कभी-कभी कोई अंतरिक्ष अनुसंधान यान (Probe) केवल एक ही अनुसंधान कार्य के लिए बनाया और भेजा जाता है. 30 अप्रैल 2015 को स्पेसक्राफ़्ट मैसेंजर (Messenger) को जानबूझकर बुध ग्रह पर गिरा दिया गया. इससे हमें यह पता चला कि मैसेंजर किस वेग व ऊर्जा से ग्रह की सतह से टकराया, इसलिए कुछ वर्षों में जब स्पेस्क्राफ़्ट ESA बुध पर जाएगा तब वह टक्कर से बने क्रेटर के चित्र लेगा और हमें क्रेटर की विशेषताओं से बुध ग्रह की सतह की जानकारियां प्राप्त होंगी. अप्रैल 2014 में स्पेस्क्राफ़्ट LADEE को चंद्रमा पर गिरा दिया गया. पांच महीने बाद एक दूसरे स्पेस्क्राफ़्ट LRO ने LADEE की टक्कर से बने क्रेटर के चित्र लिए. उन चित्रों से भी हमें चंद्रमा की सतह के बारे में कई जानकारियां मिलीं.
2009 में स्पेस्क्राफ़्ट LCROSS को चंद्रमा पर तेज गति से गिरा दिया गया था जिससे सतह की सामग्री का बड़ा गुबार उठा. एक दूसरे स्पेस्क्राफ़्ट ने इस गुबार का अध्ययन किया और चंद्रमा की सतह पर पानी की मौजूदगी के बारे में बताया.
कभी-कभी ऐसा करना उस समय बहुत ही आवश्यक हो जाता है जब स्पेस्क्राफ़्ट को ज़रूरी अध्ययन के लिए सतह के बहुत पास भेजा जाता है और उनका मार्ग वहीं स्थिर हो जाता है. जुड़वां GRAIL स्पेस्क्राफ़्ट “एब एंड फ़्लो” (Ebb and Flow) को इन्हीं कारणों से 2012 में गिरा दिया गया था.
कभी-कभी किसी दूसरी ही अनहोनी से बचाने के लिए ऐसा करना पड़ता है. वर्ष 2003 में गैलीलियो को जानबूझकर बृहस्पति ग्रह के वातावरण में नष्ट होने के लिए भेज दिया गया ताकि वह भविष्य में कभी किसी दुर्घटनावश बृहस्पति ग्रह के उपग्रह यूरोपा (Europa) के समुद्र में नहीं गिर जाए. हो सकता है कि यूरोपा के समुद्र में किसी प्रकार का जीवन हो और वह स्पेस्क्राफ़्ट में मौजूद पृथ्वी के जीवाणुओं के संपर्क में आकर दूषित (contaminate) हो सकता था. (image credit)