वड़े के बीच में छेद होने से इसकी सतह के क्षेत्रफल और आयतन का अनुपात बढ़ जाता है, जिससे यह बाहर-भीतर से अच्छी तरह से सिंक जाता है.
वड़े छेद वाले भी होते हैं और बिना छेद वाले भी. मसाला वड़ा और दही वाले वड़े में छेद नहीं होता. सांबर के साथ खाए जाने वाले उड़द की दाल के वड़े का आटा अधिक सघन गूंथा जाता है और इसमें दाल की मात्रा कम होती है. इससे इसके सिंकने की क्षमता पर प्रभाव पड़ता है. मसाला वड़ा बिना किसी छेद के जल्दी सिंक जाता है जबकि छेद नहीं होने पर उड़द का वड़ा बीचों-बीच कच्चा रह जाता है. यदि इसे अधिक देर तक तला जाएगा तो इसकी बाहरी तह जल जाएगी. इसके बीच में छेद कर देने से गर्म तेल इसकी अधिक सतह के संपर्क में आने लगता है और गहराई तक अच्छी सिंकाई होती है.
वड़े के बीच में छेद करने के दो अन्य कारण ये भी हैंः 1. इससे वड़ा बीच से फूलता नहीं है, और 2. दुकान में वड़ा बनानेवाले को किसी पतले तार से इन्हें कढ़ाई से निकालना आसान हो जाता है. जब बड़ी मात्रा में वड़े बनाए जाते हैं तो एक व्यक्ति इसे गर्म तेल में छोड़ने का काम करता रहता है और दूसरा व्यक्ति इन्हें तले जाने पर तेल से निकालता रहता है.
यहां यह जानना रोचक है कि कर्नाटक के कुछ क्षेत्रों में उड़द के वड़े में छेद केवल दुकान या रेस्तरां वगैरह में ही किया जाता है, घरों में नहीं. यह एक अंधविश्वास है जिसमें लोग यह मानते हैं कि घर में बनाए जाने वाले वड़े में छेद तभी बनाया जाना चाहिए जब किसी मृतक की स्मृति में कार्यक्रम आयोजित किया जा रहा हो.
अमेरिका व यूरोप में (और अब भारत में भी) मिलनेवाले डोनट्स (doughnuts) के बीच में भी छेद इसी कारण से किया जाता है. अमेरिका में मिलनेवाले फ्रिटर्स (fritters… गुलगुले जैसे दिखनेवाले मीठे या नमकीन वड़े) में छेद नहीं होता. (image credit)