प्राचीन काल में किसी भी बड़े पर्वत के निकट रहनेवाले लोगों को यह लगता था कि वही विश्व का सबसे विशाल पर्वत है, फिर चाहे वह तंजानिया स्थित किलिमिंजारो (Kilimanjaro) हो या ईरान स्थित देमावेंद (Demavend) हो या यूरोप स्थित मों ब्लां (Mont Blanc) पर्वत हो.
प्राचीन यूनानी ऑलंपस (Olympus) पर्वत को विश्व का सबसे ऊंचा पर्वत मानते थे. यह वाकई बादलों से भी ऊपर व दिव्य दिखता था.

Mount Olympus
वास्तविकता में ऑलंपस केवल 2,918 मीटर ऊंचा है, लेकिन यह ग्रीस (Greece) का सबसे विशाल पर्वत है. यही कारण है कि वे इसे अपने प्रधान देवता ज़्यूस (Zeus) और अन्य देवताओं का निवास स्थल मानते थे. उनकी कथाओं में यह वर्णित है कि दो दानवों ने ज़्यूस को स्वर्ग के सिंहासन से बेदखल करने के लिए पेलियन पर्वत (Pelion, 1,624 मीटर) को ओसा पर्वत (Ossa, 1,978 मीटर) पर उठाकर रख दिया फिर भी वे ऑलंपस तक नहीं पहुंच पाए.
बाद में यूनानियों ने दुनिया भर की यात्राएं कीं. वर्तमान मोरक्को के एटलस (Atlas) पर्वत को देखने पर वे यह जान गए कि दुनिया में ऑलंपस से भी ऊंचे कई पर्वत हैं.
एटलस पर्वतमाला की ऊंचाई केवल 4,000 मीटर है. यूनानी मानते थे कि यह पर्वतमाला एक योद्धा थी जिसने आकाश को अपने कंधों पर उठाकर रखा था, लेकिन गोर्गोन की मेडूसा (Medusa the Gorgon) के सर को देख लेने पर वह पत्थर का बन गया.
दूसरी ओर, ईसाई लोग अरारात (Ararat) पर्वत को सबसे ऊंचा पर्वत मानते थे. इसकी ऊंचाई 5,137 मीटर है. बाइबल के अनुसार महाजलप्रयल के बाद नूह की नौका इसी पर्वत की चोटी पर टिकी थी. चूंकि ईसाइयों को इससे ऊंचे किसी पर्वत की जानकारी नहीं थी इसलिए उन्होंने नौका को टिकाने के लिए इसी पर्वत की चोटी को चुना. 18वीं शताब्दी के आरंभ में यूरोपियों के कई दल नौका के टुकड़ों को खोजने के लिए इस पर्वत पर गए लेकिन उन्हें एक तिनका भी नहीं मिला.
कैनैरी द्वीपसमूह (Canary Islands) में स्थित टेइड (Teide) पर्वत को भी लंबे समय तक सबसे ऊंचा पर्वत माना जाता रहा जबकि इसकी ऊंचाई केवल 3,718 मीटर है लेकिन द्वीप पर होने और इसके निकट कोई अन्य भूसंरचना नहीं होने के कारण यह बहुत दूर से और विशालकाय दिखता था. 15वीं शताब्दी के एक वेनिस के यात्री ने तो इसे 90 किलोमीटर ऊंचा तक बता दिया था.
लेकिन इस सबमें एक बड़ा परिवर्तन तब आया जब एक स्पेनी सैलानी बार्थोलोम रुइज़ (Bartolomé Ruiz) ने दुनिया को इक्वाडोर (Ecuador) स्थित चिंबोराज़ो (Chimborazo) ज्वालामुखी के बारे में बताया. इसे देखने पर किसी को भी यह अविश्वास नहीं रह गया कि 6,263 मीटर ऊंचा चिंबोराज़ो ही विश्व का सबसे ऊंचा पर्वत था. लगभग 250 वर्षों तक सभी इसे सबसे ऊंचा पर्वत मानते रहे. यह जानना भी रोचक है कि भूमध्य रेखा पर स्थित होने के कारण वास्तव में चिंबोराज़ो की चोटी की उंचाई पृथ्वी के केंद्र से सबसे अधिक है.

