मानव के व्यवहार और चरित्र की एक अंडर-रेटेड विलक्षणता है जिसे मैं अपनी आपबीती के साथ आपको बताने जा रही हूं. अंडररेटेड चीजें या बातें वे होती हैं जो वास्तव में बहुत महत्वपूर्ण होती हैं लेकिन लोग उन्हें हमेशा कम करके आंकते हैं.
मैंने यूनिवर्सिटी में ग्रेजुएशन के दौरान सबसे कठिन कोर्स में एडमिशन लिया. इस कोर्स को करनेवाले ज्यादातर स्टूडेंट्स फेल हो जाते थे. लगभग सारे स्टूडेंट्स का यह मानना था कि कोर्स के प्रोफेसर के कारण ही इतनी अधिक संख्या में स्टूडेंट्स पास नहीं हो पाते थे.
कोर्स के पहले ही दिन प्रोफेसर ने 300 स्टूडेंट्स की क्लास को यह चेतावनी दी कि यह कोर्स कोई मामूली कोर्स नहीं है जिसे स्टूडेंट्स परीक्षा के एक दिन पहले पढ़कर पास कर जाएंगे. मैंने मन में हंसते हुए कहा, “क्या वाहियात बात है…”. अब तक मेरे सारे टीचर्स यही कहते आए थे और मैंने कम पढ़ने के बावजूद क्लास में हमेशा टॉप किया.
मैंने वाकई परीक्षा के एक दिन पहले ही पढ़ाई की और… मैं फेल हो गई.
मेरे साथ ऐसा पहले कभी नहीं हुआ था. मैंने अपने रिपोर्ट कार्ड को देखा और मुझे लगा कि अब मैं किसी भी हालत में “C” ग्रेड से अधिक नहीं ले पाऊंगी. इस तरह मेरी नर्सिंग के कोर्स में आगे एडमिशन लेने की संभावना समाप्त हो गई. मेरे पास इतने पैसे नहीं थे कि मैं इस कोर्स को दोबारा कर पाती.
मैं भीतर तक हिल गई थी. मैं अपने सहपाठियों के सामने प्रोपेसर से कोर्स ड्रॉप करने की स्लिप नहीं लेना चाहती थी.
मैंने प्रोफेसर को ई-मेल भेजने का निश्चय किया. मेंने उन्हें लिखाः मैं अपसे पहले कभी नहीं मिली. मुझे इस बात का दुख है कि मुझे आपके कोर्स से निकलना पड़ रहा है. मैं यह कोर्स पास नहीं कर पाई और इसके लिए मैं ही जिम्मेदार हूं. क्या आप मुझे अपने ऑफिस चैंबर में ड्रॉप-स्लिप दे सकते हैं? मैं बहुत लज्जित हूं और उम्मीद करती हूं कि भविष्य में मैं यह कोर्स पास कर सकूंगी. पिलहाल मेरे पास कोर्स को रिपीट करने के लिए पैसे नहीं हैं. मैं यह कोर्स अब साल भर बाद ही कर पाउंगी.
प्रोफेसर ने मेरी मेल के जवाब में यह लिखा कि वे मुझसे क्लास समाप्त होने के बाद मिलना चाहते हैं. अब मेरे पास करने के लिए कुछ बाकी नहीं रह गया था. मैंने क्लास खत्म होने के बाद सबके जाने का इंतजार किया और प्रोफेसर के पास ड्रॉप-स्लिप लेने के लिए गई.
प्रोफेसर: “क्या तुम ही हैली हो?”
मैं: “जी, सर. आप प्लीज़ मेरी ड्रॉप-स्लिप पर साइन कर दीजिए.”
प्रोफेसर: “तुम्हारी मेल ताज़ा हवा के झोंके की तरह आई. तुम्हें पता है कि कितने सारे स्टूडेंट्स कोर्स फेल कर जाने के लिए मुझे जिम्मेदार ठहराते हैं जबकि अपनी पहली ही क्लास में मैं उन्हें बता देता हूं कि पास होने के लिए उन्हें कितनी पढ़ाई करनी पड़ेगी? मैं तुम्हारे लिए इन्कम्पलीट स्लिप पर साइन करूंगा जिससे तुम्हें फीस दिए बिना अगले सेमेस्टर में इसी कोर्स को रिपीट करने का मौका मिलेगा. लेकिन तुम्हें मेरी बताई सारी किताबें पढ़नी होंगी और सारी क्लास अटेंड करनी होंगी… बजाए इसके कि अगली बार भी तुम परीक्षा के एक दिन पहले ही किताब उठाओ. प्लीज़, मुझे मेरे निर्णय पर शर्मिंदा होने का मौका मत देना.”
मैं अवाक थी. मुझे पता था कि मैं यह डिज़र्व नहीं करती थी. इस अनुभव ने मुझमें कई सकारात्मक बदलाव लाए, मेरी रीड़िंग हैबिट्स सुधर गईं. मैंने कड़ी मेहनत की और क्लास में नंबर वन से पास हुई.
वह कौन सी बात थी जिसे मैं अंडर-रेटेड बताना चाह रही थी? : वह है इस बात को स्वीकार करना कि हम गलत हैं और अपनी गलती के लिए क्षमाप्रार्थी होना.
इस अनुभव ने मुझे वाकई गहरे तक प्रभावित किया. इसने मुझे बहुत उदार बनाया. पहले मैं बहुत गर्वित रहा करती थी और अपनी गलतियों के लिए माफी मांगने में मुझे बड़ी दिक्कत होती थी.
अब मैं उन लोगों की कद्र करती हूं जो अपनी गलती पर शर्मिंदा होते हैं. अपनी गलतियों को स्वीकर कर पाना वाकई बहुत कठिन है. हर व्यक्ति आसानी से अपनी गलतियों और दोषों का स्वीकरण नहीं करता.
यह मानव स्वभाव का एक अंडर-रेटेड ट्रेट या लक्षण है. इसे लोग बहुत कम करके आंकते हैं. अपनी गलतियों को स्वीकार करना कमजोरी का द्योतक नहीं है. यह विनम्रता और चरित्र की दृढ़ता दर्शाता है.
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