मुझे एक बात बताइए. आपको ऐसा क्यों लगता है कि आप अपने मस्तिष्क की केवल 10 या 20 प्रतिशत क्षमता का ही उपयोग कर रहे हैं?
असल में आप अपने मस्तिष्क की 100% क्षमता का उपयोग कर रहे हैं. यदि किसी चोट या ऑपरेशन के कारण आपके दिमाग का केवल 5% भाग बेकार हो जाए या निकाल दिया जाए तो आप पर इसका बहुत प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा. हो सकता है कि आपको कुछ अंग या इंद्रियां काम करना बंद कर दें. पक्षाघात या लकवे के मामले में यही होता है.
यह धारणा बहुत भ्रांतिपूर्ण है कि हम अपने मस्तिष्क की क्षमता का केवल कुछ प्रतिशत ही प्रयोग में लाते हैं . कुछ किताबों और फिल्मों ने इसे हवा दी है. इस संकल्पना या धारणा का कोई वैज्ञानिक आधार नहीं है. इस मूर्खतापूर्ण विचार का लोप हो जाना चाहिए लेकिन कभी-न-कभी कोई महत्वपूर्ण लेखक या कलाकार, यहां तक कि कोई वैज्ञानिक भी यह अफसोस करता दिख जाता है कि वह अपने मस्तिष्क की क्षमताओं का पूरा दोहन नहीं कर पाता.
ध्यान से पढ़िए. आप और मैं, हम सभी हमेशा अपने मस्तिष्क की 100% क्षमता का प्रयोग अपने जन्म से ही करते आ रहे हैं. हमारे मस्तिष्क का कोई भी भाग प्रसुप्त नहीं है. हमारे मस्तिष्क में कहीं भी कोई गुप्त, रहस्यमय, आलौकिक, अप्रयुक्त, या स्थैतिज क्षमता या शक्ति नहीं है. ऊर्जा के, विकास के, और निजी स्तर पर भी ऐसी किसी गोपनीय क्षमता का होना हमारे मस्तिष्क की कार्यप्रणाली पर विपरीत प्रभाव ही डालेगा.
हमारा मस्तिष्क में अरबों न्यूरॉन्स (Neurons) या तंत्रिका कोशिकाएं होती हैं. ये न्यूरॉन्स हमेशा सक्रिय रहते हैं. इन्हें मनमर्जी से चालू या बंद नहीं किया जा सकता. वे हमेशा किसी भी क्रिया या प्रतिक्रिया के लिए तैयार रहते हैं. ये आश्चर्यजनक रूप से शक्तिशाली विद्युत विभव का संचार करते हैं जो मशीनी माप से स्तर पर तो बहुत बलहीन है लेकिन उनकी अतिसूक्ष्म झिल्लियों के स्तर पर बहुत शक्तिशाली है. वे रासायनिक गोला-बारूदों की तरह न्यूरोट्रांसमीटर्स का संचय करते रहते हैं और ज़रूरत पड़ने पर उन्हें फ़ायर करते हैं. इस दौरान वे इस बात का पूरा ध्यान रखते जाते हैं कि उन्हें कहां से कौन सी सूचना एकत्र करनी है और उस सूचना को किस रास्ते से अपने गंतव्य तक पहुंचाकर प्रोसेस करना है. जब ये नियूरॉन्स फ़ायर नहीं कर रहे हों तब भी वे किसी-न-किसी काम में व्यस्त रहते हैं. जब हम सो रहे होते हैं तब भी वे व्यस्त होते हैं.
जो लोग यह कहते हैं कि मनुष्य अपने मस्तिष्क की क्षमताओं का शत-प्रतिशत उफयोग नहीं करते, वे मस्तिष्क की भौतिक शक्तियों को बुद्धिमानी या I.Q. जैसी चीजों से संबद्ध करने लगते हैं जबकि इनका हमारे मस्तिष्क की संरचना से कोई लेना-देना नहीं है. यहां तक कि स्मृति और बुद्धिमानी भी एक-दूसरे से असंबद्ध हैं. कोई व्यक्ति अद्वितीय याददाश्त होने पर भी मूर्ख हो सकता है और कोई जीनियस वैज्ञानिक भुलक्कड़ और एब्सेंट माइंडेड हो सकता है.
यह भ्रांतिपूर्ण धारणा शायद इस तथ्य से उपजी है कि हमारे मस्तिष्क की संरचना में न्यूरॉन्स केवल 10% होते हैं. मस्तिष्क का बाकी का 90% भाग ग्लीयल कोशिकाओं (Glial cells) और उनकी सहायक सबसेट जैसे एस्ट्रोसाइट्स (Astrocytes), ऑलिगोडेंड्राइट्स (Oligodendrytes) आदि का बना होता है.
हालांकि यह बात सच है कि हमें हमारे मस्तिष्क के कुछ भागों की कार्य-प्रणाली के बारे में अभी भी पूरी जानकारी नहीं है. यह भी कहा जा सकता है कि हम अपने मस्तिष्क के कुछ भागों का उपयोग इसलिए नहीं करते क्योंकि हम अक्सर ही वे काम कर रहे होते हैं जिन्हें करने के लिए हमें मस्तिष्क के उन भागों पर आश्रित नहीं रहना पड़ता.