Mount Chimborazo
1770 में ब्रिटिश खोजियों ने हिमालय पर्वतमाला का अनुसंधान करना प्रारंभ किया और यह कहा कि यह एंडीज़ (Andes) पर्वतमाला से भी ऊंची है. लगभग आधी शताब्दी तक इसपर वादविवाद होता रहा, यहां तक कि 1802 में महान खोजी और भूगोलविद् बैरन एलेक्ज़ेंडर वॉन हंबोल्ट (Baron Alexander von Humboldt) ने चिंबोराज़ो को देखने के बाद उसे ही विश्व का सबसे ऊंचा पर्वत घोषित कर दिया. अन्य ब्रिटिश खोजकर्ताओं के हिमालय संबंधित दावों के बारे में उन्होंने कहा कि वे बहुत बढ़ा-चढ़ा कर किए गए थे.
1820–1822 के दौरान ब्रिटिश खोजकर्ताओं ने अपने कई परीक्षणों के परिणाम प्रकाशित किए और किसी को भी यह संशय नहीं रह गया कि हिमालय पर्वतमाला में ऐसे अनेक पर्वत थे जो चिंबोराज़ो से भी ऊंचे थे. लेकिन इनमें सबसे ऊंचा पर्वत कौन सा था? नंदादेवी या धौलागिरी या चोमोलहारी?
1848 में कई परीक्षणों के आधार पर कंचनजंगा (Kangchenjunga, 8,588 मीटर) को विश्व का सबसे ऊंचा पर्वत मान लिया गया. लेकिन यह प्रथम स्थान पर केवल 8 वर्ष तक ही रह सका. 1856 में यह सिद्ध हो गया कि एवरेस्ट (Everest) या सागरमाथा (Sagarmatha, नेपाली नाम) या चोमोलंग्मा (Chomolungma, तिब्बती नाम) की ऊंचाई समुद्र की सतह से 8,848 मीटर थी.
तब से ही एवरेस्ट को निर्विवाद रूप से विश्व का सबसे ऊंचा पर्वत माना जाता है, लेकिन एवरेस्ट के इस दावे को कई बार चुनौतियां भी मिलीं.
1875 में एक अंग्रेज यात्री ने न्यू गिनी (New Guinea) के भीतरी भूभाग में माउंट हरकुलीस (Mount Hercules) नामक 9,992 मीटर ऊंचे पर्वत पर चढ़ने का दावा किया. हालांकि बहुतों ने उसके इस दावे को कोरी गप मानकर ठुकरा दिया लेकिन लंबे समय तक भूगोल की कई पाठ्यपुस्तकें काल्पनिक माउंट हरकुलीस को ही विश्व का सबसे ऊंचा पर्वत बताती रहीं.
1929 में अमेरिकी राष्ट्रपति थियोडोर रूज़वेल्ट (Theodore Roosevelt) के दो पुत्रों ने दक्षिणी चीन के शिचुआन (Sychuan) प्रांत में विशाल पांडा को खोजने के अभियान के दौरान यह बताया कि तिब्बत के मिन्या कोन्का (Minya Konka) पर्वत की ऊंचाई 9,000 मीटर से भी अधिक थी. उन्होंने अपने इस दावे का अमेरिका में बहुत प्रचार किया. 1930-1940 के दौरान तिब्बत आनेवाले अनेक अमेरिकी खोजियों ने भी तिब्बत में एवरेस्ट से भी ऊंचे कई रहस्यमय पर्वत देखने के दावे किए. 1960 के दौरान चीनी अभियानों और 1980 के दौरान कई अंतर्राष्ट्रीय अभियानों में यह सारे दावे झूठे साबित हुए.
पाकिस्तान और चीन की सीमा पर स्थित K2 या गॉडविन-ऑस्टिन (Godwin-Austen) या छोगोरी (Chhogori) पर्वत की खोज एवरेस्ट से बहुत पहले हो चुकी थी. 1986 में इसकी ऊंचाई गलत माप लिए जाने से कुछ समय के लिए इसे विश्व का सबसे ऊंचा पर्वत मान लिया गया लेकिन 1987 के एक अभियान से यह स्पष्ट हो गया कि एवरेस्ट ही विश्व का सबसे ऊंचा पर्वत है. K2 की ऊंचाई 8,611 मीटर है और यह विश्व का दूसरा सबसे ऊंचा पर्वत है. (featured image courtesy)
bahut hi rochak jankari
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बहुत अच्छा जानकारी है ऐसी ही जानकारी हमें देते रहें इससे हमारा देश और मजबूत होगा बहुत अच्छी जानकारी है मान गए बहुत अच्छा
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