हम हमेशा से ही यह पढ़ते आए हैं कि सूर्य हाइड्रोजन और हीलियम गैस से बना विराट तारा है. यदि यह गैस से बना है तो पृथ्वी समेत अन्य ग्रहों-उपग्रहों पर गुरुत्वाकर्षण प्रभाव क्यों डालता है?
यहां यह जानना रोचक हो सकता है कि अंतरिक्ष के कई बड़े पिंड जैसे पृथ्वी और अन्य ग्रह आदि 99% ठोस नहीं हैं.
पृथ्वी का व्यास लगभग 12,500 किलोमीटर है और इसपर वह ठोस पपड़ी जैसी जमीन जिसपर हम खड़े होते हैं वह केवल 25-50 किलोमीटर ही मोटी है. इसके नीचे जो कुछ भी है वह पिघली हुई द्रव अवस्था में है.
एक वॉलीबाल की कल्पना करें जिसमें पानी भर दिया गया हो. हमारी पृथ्वी बिल्कुल ऐसी ही है. यह बहुत राहत की बात है कि जमीन की यह पतली पपड़ी बहुत विरल परिस्तिथियों में ही टूटती है. ये पपड़ियां टेक्टोनिक मूवमेंट के कारण एक-दूसरे पर सरकती और टकराती रहती हैं. इस प्रक्रिया में ये कभी-कभी टूट भी जाती हैं और भीतरी द्रव पदार्थ लावा के रूप में बाहर निकलने लगता है. ज्वालामुखी के फूटते समय हम यह हमेशा ही होते देखते हैं. ठोस जमीन हमारी पृथ्वी पर बाहरी त्वचा के जैसी है और इसके नीचे जो कुछ भी है वह द्रव ही है.
अब यदि हम सूर्य की भीतरी संरचना को देखें तो पाएंगे कि टेक्नीकली यह गैसों से मिलकर ही बना है. लेकिन इन गैसों की पर्त वास्तव में ठोस कंक्रीट से भी कई-कई गुना ठोस और कठोर है. इसका घनत्व लेड और यूरेनियम से भी कहीं अधिक है.
लेकिन इन सारी बातों का संबंध गुरुत्व से नहीं है. घनत्व, दबाव, और इस जैसे अन्य कारक यहां महत्वहीन हैं. हालांकि सापेक्षता के सिद्धांत के अंतर्गत इनका कुछ महत्व अवश्य है लेकिन उसकी बात करना विषय को जटिल बना देगा.
गुरुत्वाकर्षण के संबंध में जो बात सबसे महत्वपूर्ण है वह है वस्तु या पिंड का द्रव्यमान. सौरमंडल में सूर्य का गुरुत्व सर्वाधिक इसलिए है क्योंकि इसका द्रव्यमान पृथ्वी से लाखों गुना (लगभग 3 लाख गुना) अधिक है. यदि सूर्य एकाएक ठंडा होकर जम भी जाएगा तो भी इसके गुरुत्वाकर्षण बल में कोई परिवर्तन नहीं आएगा. (featured image)
बहुत ही अच्छी जानकारी है…….
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