इस प्रश्न को पढ़ने से यह पता चलता है कि ब्लैक होल के संबंध में लोग बहुत अनूठे और भ्रांतिपूर्ण विचार रखते हैं.
मान लें कि हम सूर्य को उसके जैसे ही द्रव्यमान वाले किसी ब्लैक होल से बदल दें. ऐसी स्थिति में दो बातें हो सकती हैंः
पहली तो यह कि पृथ्वी ब्लैक होल सूर्य की परिक्रमा वैसे ही करती रहेगी जैसे पहले कर रही थी. उसमें कोई परिवर्तन नहीं आएगा. गुरुत्वाकर्षण पर अपनी ओर खींच रहे पिंड की प्रकृति नहीं बल्कि उसके द्रव्यमान का प्रभाव पड़ता है. यदि पृथ्वी और ब्लैक होल सूर्य के द्रव्यमान में कोई परिवर्तन नहीं आएगा तो ग्रेविटी अपरिवर्तित रहेगी. इस प्रकार पृथ्वी का परिक्रमा पथ में तब तक कोई परिवर्तन नहीं होगा जब तक सौरमंडल के केंद्र में स्थित पिंड का द्रव्यमान नहीं बदले.
दूसरी बात यह होगी कि हमें तारों भरा आकाश काला दिखेगा. हमें सूर्य के स्थान पर कुछ नहीं दिखेगा. किसी भी ब्लैक होल का इवेंट होराइज़न केवल कुछ किलोमीटर ही चौड़ा होता है इसलिए इसके तीव्र गुरुत्व के कारण उत्पन्न होने वाले किसी प्रकार के ऑप्टिकल प्रभाव बहुत दूरी तक नहीं देखे जा सकते. ये प्रभाव इतने सूक्ष्म होेंगे कि उन्हें किसी बड़े टेलीस्कोप से देखना भी कठिन होगा. इस प्रकार हमें सूर्य के स्थान पर कुछ भी नहीं दिखेगा. हमें अंतरिक्ष के बाकी तारे दिखते रहेंगे.
लेकिन हमें चंद्रमा और सौरमंडल के अन्य ग्रह दिखने बंद हो जाएंगे क्योंकि उनसे परावर्तित होनेवाला सूर्य का प्रकाश लुप्त हो चुका है. थोड़े ही समय में पृथ्वी का वातावरण बुरी तरह से बिगड़ने लगेगा. समुद्र जम जाएंगे और कुछ महीनों में ही पृथ्वी की सतह का अधिकांश जीवन नष्ट हो जाएगा.
हमारे वातावरण में नाइट्रोजन 78.09%, ऑक्सीजन की मात्रा 20.95%, आर्गन 0.93%, कार्बन डाइऑक्साइड 0.04%, और अन्य गैसे बहुत सूक्ष्म मात्रा में हैं. वायु में विशाल मात्रा में जलवाष्प भी होती है. तापमान के बहुत नीचे चले जाने पर ये गैसें और जलवाष्प बर्फ के कणों के रूप में धरातल पर गिरने लगेंगी. लेकिन इन घटनाओं का संंबध सूर्य का प्रकाश नहीं मिलने से है, ब्लैक होल से नहीं. (image credit)