उदाहरण के लिए, जब हम फिल्म देख रहे होते हैं तब हमें अपने शरीर की मोटर स्किल्स (जैसे उंगलियों तथा हाथ-पैरों की मांसपेशियों का प्रयोग) का उपयोग करने की आवश्यकता नहीं होती. ऐसी स्थिति में मस्तिष्क में शरीर के उन भागों को नियंत्रित करनेवाले भाग काम नहीं कर रहे होते.
हमारे मस्तिष्क के लिए यह ज़रूरी है कि वह एक समय में अपने केवल कुछ ही अवयवों को सक्रिय रखे तथा बाकी अवयवों को निष्क्रिय रखे. यदि मस्तिष्क अपने सभी अवयवों को 100% सक्रिय रखेगा तो क्या होगाः
- हमारा शरीर हर समय हर प्रकार का हार्मोन व एंजाइम बनाता रहेगा. इसके परिणामस्वरूप हमारा शरीर हमेशा उत्तेजना, भय, क्रोध, प्रसन्नता, भूख, प्यास, दुःख, दर्द, प्रेम, अवसाद की भावनाओं से घिरा रहेगा. सारे इमोशन एक ही समय पर एक साथ हम पर हावी हो जाएंगे.
- हम गंध, रंग, ध्वनि, स्वाद, और स्पर्श के प्रति अतिसंवेदनशील हो जाएंगे. हमें अपने पहने हुए कपड़ों का, हमारे मुंह में जीभ के हिलते रहने का, आसपास हो रही सूक्ष्म ध्वनियों का अहसास पूरे समय होता रहेगा.
- हमारी स्मृति अजीब तरह से घूमती रहेगी. अतीत की हमारी सारी यादें हमारे सामने गड़्-मड्ड होकर पूरा समय नाचती रहेंगी. हमें लगेगा जैसे हम मरनेवाले हैं और कर्मों का हिसाब लेने के लिए भगवान ने हमारे सामने हमारे पूरे जीवन की फिल्म चला दी गई है.
- हमारी मांसपेशियां मनमाने ढंग से चलने लगेंगीं. शरीर इतना कांपेगा और हिलता-डुलता रहेगा कि कोई भी कार्य करना असंभव हो जाएगा.
- यह कहना कठिन है कि ऐसी स्थिति में हमारा शरीर कैसा व्यवहार करेगा लेकिन हम कोई सचेत निर्णय लेने की स्थिति में नहीं होंगे. हमारा शरीर हमारे मस्तिष्क की कैद में होगा और दोनों के बीच का तालमेल लुप्त हो जाएगा.
बहरहाल, वैज्ञानिकों ने यह पाया है कि एक ऐसी गतिविधि है जिसे करते समय हमारे मस्तिष्क के अधिकांश क्षेत्र सक्रिय हो जाते हैं. जब हम संगीत को पढ़ते हुए कोई वाद्ययंत्र बजाते हैं तो स्कैनिंग में पूरा मस्तिष्क जगमगा उठता है. इस समय हम अपने शरीर के मोटर स्किल्स, स्मृति, पठन योग्यता, विवेचन क्षमता का उपयोग तथा इंद्रिय सुख और आनंद का अनुभव करते हैं.
इस प्रकार अपने मस्तिष्क को आप वाद्ययंत्र बजाकर या कोई गीत गाकर सबसे सक्रिय रख सकते हैं क्योंकि इस समय मस्तिष्क अपनी अधिकांश क्षमताओं का उपयोग करता है. क्या आप जानना चाहते हैं कि हम अपने मस्तिष्क के दोनों हिस्सों को अधिक सक्रिय कैसे कर सकते हैं? (image credit)
Maf Karna lakin aap galat ho skate hai
Aapne kaha ki ham bachpan se Apne dimag ko 100% use karte hai lakin bachpan main ham wo Sab Nahi samj pate Jo hame bade hokar samj aata hai jese ki aag bachpan main hame pta Nahi hota ki aag kya Hoti hai or uski or badte jabki hame usse darna chahiye
Mujhe lagta hai aap galat hai!!!!!!!!!!!!!!!!
पसंद करेंपसंद करें
Mujhe lagta hai ham inshan abhi bhi apne dimag ka bahut bag upyog nahi kar pate.
Agar ham shuru se hi dimag ka 100% upyog karte to….
Adi-manav ke jamame se hi itna tarrki kar liya hota. Sabhi ko viksit hone me bahut samay laga hai,usi tarah se dimag ko bhi 100% upyog karne me ham samrth na ho.
पसंद करेंपसंद करें
[…] की पूरी क्षमता से ही काम करते हैं. कोई भी व्यक्ति अपने मस्तिष्क का केवल 10…. हम अपने मस्तिष्क को जितना सिखाते हैं […]
पसंद करेंपसंद करें