यूरोपा बृहस्पति ग्रह के चार गैलीलियन चंद्रमाओं में से सबसे छोटा है और यह बृहस्पति का छठवां सबसे नज़दीकी चंद्रमा है. यह सौरमंडल का भी छठवां सबसे बड़ा चंद्रमा है. इसकी खोज गैलीलियो ने सन् 1610 में की थी और इसे यूरोपा (Europa) नाम दिया.
सूर्य से यूरोपा की औसत दूरी लगभग 78 करोड़ किलोमीटर है. बृहस्पति से इसकी दूरी 6,70,900 किलोमीटर है और यह हमारे साढ़े तीन दिनों में बृहस्पति की परिक्रमा करता है.
यूरोपा का आकार हमारे चंद्रमा से कुछ छोटा है और यह मुख्यतः सिलिकेट की चट्टानों और बर्फीले पानी की पपड़ी से ढंका है. इसकी कोर संभवतः लोहे और निकल से बनी है. इसके वातावरण में मुख्यतः ऑक्सीजन है. इसकी सतह पर बहुत सी पपड़ियां और दरारें दिखती हैं और इसपर क्रेटर न-के-बराबर हैं. अनेक अभियानों के माध्यम से हमें इसके बारे में बहुत अधिक जानकारी मिल चुकी है.
यूरोपा के बारे में सबसे आश्चर्यजनक तथ्य यह है कि सूर्य से 78 करोड़ किलोमीटर दूर होने के बाद भी इसपर बहुत अधिक मात्रा में पानी द्रव रूप में उपस्थित है. ऐसा इसलिए है क्योंकि यूरोपा के आसपास हमेशा बहुत सारी हलचल होती रहती है.
यूरोपा बृहस्पति जैसे अतिविशाल ग्रह की परिक्रमा करता है इसलिए इसपर बृहस्पति के प्रबल गुरुत्व के कारण बहुत सारी ज्वारीय हलचल होती है. इसके बहुत निकट ही बृहस्पति की परिक्रमा करनेवाले अन्य तीन विशाल उपग्रह इसके पास से गुज़रते रहते हैं और वे भी हर बार इसे अपनी ओर खींचते रहते हैं. इसी खींचतान में यूरोपा फैलता-सिकुड़ता रहता है और इसके भीतर गर्मी उत्पन्न होने लगती है.
यूरोपा की सतह पर मौजूद पानी पहले तो गर्म होकर वाष्पित होता है फिर निर्वात के संपर्क में आने पर जम जाता है. यही कारण है कि यूरोपा बर्फ की चादर से ढंका रहता है और वैज्ञानिक यह मानते हैं कि इस बर्फ के नीचे द्रव पानी का विशाल सागर है जो सौरमंडल में पृथ्वी के अलावा केवल यूरोपा में ही हैं.
यूरोपा में गर्मी उत्पन्न होने का एक कारण यह भी हो सकता है कि बृहस्पति का शक्तिशाली चुंबकीय क्षेत्र यूरोपा के अणुओं को आंदोलित करता है जिससे इसके ताप में वृद्धि हो जाती है. यूरोपा का नजदीकी चंद्रमा इओ (Io) बृहस्पति के और अधिक समीप है और इसे बृहस्पति के शक्तिशाली चुंबकीय क्षेत्र से और अधिक ऊर्जा मिलती है जिसके कारण से इओ और दूसरे चंद्रमाओं के बीच शक्तिशाली प्रतिक्रियाएं होने लगती हैं.
यूरोपा की बृहस्पति से दूरी बदलती रहती है जिसके कारण इसपर पड़नेवाला बृहस्पति का गुरुत्वीय प्रभाव भी परिवर्तित होता रहता है. यह सब करोड़ों वर्षों से हो रहा है और इससे इतनी ऊष्मा उत्पन्न होती है जिससे यूरोपा की बर्फ पिघलती और जमती रहती है और इसकी सतह के नीचे द्रव पानी मौजूद रहता है. (featured image)