फ़िल्म “अराइवल” के बारे में

सामान्य दर्शक जब किसी प्रसिद्ध और आलोचकों द्वारा सराही गई फिल्म को देखकर निराश होते हैं तो वे यह कहते हैं कि फिल्म को व्यर्थ में ही महिमामंडित किया गया है. ऐसी फिल्मों को ओवररेटेड (overrated) कहने का रिवाज़ है. अक्टूबर, 2016 में रिलीज़ हुइ फिल्म “अराइवल” (Arrival) को बहुत अच्छे रिव्यू मिले इसलिए बहुत से लोगों ने इस फिल्म को देखा और जब वह उनकी उम्मीदों पर खरी नहीं उतरी तो इसे भी ओवररेटेड फिल्म कहा गया. लोगों की पसंद बहुत अलग होती है और सभी लोगों को सब कुछ पसंद नहीं आ सकता. “अराइवल” के साथ भी ऐसा ही है. इसकी विष्य-वस्तु इतनी हटके है कि सभी लोग इसे समझ नहीं सकते और सराह भी नहीं सकते. मुझे यह फिल्म साइंस-फिक्शन का बेहतरीन उदाहरण लगी जिसमें दिमाग को झकझोरनेवाले तत्वों के साथ ही उम्दा अभिनय भी देखने को मिला.

“अराइवल” की कहानी के दो मुख्य बिंदु हैं. पहले हम समय की अरैखिक अनूभूति (nonlinear perception of time) के विचार की चर्चा करेंगे. भौतिकी में अधिकांश गणितीय विश्लेषण की प्रक्रिया किसी एक दिशा में जाती देखी जाती है. इसका अर्थ यह है कि भौतिकी की शब्दावली में हम समय को किसी एक दिशा में गति करता देखते हैं. कुछ लोगों को यह लगता है कि यदि समय घटनाओं और प्रक्रियाओं की एक अनंत श्रृंखला है तो संभव है कि विशेष प्रकार के चेतन जीव इसे इसकी संपूर्णता में देख सकते हों –  वे चाहें तो इस श्रृंखला के हर बिंदु के बारे में जान सकते हैं और उसका अनुभव कर सकते हैं. इस प्रकार वे भूत, वर्तमान और भविष्य के बारे में सब कुछ जानने की क्षमता रखते हैं. “अराइवल” में इसे परग्रहियों (एलियंस) द्वारा बनाए गए गोलाकार ग्राफ़िक “वाक्यों” के माध्यम से दिखाया गया है. इन वाक्यों के आरंभ और अंत का कोई ओर-छोर नहीं है. यही कारण है कि एक बार संवाद स्थापित हो जाने के बाद परग्रही हमें बता पाते हैं कि वे जानते हैं कि मनुष्य जाति भविष्य में उनकी रक्षा करेगी.

“अराइवल” के केंद्र में दूसरा विचार यह है कि यह भाषाविज्ञान की उस संकल्पना की ओर हमारा ध्यान आकर्षित करती है जिसके अनुसार हम किसी समाज की कुछ अवधारणाओं को केवल तभी समझ सकते हैं जब हमें उस समाज की भाषा का ज्ञान हो. इस संकल्पना के अनुसार किसी भी व्यक्ति के लिए यह ज़रूरी है कि वह किसी समाज के व्यक्तियों को समझने के लिए सबसे पहले उस समाज की भाषा का अध्ययन करे. “अराइवल” इस विचार को और आगे ले जाती है और हमें यह दिखाती है कि एलियंस की भाषा सीख लेने पर अनुवादक को भी एलियंस की ही भांति समय की अरैखिकता की अनुभूति होने लगती है.

यह अनुभूति होने के बाद उसे चीनी सेनापति का निजी फोन नंबर और उसकी पत्नी के अंतिम शब्दों का चमत्कारिक रूप से ज्ञान हो जाता है. उसे यह भी ज्ञान हो जाता है कि वह एक ऐसी प्यारी पुत्री की मां बनेगी जो गंभीर आनुवाशिक रोग होने के कारण बचपन में ही मर जाएगी.

