ज़िंदगी के कुछ ऐसे सबक होते हैं जिन्हें हम तभी सीखते हैं जब ज़िंदगी की शाम होने लगती है.
क्या आपने “लाल और नीले दानव” की जापानी लोक कथा सुनी या पढ़ी है?
कहते हैं कि बहुत-बहुत समय पहले जापान के गहवर पर्वतों से गुज़रते हुए घने जंगलों में दो दानव रहते थे. उनमें से एक लाल दानव था जिसका नाम आका-ओनी था, और दूसरा नीला दानव था जिसका नाम आओ-ओनी था. लाल दानव को बच्चे बहुत पसंद थे और वह उनके साथ हंसना-खेलना-खिलखिलाना चाहता था. लेकिन बच्चे उन दानवों के करीब नहीं आते थे. उनसे डरते थे.
पास ही के गांव में बहुत से बच्चे रहते थे. एक दिन लाल दानव ने उन्हें अपने घर में साथ-साथ खेलने के लिए बुलाया.
लेकिन एक भी बच्चा लाल दानव के घर नहीं आया. लाल दानव बहुत दुखी हो गया. उसने अपने आप से कहा, “मैं तो बहुत ही प्यारा और दयालु दानव हूं, फिर भी सब मुझसे डरते हैं. कोई भी मेरे पास नहीं आना चाहता”.
नीले दानव ने अपने दोस्त को दुखी देखा और उसे बुरा लगा. उसने लाल दानव से कहा, “सुनो, हम एक योजना बनाते हैं.”
नीले दानव की योजना यह थी कि वह बच्चों को डराएगा और लाल दानव बच्चों को उससे बचाएगा. इस तरह लाल दानव बच्चों के करीब आ जाएगा और बच्चों को यह पता चल जाएगा कि लाल दानव उन्हें नुकसान नहीं पहुंचाना चाहता. योजना के अनुसार उन्होंने जैसा सोचा था वैसा ही हुआ. बच्चे लाल दानव को बहुत पसंद करने लगे और उसके साथ खेलने लगे.
दिन भर बच्चों के साथ जी भर कर खेलने के बाद जब लाल दानव अपने घर लौटा तो उसे नीले दानव का पत्र रखा मिला. पत्र में नीले दानव ने लिखा था, “मेरे प्यारे लाल दानव, यदि लोगों को यह पता चल जाएगा कि तुम बुरे नीले दानव के दोस्त हो तो वे अपने बच्चों को तुम्हारे साथ कभी नहीं खेलने देंगे. इसीलिए मैं हमेशा-हमेशा के लिए जा रहा हूं. तुम बच्चों के साथ खेलना और हमेशा खुश रहना. अलविदा. तुम्हारा दोस्त, नीला दानव.”
लाल दानव बहुत रोया, “नीला दानव चला गया! मेरा प्यारा दोस्त चला गया! मैंने उसे खो दिया!” वह बहुत रोया.
उस दिन के बाद लाल दानव और नीले दानव ने एक-दूसरे को कभी नहीं देखा.
अब मैं आपसे यह कहना चाहता हूं कि… अपनी पूरी ईमानदारी से मुझे यह बताइए कि आपमें से कितने लोग किसी दुष्कर लक्ष्य का पीछा करते वक्त या किसी दुर्लघ्य अवरोध को काबू में करने का प्रयास करते-करते उन बातों से आंखें फेर लेते हैं जो वाकई कहीं अधिक मायने रखती हैं.
बच्चों की कहानियों में ही हमें कोई मॉरल-ऑफ़-द-स्टोरी या नैतिक शिक्षा मिलती है. असल ज़िंदगी हमें अक्सर ही कोई सीख नहीं देती. लोग इसका निचोड़, इसका एसेंस लेने के लिए पूरी उम्र बिता देते हैं – और बहुत देर हो जाती है.
इंटरनेट पर दशकों से घूमते-फिरते फेमस लास्ट वर्ड्स आपने पढ़ होंगे – काश मैंने इतनी मेहनत न की होती. उस वक्त को मैं अपने परिवार के साथ हंसते-खेलते बिता सकता था, अपने बच्चों को पल-पल बढ़ते देख सकता था, अपनी पत्नी के बालों को रेशा-रेशा सन होते देख सकता था…
मृत्यु की दहलीज पर बैठे लोगों के मन में ये बातें सबसे ज्यादा उमड़ती-घुमड़ती हैं. आसन्न मृत्यु जब पलंग की चौखट पर बैठकर अपनी काली परछांई व्यक्ति की ओर बढ़ाती है तभी वह एकाएक चीजों को नई रौशनी में साफ-साफ देखने लगता है और इसका अनुभव करता है कि अपने परिजनों और मित्रों के साहचर्य के आगे दुनिया की सारी दौलत और सफलताएं तुच्छ हैं.
तो अगली बार जब आप अपने प्रियजनों के साथ बैठकर भोजन कर रहे हों तो प्लीज़ अपना फोन एक ओर रख दीजिए. बॉस का वह कॉल बाद में अटेंड किया जा सकता है. ऑफिस की ई-मेल भोजन के बाद भी खोली जा सकती है. किसी की प्रोफाइल फोटो बाद में भी लाइक की जा सकती है, और किसी मोटीवेशनल स्टोरी को बाद में भी शेयर किया जा सकता है.
ऐसा व्यक्ति मत बनिए जो अपने परिजनों और वास्तविक दुनिया के दोस्तों को ताक पर रखता हो. ऐसा व्यक्ति मत बनिए जो टूटती सांसो और भरे हुए गले के साथ मन में बेहद संताप और अफसोस लिए ये अंतिम शब्द कहने की कोशिश कर रहा हो कि “मैं तुमसे बहुत प्यार करता हूं.”
इतनी देर से कहा और इतना कम!
जैसा शैंक्स वांग ने क्वोरा पर लिखा.
Photo by Pablo Heimplatz on Unsplash
बहुत ही सुन्दर कहानी और विचारों के लिए धन्यवाद …
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achhi bat
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