जीवन में सबसे महत्वपूर्ण क्या है?

इसे हम तीन युवकों के उदाहरण से समझने की कोशिश करेंगे. मान लें कि तीनों की उम्र 25 साल है.

पहला युवक एक साल में 24 लाख कमाता है (2 लाख रुपए प्रतिमाह).

दूसरा एक साल में 12 लाख कमाता है (1 लाख रुपए प्रतिमाह)

और तीसरा एक साल में 3 लाख कमाता है (25 हजार रुपए प्रतिमाह)

क्या आप बता सकते हैं कि इन तीनों में से सबसे सुखी कौन होगा?

क्या पहले युवक को इतने अच्छे पैकेज पर काम करने के कारण सबसे अधिक सुखी नहीं होना चाहिए?

हो सकता है. लेकिन हमें अभी और डेटा चाहिए. हमारी जानकारियां पर्याप्त नहीं हैं. हम और अधिक सूचना एकत्र करेंगे.


पहला युवक अपने घर-परिवार से दूर रहता है. उसे सप्ताह में सातों दिन चौबीसों घंटे ज़रूरी फोन कॉल्स और असमय मीटिंग्स के लिए तैयार रहना पड़ता है.

दूसरा युवक अपने परिवार के साथ रहता है और उसे हर वीकेंड पर छु्ट्टी मिलती है. तीसरे युवक के साथ भी यही होता है.

अब बताइए कि इन तीनों में सबसे सुखी कौन है?

अब आपको लग रहा होगा कि पहले और दूसरे युवक में ही सबसे सुखी होने की खींचतान होगी, नहीं क्या?

लेकिन… अभी हम थोड़ा और डेटा जुटाएंगे. हम इन तीनों के बारे में थोड़े और फैक्ट कलेक्ट करेंगे.


पहले युवक का परिवार बहुत अच्छा है लेकिन वह काम के दबाव के कारण उनके साथ बिल्कुल भी वक्त नहीं बिता पाता. वह ज्यादातर समय फ्रस्टेटेड रहता है.

दूसरे युवक के घर का वातावरण बहुत खराब है. उसे घर खाने को दौड़ता है. काम जल्दी खत्म करके घर जाने को उसका कभी मन ही नहीं करता. वह भी ज्यादातर फ्रस्टेटेड रहता है.

तीसरे व्यक्ति के घर में बहुत अच्छा पारिवारिक माहौल है लेकिन वह पैसों की कमी होने से सबकी ज़रूरतें पूरी नहीं कर सकता. वह भी अक्सर फ्रस्टेटेड रहता है.

अब बताइए कि इन तीनों में से सबसे सुखी कौन है? शायद कोई भी नहीं.

ये सभी व्यक्ति अपने-अपने कारणों से दुखी हैं. हर एक के दुखी होने की वज़ह दूसरे व्यक्ति से पृथक है.

लेकिन एक कॉमन चीज है जो इन तीनों युवकों के मामले में मिसिंग है. कौन सी चीज?

उस चीज को हम ‘संतुलन’ कहते हैं. संतुलन अर्थात बैलेंस. शास्त्रों में इसे ‘समता’ कहा गया है.

जीवन के हर पक्ष में संतुलन का होना हमें सुखी, स्वस्थ, और प्रसन्न रखता है. अपने जीवन में संतुलन को बनाए रखने के लिए हर व्यक्ति को अपनी क्षमता के अनुरूप कर्म करना है. इस संतुलन को साधना बहुत कठिन है. जब एक पलड़ा भारी होता है तो दूसरा हल्का हो जाता है. जब दांत होते हैं तो चने नहीं होते… जब चने होते हैं तो दांत नहीं होते.

