इंटरनेट के युग में तो आजकल टीनेजर बालक-बालिकाओं को भी यह पता चल जाता है कि स्त्री-पुरुष के सैक्स करने के नौ महीने बाद बच्चे का जन्म होता है लेकिन शरीर रचना (anatomy) और शरीर-क्रिया विज्ञान के (physiology) अनुसार इन दोनों घटनाओं के पहले और बाद भी बहुत सी घटनाएं घटती रहती हैं जिनसे स्त्री के शरीर के भीतर एक सुंदर शिशु आकार लेता है. सबसे पहले हम गर्भावस्था के घटित होने के बारे में जानेंगेः
स्त्री के शरीर में अंडाणु कैसे बनते हैं?
स्त्रियों के लिए गर्भावती हो सकने से जुड़ी पहली महत्वपूर्ण घटना उनके अंडाशयों (ovaries) में होती है. अंडाशय बादाम के आकार की दो ग्रंथियां होती हैं जो स्त्री के गर्भाशय (uterus) के दोनों ओर होती हैं.
अंडाशय किसी स्त्री के जन्म से ही अंडाणुओं से भरे होते हैं. स्त्री को उसके जीवन भर के लिए अंडाणुओं की सप्लाई उसके जन्म से ही मिल जाती है. ये लगभग संख्या में 10 से 20 लाख होते हैं. ये अंडाणु स्त्री के जन्म लेते ही नष्ट होना शुरु हो जाते हैं और नए अंडाणु नहीं बनते.
स्त्रियां अपने पूरे प्रजनन काल में माहवारी या मासिक धर्म (menstruation या periods) के शुरु होने से लेकर इसकी समाप्ति रजोनिवृत्ति (menopause) तक लगभग 400 अंडाणु रिलीज़ करती हैं. रजोनिवृत्ति सामान्यतः 45 से 55 वर्ष के बीच होती है, तब मासिक धर्म पूरी तरह से बंद हो जाता है और अंडाशयों में से सारे अंडाणु निकल चुके होते हैं.
स्त्रियों का मासिक धर्म 28 दिनों के चक्र के रूप में होता है. इसके 9वें और 21वें दिन के बीच में एक अंडाणु परिपक्व होकर किसी एक अंडाशय से निकलता है और फैलोपियन ट्यूब (fallopian tube) द्वारा खींच लिया जाता है. ये 4 इंच की ट्यूब अंडाशय को गर्भाशय से जोड़ती हैं.
इस रिलीज़ को अंडोत्सर्ग (ovulation) कहते हैं. इसके होते ही स्त्री के गर्भवती हो सकने की घड़ी टिक-टिक करने लगती है. अंडाणु अंडोत्सर्ग के 24 घंटे बाद तक ही जीवित रह सकता है. गर्भ ठहरने के लिए इसका शुक्राणु (sperm) से मिलकर निषेचित (fertilise) होना ज़रूरी होता है. इस अवधि में यदि यह किसी स्वस्थ शुक्राणु से मिल जाता है तो नए जीवन के आकार लेने की प्रक्रिया शुरु हो जाती है.
यदि ऐसा नहीं होता है तो इस अंडाणु की जीवन यात्रा वहीं समाप्त हो जाती है. यह या तो भीतर ही गल जाता है, या शरीर द्वारा सोख लिया जाता है, या मासिक धर्म के रक्त-प्रवाह के द्वारा शरीर से बाहर निकाल दिया जाता है. अंडाणु का निषेचन नहीं हो सकने पर अंडाशय एस्ट्रोजन (estrogen) और प्रोजेस्टेरोन (progesterone) हार्मोन बनाना बंद कर देते हैं (ये दोनों हार्मोन गर्भावस्था बनाए रखना सुनिश्चित करते हैं). एस्ट्रोजन गर्भाशय की दीवार को मोटा करके उसे गर्भावस्था के लिए तैयार करता है. यदि स्त्री गर्भवती नहीं होती है तो एस्ट्रोजन और प्रोजेस्टेरोन का स्तर गिर जाता है. इस दोनों हार्मोनों के स्तर में होनेवाली गिरावट से मासिक धर्म की शुरुआत होती है. गर्भाशय की दीवार में बनी पोषक पदार्थ की पर्त गलकर मासिक धर्म के रक्त के साथ योनि (vagina) से निकल जाती है. जब यह पर्त पूरी तरह से निकल जाती है तो शरीर दूसरे मासिक चक्र के लिए तैयार हो जाता है.
पुरुष के शरीर में शुक्राणु कैसे बनते हैं?
पुरुष के शरीर में लाखों शुक्राणु हर समय बनते रहते हैं. इन शुक्राणुओं का एक ही उद्देश्य होता है – अंडाणु से मिलकर उसे निषेचित करना. स्त्रियों के शरीर में अंडाणुओं की संख्या जन्म से ही निश्चित होती है लेकिन पुरुषों के शरीर में ये यौवनकाल के आरंभ में बनना शुरु होते हैं और प्रायः जीवन भर बनते रहते हैं. एक शुक्राणु कोशिका को बनने में लगभग से 64 से 72 दिन तक लग सकते हैं.
