गैसीय ग्रह होने पर भी बृहस्पति ठोस क्यों प्रतीत होता है?

इस प्रश्न के उत्तर से अनेक रोचक आयाम खुलते हैं. सबसे पहले तो हम यह जान लें कि बृहस्पति ग्रह 90% हाइड्रो़न और 10% हीलियम से बना है जो कि रंगहीन गैसे हैं. फिर ऐसा क्या है जो बृहस्पति ग्रह को इतना ठोस, रंगीन और धब्बेदार बनाता है? हम अभी तक यह नहीं जान पाए हैं कि बृहस्पति ग्रह की कोर है भी या नहीं. अधिकांश खगोलशास्त्रियों का यह मानना है कि बृहस्पति ग्रह की कोर बहुत छोटी है और उसपर विशाल गैसीय आवरण है. पृथ्वी से हमें बृहस्पति ग्रह की वास्तविक सतह नहीं बल्कि विज़ुअल सतह दिखती है. लेकिन यह विज़ुअल सतह बनती कैसे है? हाइड्रोजन और हीलियम के अतिरिक्त बृहस्पति ग्रह पर सूक्ष्म मात्रा में अमोनिया और अमोनियम हाइड्रोसल्फ़ाइड भी हैं. यही वे गैसें और पदार्थ हैं जो बृहस्पति ग्रह को इतना रंगीन और इसकी सतह को अनोखा बनाती हैं. सूर्य के प्रकाश में अमोनियम हाइड्रोसल्फ़ाइड सल्फ़र बनाती है जो हल्के पीले से लेकर लाल रंग का हो सकता है. यही वह पदार्थ है जो बृहस्पति ग्रह की विज़ुअल सतह को पीला/लाल रंग देता है.

आप बृहस्पति ग्रह के प्रसिद्ध रेड स्पॉट नामक तूफ़ान के बारे में जानते होंगे. पृथ्वी की तरह ही बृहस्पति ग्रह पर भी बादल बनते हैं लेकिन ये बादल पीले रंग के होते हैं. पृथ्वी पर बनने वाले बादल पानी की बूंदों और बर्फ के क्रिस्टल से बनते हैं लेकिन बृहस्पति ग्रह के बादल अमोनिया से बनते हैं. आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि लगभग 1 करोड़ ज्ञात रासायनिक यौगिकों में से अमोनिया ही वह यौगिक है जिसके गुणधर्म पानी से बहुत मिलते हैं, हांलाकि यह मनुष्यों के लिए हानिकारक है. पृथ्वी पर बनने वाले बादल स्थाई नहीं होते लेकिन बृहस्पति ग्रह पर बनने वाले अमोनिया के बादल स्थाई और अत्यंत विशालकाल होते हैं. लेकिन कितने विशाल? ये पीले बादल पूरे ग्रह को ढंक देते हैं और हमें इसके आर-पार कुछ नहीं दिखता.

इन बादलों के बारे में सोचने पर एक रोचक प्रश्न उठता है. यदि हम इन बादलों के कारण बृहस्पति ग्रह की सतह नहीं देख पाते तो क्या हम कोई एयरक्राफ़्ट या जांच उपकरण बृहस्पति ग्रह में भेजकर उसे ग्रह के दूसरी ओर से निकाल सकते हैं? बृहस्पति ग्रह के ऊष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में इन बादलों की बेल्ट बनती हैं लेकिन इन बेल्टों की बनावट में भी भिन्नताएं होती हैं. इन भिन्नताओं के कारण इनमें घर्षण होता है जिससे तूफ़ान उठते हैं. इन तूफ़ानों में 360 किलोमीटर प्रति घंटे की गति से हवा चलना सामान्य बात है. बृहस्पति ग्रह के इन तूफ़ानों के सामने पृथ्वी पर उठनेवाले तूफ़ान चींटी के समान हैं. बृहस्पति ग्रह का विकराल लाल धब्बा भी एक तूफ़ान है जो कई शताब्दियों से घूम रहा है. इसका आकार पृथ्वी का लगभग 2-3 गुना है. हमारा बनाया किसी भी तरह का कितना भी मजबूत एयरक्राफ़्ट इस तूफ़ान का सामना एक सेकंड के लिए भी नहीं कर सकता. बृहस्पति ग्रह के वातावरण में प्रवेश करनेवाले किसी भी यंत्र के सही-सलामत रहने की संभावना लगभग शून्य है.

कुछ दुस्साहसी अन्वेषक यह कहेंगे कि हम ऐसा सुपर एयरक्राफ़्ट बना सकते हैं जो बृहस्पति ग्रह के तूफ़ानी वातावरण का सामना कर सकता हो. लेकिन बृहस्पति ग्रह पर प्रचंड तूफ़ानों के अतिरिक्त भी बहुत कुछ है. हमारे यान को पिघला देने वाले तापमान और चूर-चूर कर देनेवाले वायुदाब का भी सामना करना पड़ेगा. और यदि हमारा यान बृहस्पति ग्रह की कोर तक पहुंच भी गया तो उसका सामना ठोस हाइड्रोजन से होगा. पता नहीं हमारे यान का वहां क्या हश्र होगा लेकिन जीतेगा हर हाल में बृहस्पति ग्रह. अंग्रेजी में ही नहीं बल्कि हिंदी में भी हमने इस ग्रह का जो नाम रखा है वह हमें इसके चरित्र के बारे में बहुत कुछ बता देता है. (image credit)

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