे पर मुस्कुराहट थी जबकि कुछ पल पहले ही उसके साथ भाग्य ने कितना भद्दा मजाक किया था. इस धावक का ऑलंपिक स्वर्ण पदक पलक झपकते ही उसके हाथ से फिसल गया था.

सोचकर देखिए कि आपने अपनी पूरी प्रोफेशनल ज़िंदगी एक सपने को पूरा करने के लिए कठोर-से-कठोर परिश्रम करते हुए बिता दी हो लेकिन वह सपना मंजिल के इतनी करीब जाकर इस तरह से टूट जाए. उस दिन वेंडरली को स्वर्ण पदक मिलने पर उसका नाम इतिहास की किताबों में दर्ज हो जाता, उसे मिलनेवाली खुशी और संतुष्टि का तो खैर हिसाब ही नहीं.

मंजिल के इतना करीब पहुंचने के बाद भी इस तरह से वंचित कर दिया जाना नियकि का बहुत ही  क्रूर और बेहूदा मजाक है. हम यही सोचते रह जाते हैं कि क्या होने जा था और क्या हो गया.

हो सकता है कि इस घटना के होने पर वेंडरली अपनी दौड़ रोक देता. वह उस व्यक्ति पर बुरी तरह से क्रोधित होते हुए उसे मार-पीट भी सकता था. वह ऑलंपिक के अधिकारियों के सामने अपने साथ घटी घटना का हवाला देकर शिकायत भी कर सकता था.

लेकिन वह संभला, दौड़ा, और उसने रेस को फिनिश किया.

इतना सब हो जाने पर भी वेंडरली के होठों पर क्रोध या अपमान के शब्द नहीं थे. उसकी दौड़ को रोक देने के दोषी व्यक्ति को उसने यूं ही जाने दिया.

उसे पीछे छोड़नेवाले धावक को स्वर्ण पदक जीतने पर ग्लानि हुई और उसने अपना मेडल वेंडरली को देने का ऑफ़र किया. इसपर वेंडरली ने कहा, “मैं अपने मेडल से खुश हूं. यह कांसे का है लेकिन मेरे लिए सोने के समान है.”

अनूठी सदाशयता, आत्म-सम्मान और खेलभावना दिखाने के लिए वेंडरली की चहुंओर सराहना की गई. उसे कई पुरस्कार मिले. उसने ही 2016 के रियो ऑलंपिक की मशाल प्रज्वलित की.

ऑलंपिक की मैराथन दौड़ में दौड़ना और उसमें अव्वल आने के लिए अटूट अनुशासन और आत्मबल चाहिए जो वेंडरली में कम न था. जो बात उसे सबसे अलग बनाती है वह यह है कि उसके अनुशासन और आत्मबल ने उसे इतना ताकतवर बनाया कि वह अपने साथ घटी दुर्भाग्यपूर्ण घटना को दरकिनार करके भी अव्वल आया. उसे अपने जीवन से कोई शिकायत नहीं है.

उस घटना के घटने के 14 साल बाद लोग यह भूल गए हैं कि उस दिन गोल्ड और सिल्वर मेडल जीतनेवाले कौन थे. लोगों आज भी उस दिन के ब्रॉंज मेडल विजेता को याद करते हैं.

ऐसा व्यक्ति वाकई महान कहलाने का अधिकारी होता है.

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