एक औसत शुक्राणु पुरुष के शरीर में केवल कुछ सप्ताह तक ही जीवित रह सकता है. पुरुष के एक स्खलन (ejaculation) में लगभग 25 करोड़ शुक्राणु निकलते हैं. पुरुषों के अंडकोशों में लगभग 10 करोड़ शुक्राणु प्रतिदिन बनते हैं. शुक्राणुओं के बनने की क्षमता पुरुषों में 40 साल के बाद धीरे-धीरे कम होने लगती है. पुरुषों के शरीर में इतने अधिक शुक्राणु क्यों बनते हैं इसकी चर्चा दूसरे लेख में की जाएगी.
शुक्राणु पुरुष के लिंग के नीचे लटकते अंडकोशों (testicles) में बनते हैं. अंडकोश पुरुष के शरीर के बाहर इसलिए होते हैं क्योंकि शुक्राणु शरीर के तापमान से कम तापमान पर बनते हैं. यही कारण है कि गर्मी में अंडकोश फैल जाते हैं और ठंड में सिकुड़ जाते हैं. शरीर का औसत तापमान 96.6 डिग्री फैरनहाइट होता है लेकिन शुक्राणुओं को लगभग 94 डिग्री का तापमान चाहिए होता है. शुक्राणु अंडकोश में एपीडिडाइमिस (epididymis) नामक भाग में रहते हैं और बाहर निकलने के ठीक पहले वीर्य (semen) में मिलते हैं.
पुरुष के कामुक रूप से उत्तेजित होने पर अंडकोश में मौजूद काउपर ग्रंथि (cowper glands) एक चिपचिपा पदार्थ उत्पन्न करती हैं. यह नमकीन पदार्थ एक बूंद की मात्रा में निकलकर पेशाब की नली (urethra) की अम्लीयता (acidity) को खत्म कर देता है क्योंकि अम्लीयता शुक्राणुओं को हानि पहुंचाती है. शुक्राणु अपनी पूंछ जैसी संरचना को फटकारते हुए गति करते हैं.
एक स्खलन में इतनी अधिक संख्या में शुक्राणु निकलने पर भी उनमें से केवल एक शुक्राणु ही अंडाणु को निषेचित कर सकता है. जुड़वां बच्चे भी एक ही शुक्राणु से होते हैं, दो से नहीं. होने वाले बच्चे का लिंग निर्धारण भी इसी से होता है कि किस प्रकार के शुक्राणु ने अंडाणु को पहले निषेचित किया. जिस शुक्राणु में Y क्रोमोसोम होता है वह पुरुष बालक को जिसमें X क्रोमोसोम होता है वह स्त्री बालिका को उत्पन्न करता है.
क्या काम-क्रीडा के चरमोत्कर्ष (orgasm) से बच्चा होने की संभावना बढ़ जाती है?
ओगाज़्म मन को अतिशय प्रसन्न करनेवाली अनुभूति है लेकिन इसका एक जीवविज्ञानी उद्देश्य भी है. पुरुषों में ओगाज़्म की क्रिया होने पर वीर्य पिचकारी जैसी तेज धार के रूप में स्त्री की योनि के मार्ग से गर्भाशय तक पहुंच जाता है. इससे वीर्य को फैलोपियन ट्यूब तक कुछ ही मिनट में पहुंचने में आसानी हो जाती है और यह अंडाणु तक शीघ्रता से पहुंच सकता है.
स्त्रियों का ओगाज़्म भी गर्भ ठहरने में सहायता करता है. कुछ रिसर्च यह बताती हैं कि ओगाज़्म के समय उनकी योनि में लहरदार संकुचन होता है जिससे वे वीर्य को अपने भीतर खींच लेती हैं. जिससे वीर्य शीघ्रता से गर्भाशय तक पहुंच जाता है, लेकिन इस बात का कोई प्रमाण नहीं है.
लेकिन ओगाज़्म के होने या न होने से गर्भावस्था स्थापित होने की संभावना पर कोई खास फर्क नहीं पड़ता.
बहुत से युगल यह भी मानते हैं कि किसी खास पोजीशन में सैक्स करने से उन्हें गर्भावस्था स्थापित करने में मदद मिलेगी लेकिन इन बातों का कोई आधार नहीं है. खड़े होकर सहवास करने से भी गर्भ ठहर सकता है.
एक महीने में किसी युगल को केवल दो-तीन दिन ही ऐसे मिलते हैं जब सैक्स करने पर गर्भ ठहर सकता हो. इसलिए मासिक धर्म के बीच के दिनों में कम-से-कम हर दूसरे दिन सैक्स करने से इसकी संभावना बढ़ जाती है.
कौन सा शुक्राणु अंडाणु से पहले मिलता है?
