तीन अदम्य दुस्साहसी व्यक्ति अपनी मृत्यु को स्वीकार करते हुए रेडियोएक्टिव पानी में गोता लगाने के लिए तैयार हो गए क्योंकि वे अपने देश और पूरे यूरोप को बचाना चाहते थे.
2 मई, 1986 की शाम को बेलारूस की सीमा के करीब यूक्रेन के एक छोटे से शहर चेरनोबिल में लेनिन न्यूक्लियर पॉवर प्लांट में जोरदार धमाका हुआ. इस धमाके में संयंत्र पूरी तरह नष्ट हो गया और बहुत बड़ी मात्रा में रेडियोएक्टिव पदार्थ वातावरण में रिसने लगा. आज तक यह पता नहीं चला है कि इस त्रासदी में कितने लोग मारे गए. अपुष्ट सूत्रों के अनुसार लगभग 1 हजार लोग इस दुर्घटना के कारण जान से हाथ धो बैठे.
दुर्घटना के परिणामस्वरूप प्लांट से रेजियोएक्टिव पानी रिसकर जमीन में और पास के नदी-नालों में जाने लगा. इस पानी को प्लांट में किसी इमरजेंसी में कूलिंग पंप या स्टीम पाइपों में आनेवाली खराबी की दशा में उपयोग के लिए भरकर रखा गया था. रेडियोएक्टिव पदार्थ के संपर्क में आनेपर यह पानी पूरे शहर के पर्यावरण को नष्ट कर रहा था और इसके बहुत दूरगामी परिणाम हो सकते थे.
जिस वक्त पूरे शहर में हाहाकार मचा हुआ था, तीन दुस्साहसी व्यक्ति अलेक्सी अनानेन्को (Alexi Ananenko), वालेरी बेज़्पोआलोव (Valeri Bezpoalov) और बारिस बारोनोव (Boris Baronov) ने प्लांट में जाकर इस समस्या का सामना और समाधान करने के लिए आगे बढ़कर इस सुसाइड मिशन का अंग बनना स्वीकार कर लिया. वे स्कूबा सूट पहनकर रेडियोएक्टिव पानी में तैरते हुए चैंबर के बेसमेंट में पहुंचे और उन्होंने वे वॉल्व सफलतापूर्वक बंद कर दिए जिनसे दूषित पानी प्लांट से बाहर आ रहा था.
इस काम को पूरा करने के कुछ दिनों के भीतर ही उन तीनों की रेडियोएक्टिव विषाक्तता के कारण मृत्यु हो गई और उन्हें सीसे के ताबूतों में दफ़नाया गया. यदि ये तीनों युवक इस सुसाइड मिशन को अंजाम नहीं देते तो थर्मल विस्फोट होने से इतनी बड़ी तबाही फैलती जिसका अनुमान लगाना भी कठिन है.
उन तीन बहादुरों की के नाम अब लोग भूल चुके हैं. इस घटना का ज़िक्र भी अब आपदा प्रबंधन की पाट्यपुस्तकों में ही होता है. मानवता और अपने देश के लिए दिए गए उनके बलिदान को हमें यूं ही नहीं बिसरा देना चाहिए. (image credit)