विज्ञान, और विज्ञान में भी भौतिकी में रूचि लेने वाले मेरे एक मित्र भौतिकी के सिद्धांतों और संकल्पनाओं का वर्णन करनेवाली पुस्तकों को पढ़ना पसंद नहीं करते. उन्हें विज्ञान के अनूठे प्रयोगों और फैंटेसी में बहुत रूचि है और वे नए-नए उपकरण व मशीनें बनाने के बारे में सोचविचार करते रहते हैं. उनके अनुसार विज्ञान के आधारभूत सिद्धांतों का अध्ययन करना व्यर्थ है क्योंकि वे हमारे जीवन के व्यावहारिक पक्ष को प्रभावित नहीं करते.
1873 में एक युवा ब्रिटिश सैद्धांतिक भौतिकशास्त्री (theoretical physicist) जेम्स क्लार्क मैक्सवेल (James Clerk Maxwell) ने कुछ पूर्णतः विकसित समीकरण लिखे. सैद्धांतिक भौतिकशास्त्र के इतिहास में सबसे बड़ी उपलब्धियों में इसके महत्व का उल्लेख है कि इन समीकरणों ने अन्य कई बातों के साथ अदृश्य तरंगों के अस्तित्व की भविष्यवाणी की और यह भी बताया कि उन्हें प्रयोगशाला में उपकरणों के द्वारा उत्पन्न किया और पहचाना जा सकता है.
इसके 14 वर्ष बाद एक युवा जर्मन भौतिकशास्त्री हेनरिख रूडोल्फ़ हर्ट्ज़ (Heinrich Rudolf Hertz) ने कुछ श्रंख्लाबद्ध प्रयोग किए जिनसे मैक्सवेल के सिद्धांतों की पुष्टि हो गई. जब हर्ट्ज़ से उनके प्रयोगों के व्यावहारिक पक्ष और उपयोगिता के बारे में पूछा गया तो उन्होंने कहा, “फिलहाल तो इनका कोई उपयोग नहीं है […] इन प्रयोगों से केवल इतना ही सिद्ध हुआ है कि मैक्सवेल के समीकरण और सिद्धांत सही थे”.
और इसके भी 25 वर्ष बाद RMS टाइटैनिक नामक एक दुर्भाग्यशाली जलयान अटलांटिक महासागर में विराट हिमखंड से टकराकर दुर्घटनाग्रस्त हो गया. लेकिन इसके चालक दल ने गुग्लीएमो मारकोनी (Gugliemo Marconi) द्वारा आविष्कृत एक दूरसंचार यंत्र का उपयोग किया. वह यंत्र मैक्सवेल और हर्ट्ज़ के द्वारा दिए गए सिद्धांतों और प्रयोगों पर आधारित था. उस यंत्र का उपयोग करके शीघ्र सहायता के लिए संदेश भेजा गया जिसके परिणामस्वरूप एक दूसरा जलयान RMS कारपाथिया वहां पहुंचा और लगभग 700 लोगों के प्राण बचाए जा सके.
मारकोनी के प्रसिद्ध आविष्कार को लोग वायरलेस टेलीग्राफ़ या रेडियो के नाम से जानते थे. हर्ट्ज के प्रयोगों के बिना इसका आविष्कार संभव नहीं हो सकता था लेकिन हर्ट्ज के प्रयोग भी मैक्सवेल के सिद्धांतों और संकल्पनाओं पर आधारित थे जिन्होंने यह बताया था कि प्रकृति में ऐसा कुछ था जिसे देखना और महसूस करना संभव नहीं था, लेकिन जिसे यंत्रों की सहायता से उत्पन्न किया और पकड़ा जा सकता था.
ये वही रेडियो तरंगें या विद्युत चुंबकीय तरंगें हैं जो हमारे द्वारा उपयोग में लाए जानेवाले लगभग हर इलेक्ट्रॉनिक यंत्र का आधार हैं. इनके माध्यम से हम एक-दूसरे से व अन्य यंत्रों से कनेक्ट करते हैं. रेडियों तरंगों के बिना वायरलेस संचार, उपग्रह संचार, मोबाइल, या इंरनेट का प्रयोग असंभव है.
ध्यान दें कि पूरी सेमीकंडक्टर इडस्ट्री जिसमें आधुनिक कंप्यूटिंग, कम्युनिकेशन, और लेज़र शामिल हैं – यह सैद्धांतिक भौतिकशास्त्रियों द्वारा दिए गए निष्कर्षों पर ही आधारित है… हालांकि इन्हें सिद्ध करने और इनके व्यावहारिक पक्ष का ज्ञान देने के लिए अनेक महान प्रायोगिक भौतिकशास्त्रियों ने असंख्य प्रयोग भी किए.
अब आप मुझे बताइये. क्या सैद्धांतिक भौतिकशास्त्र का अध्ययन (जिसके लिए केवल कुछ पेपर और पेन की ही ज़रूरत होती है) हमारे समय और संसाधनों की बर्बादी है? (image credit)
क्या बात है !! आलेख पढ़कर आनंद आ गया।
बहुत अच्छा उदाहरण दिया भैया। पढ़ने में और भी बहुत सारे उदाहरण मिलते हैं।
बेहतरीन आलेख (Y)
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