यह केवल चांस की बात है. कुछ लोगों का मानना है कि सैक्स के बाद यदि स्त्री अपने कूल्हों के नीचे तकिया लगाकर लेटी रहे तो उसकी कमर के ढलान पर होने के कारण शुक्राणु भीतर प्रतीक्षा कर रहे अंडाणु तक जल्दी पहुंचते हैं लेकिन इसका भी कोई साक्ष्य नहीं है.
सैक्स की क्रिया के पहले और इसके दौरान स्त्री और पुरुष के शरीर में अनेक गतिविधियां हो रही होती हैं. पुरुष के करोड़ों शुक्राणुओं को अंडाणु तक पहुंचने के पहले अनेक बाधाओं को पार करना पड़ता है.
इनमें से सबसे पहली बाधा होती है स्त्री की योनि के भीतर अम्ल का स्तर (acid level) जो शुक्राणुओं के लिए खतरनाक होता है. इसके बाद गर्भाशय में बन रही म्यूकस झिल्ली भी बाधा बनती है क्योंकि शुक्राणुओं को इसे भेदने में कठिनाई होती है. यह झिल्ली उन दिनों तो अधिक मोटी होती है जब स्त्री का शरीर उर्वर नहीं होता लेकिन मासिक धर्म के बीच के दिनों में यह चमत्कारिक रूप से इतनी पतली हो जाती है कि ताकतवर शुक्राणु इसे भेदकर पार जा सकते हैं.
लेकिन यही काफ़ी नहीं है. शुक्राणुओं को स्त्री के शरीर के भीतर गर्भाशय के मुख से होते हुए फैलोपियन ट्यूब तक केवल 7 इंच की यात्रा करनी होती है लेकिन ये छोटी दूरी तय करना उनके लिए बहुत दुर्गम होता है.
यदि शुक्राणुओं को फैलोपियन ट्यूब्स में कोई अंडाणु नहीं मिलता है तो वे वहां पांच दिनों तक जीवित रह सकते हैं. लेकिन पुरुष के शरीर के बाहर निकलते ही शुक्राणु बड़ी संख्या में मरने लगते हैं इसलिए प्रायः कुछ दर्जन भाग्यशाली शुक्राणु ही अंडाणु तक पहुंच पाते हैं. बाकी स्त्री के शरीर में यहां-वहां फंस जाते हैं, या गलत फैलोपियन ट्यूब में चले जाते हैं, या रास्ते में मर जाते हैं.
लेकिन जो शुक्राणु अंडाणु तक पहुंचने में सफल हो जाते हैं उनमें से कोई एक शुक्राणु ही अंडाणु की ऊपरी सतह को भेदकर उसके भीतर जाने में सफल हो पाता है. जैसे ही अंडाणु के भीतर कोई शुक्राणु सफलतापूर्वक पहुंच जाता है, अंडाणु का स्वरूप तत्काल बदल जाता है ताकि कोई अन्य शुक्राणु अब भीतर न आ सके.
इसके बाद कई चमत्कारिक घटनाएं घटित होती हैं. शुक्राणु में मौजूद आनुवांशिक सामग्री (genetic material) अंडाणु की आनुवांशिक सामग्री से मिल जाती है और एक नई कोशिका का जन्म होता है जो बहुत तेजी से विभाजित होने लगती है. कोशिकाओं के इस गुच्छे को भ्रूण (embryo) कहते हैं. लेकिन स्त्री तब तक गर्भवती नहीं होती जब तक यह भ्रूण फैलोपियन ट्यूब से निकलकर गर्भाशय में स्वयं को स्थापित नहीं कर लेता.
कभी-कभी यह भ्रूण गर्भाशय में न जाकर स्वयं को किसी अन्य स्थान जैसे फैलोपियन ट्यूब में ही फंसा लेता है. इसे अस्थानिक गर्भावस्था (ectopic pregnancy) कहते हैं. यह स्थिति चिंताजनक होती है और इसका चिकित्सकीय समाधान करना बहुत ज़रूरी होता है नहीं तो वहां बढ़ता हुआ भ्रूण फैलोपियन ट्यूब को तोड़ देता है. सभी गर्भावस्थाओं में अस्थानिक गर्भावस्था के होने की संभावना 1 से 2 प्रतिशत मामलों में होती है.
भ्रूण को फैलोपियन ट्यूब से निकलकर गर्भाशय में आने में दो से तीन दिन तक लग सकते हैं. आमतौर पर स्त्री को गर्भवती होने का पता कुछ सप्ताह बाद तो पीरियड्स की तारीख निकल जाने से चलता है. गर्भवती होने के लक्षण कई बार देरी से प्रकट होते हैं इसलिए बाजार में मिलने वाली प्रेगनेंसी टेस्ट किट अब एक मिनट में इसके होने की पुष्टि करने के लिए बहुत उपयोगी सिद्ध हुई है.
गर्भाशय में स्थापित हो जाने के बाद भ्रूण नन्हे शिशु के रूप में आकार लेने लगता है. कुछ सप्ताह में ही इसके शरीर के अंग एक-एक करके बनने लगते हैं. (featured image)