नहीं. हर कीमती धातु एक भौतिक तत्व है. किसी भी तत्व को बनाने के लिए अपार मात्रा में ऊर्जा चाहिए. पृथ्वी पर इतनी ऊर्जा नहीं है. बृहस्पति ग्रह पर भी इतनी ऊर्जा नहीं है. किसी भी प्रकार की नाभिकीय ऊर्जा प्रारंभ करने के लिए बृहस्पति को 75 गुना अधिक विशाल होना पड़ेगा.
सबसे हल्के तत्व (हाइड्रोजन, हीलियम, लीथियम आदि) बिग बैंग के दौरान बने थे.
हर नया स्वस्थ तारा हाइड्रोजन का ‘दहन’ करता है. हाइड्रोजन के परमाणु संलयित होकर हीलियम बनाते हैं. बूढ़ा होने पर तारा लाल दानव (red giant) बन जाता है. इस समय हीलियम का ‘दहन’ संभव हो जाता है जिससे कार्बन बनता है. कार्बन के ‘दहन’ से नियॉन, नियॉन के ‘दहन’ से ऑक्सीजन, ऑक्सीजन के ‘दहन’ से सिलिकॉन, और सिलिकॉन के दहन से आयरन बनता है.
आयरन बहुत स्थाई तत्व है. यह कोई ऊर्जा रिलीज़ नहीं करता, इसलिए तारे की तत्व बनाने की प्रक्रिया आयरन पर आकर थम जाती है.
सुपरनोवा के विस्फोट से और भी कई तत्व बनते हैं. सुपरनोवा के न्यूक्लीयोसिंथेसिस से सिलिकॉन, सल्फर, क्लोरीन, टाइटेनियम, वेनेडियम, क्रोमियम, मैंगनीज़, आयरन, कोबाल्ट, और निकल बन सकते हैं. इसके बाद न्यूट्रॉन कैप्चर प्रोसेस (R-प्रोसेस और S-प्रोसेस) से निकल से भारी तत्व बन सकते हैं.
यह माना जाता है कि गोल्ड भी सुपरनोवा में ही बनता है लेकिन हाल में मिली जानकारियों से यह पता चला है कि गोल्ड और इस जैसी भारी धातुएं दो न्यूट्रॉन तारों के टकराने से भी बनती हैं. (image credit)