नहीं. प्रथम-दृष्टया तो सूर्य किसी ब्लैक होल की परिक्रमा नहीं कर रहा है लेकिन इसका परिक्रमा पथ इसे कम-से-कम एक ब्लैक होल के चारों ओर घुमाता है.
सूर्य और इसके जैसे कई अरब तारों से मिलकर हमारी मंदाकिनी आकाशगंगा बनी है. इसमें स्थित तारों का प्रक्षेपवक्र (trajectory) सौरमंडल के ग्रहों जैसा वृत्ताकार या दीर्घवृत्ताकार नहीं होकर बहुत जटिल होता है क्योंकि इनके प्रक्षेपवक्र समीपस्थ तारों के संयुक्त गुरुत्वाकर्षण क्षेत्र द्वारा निर्धारित होते है.
यह सच है कि आकाशगंगा के केंद्रीय उभार (central bulge) में एक महाविशाल ब्लैक होल (supermassive black hole) है जिसका भार लगभग चालीस लाख सूर्यों के बराबर है. लेकिन यह मात्रा पूरी आकाशगंगा के द्रव्यमान के आगे न-के-बराबर है. सूर्य आकाशगंगा के केंद्र से लगभग 28,000 प्रकाश वर्ष की दूरी पर है और इतनी दूरी पर उस ब्लैक होल के गुुरुत्व का प्रभाव सूर्य के प्रक्षेपवक्र को नियंत्रित करनेवाले पूरी आकाशगंगा के गुरुत्व बल के आगे बहुत क्षीण है.
हम यह कह सकते हैं कि यह सच है कि सुपरमैसिव ब्लैक होल आकाशगंगा के केंद्र में है और सूर्य का प्रक्षेपवक्र उसे आकाशगंगा के केंद्र के चारों ओर घुमाता है लेकिन यदि हम केंद्र से ब्लैक होल को निकाल भी दें तो भी सूर्य के प्रक्षेपवक्र पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा. इसके विपरीत यदि हम ब्लैक होल को छोड़कर आकाशगंगा का बाकी सारा पदार्थ निकाल दें तो सूर्य अनंत अंतरिक्ष में खो जाएगा क्योंकि प्रक्षेपवक्र पर इसकी गति बहुत अधिक है जबकि ब्लैक होल के संदर्भ में इसका पलायन वेग बहुत अधिक कम है. इससे यह सिद्ध होता है कि सूर्य को प्रक्षेपवक्र पर रखनेवाला बल ब्लैक होल निर्धारित नहीं करता. ब्लैक होल केवल उन्हीं तारों को अपने गुरुत्व से प्रभावित कर सकता है जो उसके बहुत निकट हों. यह दूरी 100 प्रकाश वर्ष से अधिक नहीं होगी हालांकि इस व्यास के गोले में भी बहुत अधिक तारे आ सकते हैं क्योंकि आकाशगंगा के केंद्र में तारों का घनत्व अधिक है. इस क्षेत्र में हजारों तारे हो सकते हैं पर यह संख्या भी आकाशगंगा के सारे तारों के सामने नगण्य है. ऊंट के मुंह में जीरा इसके लिए सही मुहावरा होगा. (image credit)