तीन युवकों के इस उदाहरण को आप जीवन में संतुलन के स्थान पर किसी और बात को समझने के लिए भी प्रयुक्त कर सकते हैं. लेकिन हर एनालिसिस में आप यही पाएंगे कि दुनिया में ऐसा कोई व्यक्ति नहीं है जिसे कोई दुःख न हो. हर व्यक्ति की अपनी प्राथमिकताएं और अपनी समस्याएं हैं. अमीर हो या गरीब, कोई भी इनसे अछूता नहीं है.

किसी भी व्यक्ति को अपने जीवन से क्या चाहिए इसे केवल वही व्यक्ति पहचान सकता है. किसी के लिए यह संतुलन हो सकता है, किसी के लिए कुछ और.

अपनी प्राथमिकताएं डिफ़ाइन कीजिए. अपनी समस्याओं को पहचानिए. सामना हर चुनौती का कीजिए लेकिन यह भी जानिए कि आप हमेशा जीत नहीं सकते. जीत नहीं पाएं तो दूसरी राह पकड़ लें, किसी नई दिशा और दशा की ओर. चलते रहने के सिवा कोई चारा नहीं है. है क्या?

(Anshul Sharma, Operations Coordinator at Uber के Quora उत्तर पर आधारित)

Photo by Mika Matin on Unsplash

There are 8 comments

  1. maitreya

    आधुनिक जीवन का वास्तव दर्शाती काहाणी. …. !
    सुख को अपनाया है गर तुमने दुख को भी तो अपनाना होगा ||
    चुन लिया है फूलों को अगर, तो काटोंका साथ निभाना होगा ||

    जन्म मरण का खेल है जीवन, तमस बन जाए सूरज का दर्पण |
    उम्र का पौधा बढ़ता जाए, और घटता जाए आयु का पर आँगन ||
    गर अमृत की प्यास है तुम्हे, फिर विष को कंठ तक लाना होगा ||
    सुख को अपनाया है गर तुमने दुख को भी तो अपनाना होगा ||
    चुन लिया है फूलों को अगर, तो काटोंका साथ निभाना होगा ||

    मंदिर,मस्जिद और गुरुद्वारे मनुष्य के आगे सब यहाँ पर हारे ||
    चैन मिला ना मनको कही पे पास मंज़िल के ही भटके है सारे ||
    अगर ईश्वर है मंज़िल तुम्हारी, तुम्हे अग्निपथ पे चलना होगा ||
    सुख को अपनाया है गर तुमने दुख को भी तो अपनाना होगा ||
    चुन लिया है फूलों को अगर, तो काटोंका साथ निभाना होगा ||

    जन्म लिया तो मरण साथ है, दिन जब बीते तब आती रात है ||
    सासों का यह आना जाना ना मालूम किसे यह किसके हाथ है ||
    छाँव राहत की चाहिए अगर तो दर्द की धूप में जलना होगा ||
    सुख को अपनाया है गर तुमने दुख को भी तो अपनाना होगा ||
    चुन लिया है फूलों को अगर, तो काटोंका साथ निभाना होगा ||

    नींद भी झुटि सपना झुटा, होश भी हमसे जैसे जन्मो से रूठा ||
    अपना पराया किसको कहे हम, स्वयं से स्वयं का नाता टूटा ||
    फूल अगर बनना है तुमको, पहले मिट्टी में ही खो जाना होगा ||
    सुख को अपनाया है गर तुमने दुख को भी तो अपनाना होगा ||
    चुन लिया है फूलों को अगर, तो काटोंका साथ निभाना होगा ||
    मैत्रेय

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  2. Rajesh Shankar

    एक पक्ष यह भी है की
    पहला व्यक्ति दुसरे की ख़ुशी देख कर दुखी है |
    तीसरा व्यक्ति दुसरे का दुख देख कर यह तसल्ली करके खुश है की चलो कम से कम मै उससे जैसा दुखी तो नहीं हूँ |
    अब तीनो मिलकर इस निर्णय पर आ गए है की दुःख तो सबका साथी है चलो इस बात हुए सुखी होने का drama करते हैं |

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