अरबों तारे होने पर भी अंतरिक्ष काला क्यों दिखता है?

इस प्रश्न का उत्तर दो तरह से दिया जा सकता है.

पहले हम तारों और मंदाकिनियों की हमसे दूरी की बात करते हैं, बाद में प्रकाश की चर्चा करेंगे.

सूर्य के सबसे निकट के तारे की चमक सूर्य की तुलना में 64 अरब गुनी कम है क्योंकि यह सूर्य से लगभग 4.2 प्रकाश वर्ष की दूरी पर स्थित है. यह दरअसल एक तारा युग्म या बाइनरी स्टार सिस्टम है जिसकी चमक सूर्य से लगभग दो गुनी है.

एक अनुमान के मुताबिक हमारी आकाशगंगा में लगभग 200 अरब तारे हैं. इस हिसाब से तो आकाशगंगा को सूर्य से लगभग तीन गुना अधिक चमकदार होना चाहिए.

लेकिन आकाशगंगा के एक औसत तारे की सूर्य से दूरी लगभग 26,000 प्रकाश वर्ष है. जब हमारे निकटतम तारे की चमक सूर्य से कई अरब गुना कम है तो बाकी तारों की चमक की क्षीणता का आप अनुमान लगा सकते हैं. कुछ गणनाएं करने पर पता चलता है कि दूरी के आधार पर आकाशगंगा के सभी तारों की चमक सूर्य की चमक से लगभग डेढ़ करोड़ गुना कम होनी चाहिए.

हमारी आकाशगंगा के सबसे निकट स्थित मंदाकिनी देवयानी या (Andromeda) हमसे 25 लाख प्रकाश वर्ष दूर है. इस प्रकार यह हमारी आकाशगंगा में स्थित तारों की हमसे औसत दूरी से भी सौ गुना अधिक दूर स्थित है. यही कारण है कि हम इसे नंगी आंखों से अच्छे से नहीं देख सकते. लेकिन अनुमान के आधार पर देवयानी में हमारी आकाशगंगा से भी दो गुना अधिक तारे हैं. इस प्रकार यह हमारी आकाशगंगा से भी 5000 गुना कम चमकीली है. यह सूर्य के प्रकाश से लगभग 67 अरब गुना कम चमकदार है. यदि हम देवयानी से भी अधिक दूरी पर स्थित मंदाकिनियों की बात करेंगे तो उनकी चमक देवयानी से भी क्षीण होती जाएगी.

ये दूरियां ही हमारे अंतरिक्ष को इतना कम प्रकाशित करती हैं… लेकिन अभी प्रकाश की चर्चा बाकी है.


क्या आपने कभी प्रकाश को देखा है? नहीं. आप प्रकाश को नहीं देख सकते.

किसी ने भी आजतक प्रकाश को नहीं देखा है. प्रकाश को देखने के लिए हमें इलेक्ट्रॉन माइक्रोस्कोप से भी अधिक शक्तिशाली सूक्ष्मदर्शी बनाना पड़ेगा जो फोटॉन्स को देख सके.

हमारी आंखें जो कुछ भी देखती हैं वह प्रकाश नहीं बल्कि चीजों पर पड़नेवाला प्रकाश का प्रभाव होता है. उदाहरण के लिए, दिन के समय हम किसी पेड़ को इसलिए देख पाते हैं क्योंकि इसपर पड़नेवाला प्रकाश हम तक परावर्तित होता है. रात के समय हम पेड़ को इसलिए नहीं देख पाते क्योंकि इसपर से किसी भी प्रकाश का परावर्तन नहीं होता. किसी भी दशा में हम प्रकाश को नहीं बल्कि उसके परावर्तित प्रभाव को देखते हैं. दिन के समय हमें आकाश उजला इसलिए दिखता है क्योंकि हमारा वायुमंडल प्रकाश को हमारी आंखों तक परावर्तित करता है. रात को सूर्य के छिप जाने पर वायुमंडल या आकाश पर प्रकाश पड़ना बंद हो जाता है और वह काला दिखने लगता है.

बाह्य अंतरिक्ष की शून्यता में गति कर रहे प्रकाश के फोटॉन्स हमें नहीं दिखते क्योंकि वे किसी पदार्थ से टकराकर परावर्तित नहीं होते. यही कारण है कि हमें तारों भरा आकाश भी काला ही दिखता है. यदि प्रकाश नहीं होता तो हम चंद्रमा को भी नहीं देख पाते. चंद्रमा हमारी आंखों के सामने ही होता लेकिन हमें नहीं दिखता. प्रकाश अपने आप में अदृश्य होता है. हम इसकी प्रतीति तभी कर पाते हैं जब यह किसी पदार्थ या पिंड से टकराकर हमारी आंखों तक पहुंचता है.

यदि अंतरिक्ष का भी अपना वातावरण होता तो यह हमें जगमगाते हुए क्रिसमस ट्री जैसा दिखता. (image credit)

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