जी हां. सैद्धांतिक रूप से यह संभव है. नाभिकीय विखंडन (nuclear fission) की प्रक्रिया में ठीक यही किया जाता है. इसमें किसी भारी परमाणु जैसे यूरेनियम-235 (जिसकी परमाणु संख्या 92 है) को तोड़कर दो हल्के परमाणु बेरियम-141 (जिसकी परमाणु संख्या 56 है) और क्रिप्टॉन-92 (जिसकी परमाणु संख्या 36 है) बनाए जाते हैं. इस प्रक्रिया में दो न्यूट्रॉन बचे रह जाते हैं जो यूरेनियम के अन्य परमाणुओं को तोड़कर चेन रिएक्शन करते हैं. इस दौरान अत्यधिक ऊर्जा निकलती है.
लेकिन हल्के तत्वों को तोड़ना सरल नहीं है. भारी तत्वों को तोड़ने पर जहां बहुत अधिक ऊर्जा निकलती है, इसके विपरीत हल्के तत्वों को तोड़ने के लिए बहुत अधिक ऊर्जा की ज़रूरत पड़ती है.
यही कारण है कि हल्के तत्वों को तोड़ते वक्त बहुत अधिक समस्याएं उत्पन्न होती हैं. सबसे पहले तो हमें इसके लिए बहुत अधिक ऊर्जा चाहिए जो नाभिकीय संलयन से ही मिल सकती है. फिर हम यह देखते हैं कि धनात्मक आवेश युक्त नाभिक इस ऊर्जा का प्रतिकर्षण करता है क्योंकि नाभिक में कणों को जोड़े रखनेवाला बल भी बहुत शक्तिशाली होता है. इस खींचतान में हम पाते हैं कि हीलियम के परमाणु टूटने के बजाए एक-दूसरे से जुड़कर बेरीलियम के परमाणु बनाने लगते हैं.
लेकिन इसका अर्थ यह नहीं है कि ऑक्सीजन या कार्बन के परमाणुओं को तोड़ना संभव नहीं है. असल में हमारे पास उतनी तकनीकी क्षमता नहीं है कि हम इस कार्य को सरलता से कर सकनेवाले प्रयोग विकसित कर सकें. दूसरी बात यह है कि यह आवश्यक भी नहीं है. इस काम में ऊर्जा बहुत लगेगी और मिलेगा वही जो प्रकृति में पहले से ही प्रचुरता में उपलब्ध है. (image credit)