अब से लगभग 5.5 अरब वर्ष पश्चात सूर्य लाल दानव (red giant star) बनने की प्रक्रिया में प्रवेश करेगा. इस प्रक्रिया में यह फूलकर विशाल होता जाएगा और शुक्र, पृथ्वी या मंगल ग्रह तक के परिक्रमा पथ तक को लील जाएगा. इसके लगभग एक अरब वर्ष पश्चात सूर्य ग्रहीय नेबुला (planetary nebula) बन जाएगा जिसके परिणामस्वरूप मृत तारे की कोर से एक श्वेत वामन तारे (white dwarf) का उदय होगा. इसके अरबों-खरबों साल बाद तक यह श्वेत वामन तारा धीरे-धीरे विकिरणित (radiate) होता रहेगा.
लेकिन लाल दानव तारा बनने के बहुत पहले ही पृथ्वी जीवन को संरक्षित करने योग्य नहीं रह जाएगी. अब से लगभग 1 अरब वर्ष बाद सूर्य की चमक में 10% तक की वृद्धि हो जाएगी. गर्मी बहुत अधिक बढ़ जाने का पृथ्वी पर बहुत प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा. पृथ्वी जीवन के लिए अनुपयुक्त हो जाएगी और धरातल पर मौजूद पानी वाष्पीभूत होने लगेगा.
इस प्रकार हमें सौरमंडल को छोड़ने की तैयारी 1 अरब वर्ष से बहुत पहले ही करनी पड़ेगी. हम चाहते हैं कि वर्ष 2030 तक मनुष्य मंगल ग्रह पर पहुंच जाए. मंगल पर पहुंचना चंद्रमा और अन्य ग्रहों पर कॉलोनी बनाने की हमारी योजना की पहली सीढ़ी है. हम यह अभी भी किसी दावे से नहीं कह सकते कि हम सौरमंडल को छोड़कर जाने में सक्षम होंगे. हमें इस तथ्य का ज्ञान है कि स्तनपायी प्राणियों (Mammals) की कोई भी प्रजाति अधिकतम 10 लाख वर्ष तक ही बची रह पाती है और अपवादस्वरूप ही ये 1 करोड़ वर्ष से अधिक तक अस्तित्व में रहती है. हम यह कह सकते हैं कि हम इतने बुद्धिमान और कुशल हैं कि स्वयं को लंबे समय तक सुरक्षित रख सकें लेकिन हमने स्वयं को नष्ट करने के तरीके भी खोज लिए हैं. हम करोड़ों या अरबों वर्ष तक जीवित रह पाएंगे अथवा नहीं, इस प्रश्न का उत्तर इसमें निहित है कि हम कब तक दूसरे ग्रहों पर कॉलोनियां बना सकेंगे क्योंकि यही वह एकमात्र उपाय है जो हमारी प्रजाति को नष्ट होने से बचा सकता है.
मेरे विचार कुछ निराशावादी हैं. मुझे संदेह है कि हम इतनी दूर जा सकेंगे. पृथ्वी पर प्रजातियों के लुप्त होने की एक लंबी और सुनिश्चित परंपरा है जिसका संबंध पृथ्वी की संरचना (जैसे विराट ज्वालामुखी विस्फोट) और अंतरिक्षीय खतरे (जैसे क्षुद्र ग्रह की टक्कर) से है. इसके अतिरिक्त आकाशगंगा में सूर्य की स्थिति के बारे में जानना भी हमारे लिए महत्वपूर्ण है. सूर्य लगभग 23 करोड़ वर्ष में आकाशगंगा के केंद्र की एक परिक्रमा करता है और सूर्य की यह गतिविधि हमें अनेक प्रकार के खतरों में डाल सकती है. अंतरिक्षीय टक्करों के अलावा हम किसी ऐसे तारे के समीप भी पहुंच सकते हैं जिसका ताप या विकिरण पृथ्वी के जीवन को नष्ट कर दे. यदि हमने तब तक अंतरिक्ष में अन्य तारामंडलों में कॉलोनियां नहीं बनाईं तो हमारा विनाश निश्चित है.
अब तक पृथ्वी पर प्रजातियों के बड़े पैमाने पर विलुप्त होने की ये घटनाएं घटी हैंः
- ओर्डोवियन-सिल्युरियन विलुप्तीकरण (Ordovician–Silurian extinction) — लगभग 44 करोड़ वर्ष (439 million) पूर्व जब 86% प्रजातियां विलुप्त हो गईं
- उत्तर डेवोनियन विलुप्तीकरण (Late Devonian extinction) — लगभग 36 करोड़ (364 million) वर्ष पूर्व जब 75% प्रजातियां विलुप्त हो गईं (7.5 करोड़ वर्ष का गैप)
- पर्मियन-ट्रायसिक विलुप्तीकरण (Permian–Triassic extinction) — लगभग 25 करोड़ वर्ष (251 million years) पूर्व जब 96% प्रजातियां विलुप्त हो गईं (1.3 करोड़ वर्ष का गैप)
- ट्रायसिक-जूरासिक विलुप्तीकरण (Triassic–Jurassic extinction) — 20 करोड़ (200 million) वर्ष पूर्व जब 80% प्रजातियां विलुप्त हो गईं (51 लाख वर्ष का गैप)
- क्रियेशियस-पैलीयोजीन विलुप्तीकरण (Cretaceous–Paleogene extinction) — लगभग 6.6 करोड़ (66 million) वर्ष पूर्व जब 76% प्रजातियां विलुप्त हो गईं (13.4 करोड़ वर्ष का गैप)
प्रजातियों के उपरोक्त पांच कालखंड़ों में नष्ट हो जाने के जो भी कारण रहे हों, हमें यह स्वीकार करना पड़ेगा कि इस प्रकार के विलुप्तीकरण की कोई घटना आगामी 5 से 12 करोड़ वर्षों में पुनः हो सकती है जिसमें बहुत बड़े पैमाने पर प्रजातियां नष्ट हो जाएं. ऐसी किसी भी घटना में सबसे अधिक नुकसान बड़ी और उन्नत प्रजातियों का ही होता है. कुछ वैज्ञानिक तो यह तक मानते हैं कि हम वास्तव में व्यापक विलुप्तीकरण की प्रक्रिया में ही चल रहे हैं और हमारा भविष्य अंधकारमय है. लाखों वर्षों की बात छोड़ दें… यह आश्चर्यजनक ही होगा कि हम अगले 10,000 वर्ष तक भी बचे रहें.
इसके अतिरिक्त, मैं इसे लेकर भी संशयपूर्ण हूं कि हम कभी तारों से आगे की यात्राएं कर पाएंगे. किसी दूसरे तारामंडल की यात्रा करना अति दुष्कर है और फिलहाल इसका अनुमान लगाना कठिन है कि मनुष्य यह कब और किस प्रकार कर पाएगा. (image credit)