ब्रह्मांड को फैलने के लिए किसी स्थान की ज़रूरत नहीं है. यह स्वयं में फैल रहा है. यह बात समझना कुछ कठिन है इसलिए मैं एक ऐसे उदाहरण की मदद लूंगा जिससे आप यह समझ सकें.
मान लें कि एक रेखा है जो अनंत तक जाती है. इस रेखा पर हर एक इंच की दूरी पर निशान लगे हैं. इस प्रकार इस रेखा पर अनंत निशान लगे हैं जो एक-एक इंच की दूरी पर हैं. यदि हम इन निशानों को एक इंच के स्थान पर दो इंच की दूरी पर लगा दें तो क्या होगा? हमने इस रेखा का पैटर्न बदल दिया. यह रेखा अभी भी अनंत तक जा रही है लेकिन इसका पैटर्न फैल गया है.
एक और उदाहरण से इसे समझते हैं. मान लें कि आपके पास एक ऐसा रबर है जो अनंत तक खिंच सकता है. यह रबर ब्रह्मांड को दर्शा रहा है. इस रबर पर भी एक-एक इंच की दूरी पर निशान लगे हैं. अब हम इस रबर को इतना खींचते हैं कि वे निशान दो इंच की दूरी पर आ जाते हैं. रबर अभी भी अनंत तक जा रहा है लेकिन निशानों का पैटर्न बदल गया है. वे फैल गए हैं.
भौतिकशास्त्री जब “अंतरिक्ष” के बारे में सोचते हैं तो उनका अभिप्राय शून्यता से नहीं बल्कि रबर बैंड जैसी किसी चीज से होता है, लेकिन वे इसे रबर नहीं बल्कि “निर्वात” कहते हैं. भौतिकी में हम जिन्हें “कण” कहते हैं वे इस निर्वात में होनेवाले कंपन हैं. यह निर्वात भी रबर बैंड की ही भांति खिंचकर फैल सकता है. लेकिन चूंकि निर्वात अनंत तक जाता है इसलिए इसे अंतरिक्ष में और अधिक रिक्त स्थान की आवश्कता नहीं होती.
ये कुछ ऐसी बातें हैं जो लोगों को क्नफ़्यूज़ कर देती हैं. भौतिकी के साधारण सिद्धांत के अनुसार मंदाकिनियां एक दूसरे से दूर हो रही हैं, जिसे हम ब्रह्मांड का विस्तारित होना कहते हैं. लेकिन भौतिकी में ही सामान्य सापेक्षता के सिद्धांत के अनुसार इनमें से कोई भी मंदाकिनी एक-दूसरे से दूर नहीं जा रही है. वास्तव में हो यह रहा है कि इन मंदाकिनियों के बीच का अंतरिक्ष या निर्वात बढ़ता जा रहा है.
इस सबके बारे में विधिवत तरीके से कॉलेज में भौतिकी की कक्षा में या पुस्तकों में बताया जाता है. इसे बतानेवाले प्रोफ़ेसर कक्षा में इस प्रकार की भाषा का प्रयोग करते हैं: “बिग-बैंग के सिद्धांत के अनुसार सभी मंदाकिनियों के निर्देशांक स्थिर हैं (अर्थात वे गति नहीं कर रही हैं). ब्रह्मांड के ‘विस्तार’ को हम मीट्रिक टेंसर (metric tensor) के द्वारा समझ सकते हैं जो उन स्थिर निर्देशांकों (fixed coordinates) के बीच की दूरी के बारे में बताता है. बिग-बैंग के सिद्धांत में मीट्रिक टेंसर वह चीज है जो परिवर्तित हो रही है और इस प्रकार यह मंदाकिनियों के कोई गति नहीं करने पर भी ब्रह्मांड को विस्तारित होता प्रदर्शित करती है. इसके विस्तार में त्वरण होने की खोज से हमें यह पता चलता है कि विस्तार होने की दर बढ़ रही है.”
आपने अंतरिक्ष की वक्रता के बारे में अवश्य ही कहीं पढ़ा होगा. यदि हम दो स्थिर पिंडों के मध्य एक ब्लैक होल रख दें तो उन दोनों के बीच की दूरी अचानक ही बढ़ जाती है जबकि वे अपने स्थान से हिले भी नहीं. इससे यह स्पष्ट होता है कि “दूरी” को समझना उतना सरल नहीं है जितना प्रतीत होता है. यह आइंस्टीन की प्रखर मेधा थी कि वे यह अद्भुत विचार लेकर आए कि “अंतरिक्ष” (या निर्वात) लचीला हो सकता है; यह मुड़ भी सकता है और खिंच भी सकता है.
हो सकता है कि अभी भी आपको यह सब बहुत कन्फ़्यूज़िंग लग रहा हो. यह कोई बुरी बात नहीं बल्कि शुभ संकेत है. जब आप उन चीजों के बारे में जानना शुरु करते हैं जो हमारी सोच को झकझोर देती हैं तो “कन्फ़्यूज़न” होना स्वाभाविक है. यह कन्फ़्यूज़न ही आपको सोचविचार करने तथा और अधिक जानकारी जुटाने की प्रेरणा देता है. (image credit)
दूरी और विस्थापन को ध्यान में रखकर विचार करेंगे तो चीजें स्पष्ट होती चली जाएंगी।
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