फिल्म के अंत में इन दोनों केंद्रीय विचारों को भावुकता भरे क्लाइमैक्स में कुशलता से मिलाया गया है. फिल्म के अंत में एलियंस द्वार उत्पन्न संकट या उसका समाधान गौण हो जाता है और मनुष्य का भीतरी संघर्ष उसका स्थान ले लेता है : क्या यह पता होने पर भी कोई स्त्री उस बच्चे के जन्म का चुनाव करेगी जो भविष्य में रोगग्रस्त होकर अपने प्राण त्याग देगा? यह हर माता-पिता को विचलित कर देने वाले प्रश्न है और इसे कथानक में शामिल करना बहुत कठोर निर्णय रहा होगा, लेकिन दर्शक यदि चाहे तो इसे सांत्वना के रूप में भी ग्रहण कर सकता है. यदि हम समय की अवधारणा के स्तर पर सोचें तो हर माता-पिता अपने बच्चों को क्षण-प्रतिक्षण खो रहे हैं. जन्म से लेकिर मृत्यु तक के अनंत पलों की श्रृंखला में हम अपने शैशव, बचपन, युवावस्था को खोते चले जाते हैं. हानियों के ये सभी रूप हमें दुःख देते हैं. जीवन में दुःख का होना प्रेम का निषेध नहीं है, प्रतिकार नहीं है, यह उस सर्वस्व का भी स्थान नहीं ले सकता जो माता-पिता अपनी संतति पर लुटाते हैं. यदि किन्हीं माता-पिता को यह पता हो कि वे जिस संतान को जीवन देने जा रहे हैं वह उनसे पहले ही इस दुनिया को छोड़ देगी तो इस अकाल विछोह से उत्पन्न होने वाला दुःख असीम हो सकता है. “अराइवल” में हम मुख्य पात्र को इस दुःक का सामना करने के लिए तैयार होता देखते हैं.

बहरहाल, इस फिल्म में एलियंस से संवाद में हो रही समस्याओं से उत्पन्न होने वाले नाटक के अंत तक पहुंचकर हमें समझ में आ जाता है कि वास्तव में मनुष्यों को ही उनकी बात समझने में कठिनाई हो रही थी. एक दृश्य में लुइस कर्नल वेबर को यह समझाने का प्रयास करती है कि वह एलियंस के साथ किस प्रकार से बात करने का प्रयास कर रही है, और हम देख पाते हैं कि दुनिया को देखना का दोनों का नज़रिया बिल्कुल अलग-अलग है – कि वास्तव में वे दोनों भी एक दूसरे के लिए एलियन की तरह हैं. लुइस कुछ किस्से-कहानियां सुनाती है – एक स्थान पर कंगारू की भी बात होती है और हमें दिखता है कि वह अपने सुपीरियर्स और खुद के बीच के गैप को भरने की भरसक कोशिश कर रही है. यही परिदृश्य एलियंस और मनुष्यों के बीच घटित हो रहा था.

और एक बात हमें दिखती है कि वैश्विक परिदृश्य पर हम अनेक देशों को भी एलियंस से संवाद स्थापित करने में आ रही कठिनाई से जूझते देखते हैं. हर देश का अपना दर्शन और कामकाज करने का विशिष्ट तरीका है. हर देश घटना और परिस्तिथि का आकलन अलग तरह से करता है. और हर देश को इन सभी बाधाओं को लांघकर एक दूसरे का साथ देकर ऐसे निष्कर्ष पर पहुंचना है जो समुचित और सर्वसम्मत हो.

तो, असल में संवाद या कम्युनिकेशन “अराइवल” की सेंट्रल थीम है. हमने इसमें समय की अरैखिकता का ताना-बाना भी देखा है जिसे हमारा मस्तिष्क समझने के लिए आसानी से तैयार नहीं होता. यह ओवररेटेड है या नहीं यह इसपर निर्भर करता है कि आप साइंस फिक्शन को कितनी गंभीरता से लेते हैं. यदि आप मेन-इन-ब्लैक जैसी फिल्म देखना पसंद करते हैं तो आपको “अराइवल” ज्यादा पसंद नहीं आएगी. यदि आपको ऐसी साई-फ़ाई फिल्म देखना पसंद हो जिसमें संभव प्रतीत होनेवाले त्रिआयामी चरित्र हों जो आपको सोचने पर विवश कर दें तो “अराइवल” आपके लिए सही फिल्म है. इसमें ऐसा कुछ भी है जो हमारे वर्तमान की वैज्ञानिक अवधारणाओं से भिन्न है. यह उस भविष्य की कहानी भी हो सकती है जो एक दिन साकार हो सकता है.

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