आपके शरीर में किसी दूसरे प्राणी का रक्त चढ़ाते ही आपका शरीर बाहरी तत्व को आक्रमणकारी मानकर तत्काल सेल्फ-डिफेंस में आ जाएगा. आपका शरीर जवाबी कार्रवाई (Inflammatory response) में इससे फौरन छुटकारा पाने की कोशिश करेगा. यदि शरीर इस स्थिति का सामना नहीं झेल नहीं पाएगा तो शॉक (shock) की अवस्था में चला जाएगा जिसमें रक्त-परिसंचरण तंत्र (circulatory system) काम करना बंद कर देता है, शरीर में अनेक स्थानों पर हैमरेज होने लगता है, और दूसरी कई जटिलताओं से मृत्यु हो जाती है.
यदि आपके शरीर में घोड़े का 10 ml खून इंजेक्ट कर दिया जाए तो आपको तबीयत खराब होने की अनुभूति होने लगेगी और हल्का बुखार भी आ जाएगा लेकिन आप सुरक्षित रहेंगे. यदि कुछ सप्ताह बाद ऐसा दोबारा कर दिया जाए तो आपकी तबीयत पहले से भी अधिक खराब हो जाएगी. ऐसा होने पर व्यक्ति को स्किन पर चकत्ते, जो़ड़ों में दर्द, ब्लड प्रेशर में गिरावट के साथ एनाफाइलेक्टिक शॉक हो सकता है जिससे मृत्यु भी हो सकती है. एनाफाइलेक्टिक शॉक प्रोटीन के प्रति अति संवेदवनशीलता से उत्पन्न प्राणघातक दशा है.
पहले मामले में घोड़े के सीरम में वे प्रोटीन थे जिन्हें आपके शरीर ने पहले कभी नहीं देखा था. आपके शरीर ने उन्हें बाहरी तत्व जानकर उन्हें तोड़ दिया और उनके विरुद्ध एंडीबॉडीज़ डेवलप कीं. इसमें कुछ समय लगता है. जब दूसरी बार आपके शरीर में घोड़े का खून इंजेक्ट किया गया तब आपके शरीर में इसका सामना करने के लिए एंडीबॉडीज़ थीं… जो कि अच्छी बात है, लेकिन इन्होंने घुलनशील प्रोटीन को अघुलनशील एंटीजन/एंडीबॉडी यौगिक में बदल दिया जो खून की पतली वाहिनियों में जम गया. इससे शरीर में इन्फलेमेशन के बाद रैशेज़, जोड़ों के दर्द, किडनी का डैमेज वगैरह होने लगा. इसे सीरम सिकनेस (Serum sickness) कहते हैं.
यह तो आप जानते ही होंगे कि हम हर मनुष्य को केवल वही खून चढ़ा सकते हैं जो उसके ही ब्लड टाइप या ग्रुप का हो. हमारा शरीर इस बात का बहुत ध्यान रखता है कि यह कौन सा पदार्थ इसके लिए हितकर है और कौन सा हानिकारक है. (image credit)