क्या यह संभव है? हां, यह संभव है. क्या यह व्यावहारिक होगा? शायद नहीं.
2025 … मतलब सिर्फ सात-आठ वर्ष. मंगल तक मनुष्य को ले जाने और वापस लाने में जितना संसाधन लगेगा उसके लिए इतना समय पर्याप्त नहीं होगा.
राष्ट्रपति कैनेडी ने यह घोषणा की थी कि हम चंद्रमा तक जाएंगे और इस काम को अंजाम देने में 8 वर्ष और लगभग 4,00,000 व्यक्तियों का श्रम लगा. इतना समय और श्रम केवल उस छोटी अंतरिक्ष यात्रा में लगा जिसकी अवधि दो सप्ताह से भी कम थी और इतने समीप, लगभग 8 लाख किलोमीटर आना और जाना. चंद्रमा पर छठवीं लैंडिंग पर ही हम अभियान दल को सतह पर तीन दिन के लिए उतार सके. इसकी तुलना में मनुष्यों को मंगल ग्रह तक की ढाई वर्ष की यात्रा पर भेजना बहुत ही कठिन है.
अमेरिकी उद्यमी ईलोन मस्क की कंपनी स्पेस-एक्स (SpaceX) पिछले 15 वर्षों से इस काम में बहुत गंभीरता से लगी है लेकिन अभी तक इसने एक भी मनुष्य को धरती से एक इंच भी ऊपर नहीं उठाया है. इसमें कोई संदेह नहीं है कि वे मनुष्य के मंगल तक लेकर नहीं जा सकते लेकिन इस संबंध में आनेवाली सारी समस्याओं का समाधान कर पाना, मिशन के लिए ज़रूरी हार्डवेयर और सॉफ़्टवेयर बनाना, और अभियान दल तथा पृथ्वी पर मौजूद दल को यात्रा के लिए तैयार करने के काम में इतनी बड़ी चुनौतियां हैं कि उन्हें 2025 तक पूरा नहीं किया जा सकता.
अंतरिक्ष दुःसाध्य क्षेत्र है. अपैल 2011 में स्पेस-एक्स ने यह घोषणा की थी कि उनका फॉल्कन हैवी रॉकिट (Falcon Heavy rocket) 2013 तक उड़ान के लिए तैयार हो जाएगा और 2017 में इसका पहला लांच होगा, लेकिन अभी परिस्तिथियां उनके अनुकूल नहीं लग रहीं. अंतरिक्ष यात्रा की तैयारी करना बहुत बड़ा काम है. इसमें किसी-न-किसी कारण से विलंब होता रहता है और नई-नई चुनौतियां सामने आती रहती हैं.
मंगल ग्रह तक की लंबी यात्रा में मिशन के सदस्यों को कुछ बड़ी समस्याओं का सामना करना पड़ेगा जैसे रेडिएशन, यान को मंगल पर उतारने से पहले धीमा करना और सफलतापूर्वक उतारना, मंगल ग्रह पर पानी का बंदोबस्त करना या पानी की बड़ी मात्रा अपने साथ ले जाना, यान के अलग-अलग मॉड्यूल्स, कार्गो आदि को भूमि पर सकुशल उतारना, वहीं पर कुछ मॉड्यूल बनाना जो सतह पर चलाए जा सकें, वापसी यात्रा के लिए ऐसा यान तैयार करना जो मंगल के गुरुत्व और वातावरण को छोड़ सके, मंगल ग्रह पर आवास की व्यवस्था करना, आदि कुछ बहुत महत्वपूर्ण समस्याएं हैं. इनके अलावा भी बहुत सारी अज्ञात समस्याओं का सामना करने के लिए दल को तैयार रहना पड़ेगा.
हमारे इंजीनियर इनमें से कई समस्याओं का समाधार करने में सक्षम हैं लेकिन उनसे यह उम्मीद करना ठीक नहीं कि वे अगले पांच-छः वर्षों में यह कर लेंगे, वह भी तब जब इन कार्यों के लिए ज़रूरी धन की व्यवस्था निजी स्तरों पर ही की जा रही हो. यदि सरकारें इस मिशन पर पैसा लगाने की सोचेंगी तो उनकी बहुत अधिक आलोचना होगी इसलिए कॉर्पोरेशंस को ही इसके लिए धन जुटाना होगा. (image credit)