ऊपर फोटो में दिख रहे व्यक्ति का नाम स्तानिस्लाव पेत्रोव (Stanislav Petrov) है. यह कहना अतिश्योक्तिपूर्ण नहीं होगा कि पेत्रोव ने सूझ-बूझ से काम लेकर दुनिया को परमाणु युद्ध से बचा लिया.
पेत्रोव सोवियत संघ की सेना के एक खुफिया ठिकाने पर काम करते थे और उनका पदनाम कुछ-कुछ ऐसा था – “डिप्टी चीफ़ फॉर कांबेट एल्गोरिद्म एट सेपुखोव-15”. उनका काम था एक कंप्यूटर स्क्रीन पर छोटी सी लाल लाइट को देखते रहना और इसके बुझते ही अपने बॉस को तत्काल सूचित करना.
उस लाल लाइट के बुझने का अर्थ यह था कि शत्रु (सं.रा. अमेरिका) या किसी अन्य देश ने सोवियत भूमि पर खतरनाक न्यूक्लीयर मिसाइलें लांच कर दी हैं और बहुत बड़ी तबाही होने ही वाली है.
26 सितंबर, 1983 को आधी रात के वक्त लाल लाइट बुझ गई.
उन दिनों सोवियत संघ शीतयुद्ध के कारण हुए गंभीर आर्थिक संकट से लड़खड़ा रहा था. वह अमेरिका के मुकाबले कमज़ोर पड़ता जा रहा था और उसे यही लगता रहता था कि अमेरिका का कठोर राष्ट्रपति रोनाल्ड रीगन किसी भी समय हमला करने का आदेश दे देगा. कुछ दिनों पहले ही एक दक्षिणी कोरियाई हवाई जहाज सोवियत एयरस्पेस पर इस तरह प्रवेश कर गया जैसे कि वह सुरक्षा का स्तर जांच रहा हो. दोनों तरफ़ असुरक्षा और भय का वातावरण था और किसी भी समय कुछ भी हो सकता था.
लाल लाइट के बुझने पर कंप्यूटर में कोई बग या सिस्टम में आई किसी खराबी को जांचने का समय नहीं था. लेकिन पेत्रोव को यह लगा कि अमेरिका ने कोई फुल-स्केल अटैक नहीं किया था और पूरे सोवियत जखीरे को समाप्त करने के लिए अमेरिका को सैंकड़ों मिसाइलें दागनी पड़तीं.
पेत्रोव ने अपने सुपरवाइज़र को यह कहा कि सिस्टम में वाकई कोई खराबी आ गई है. सुपरवाइज़र और दूसरे लोग जवाबी मिसाइलें छोड़ने के लिए तैयार थे. कंप्यूटर में आनेवाली किसी भी खराबी पर विश्वास करके देश की सुरक्षा के साथ समझौता करना संभव नहीं था. लेकिन पेत्रोव ने अपने तर्क देकर उन्हें कुछ देर प्रतीक्षा करने के लिए राज़ी कर लिया.
उस यदि वहां पेत्रोव की जगह कोई और होता तो वह आदेशों का अक्षरशः पालन करता. इसके बाद होने वाले युद्ध में कुछ ही दिनों में लगभग एक अरब लोगों की मृत्यु हो जाती.
पेत्रोव की बात सही निकली. कंप्यूटर सिस्टम में वाकई कोई खराबी थी और कोई हमला नहीं हुआ था. सब लोगों ने राहत की सांस ली. जब यह खबर अमेरिका पहुंची तो उन्होंने भी भगवान को धन्यवाद दिया कि अमेरिका पर भयानक हमला होते-होते रह गया.
इसके बाद सब कुछ पहले की तरह चलता रहा. उच्च स्तर पर सभी ने पेत्रोव की सराहना की और पुरस्कार देने का आश्वासन दिया, जो कभी मिला नहीं. उन्होंने स्वास्थ्यगत आधार पर कुछ महीने बाद सेना की नौकरी छोड़ दी और उन्हें नर्वस ब्रेकडाउन हो गया. उन्हें बाद में छोटे-मोटे पुरस्कार मिलते रहे. संयुक्त राष्ट्र संघ ने उन्हें विश्व नागरिक (world’s citizen) पुरस्कार दिया और जर्मनी ने अपना प्रतिष्ठित द्रेस्देन पुरस्कार दिया.