हमारे रात्रि आकाश का दृश्य आलौकिक होगा लेकिन इसके परिणाम भयानक होंगे.
शनि ग्रह शुक्र ग्रह से बहुत अधिक बड़ा है. यदि यह शुक्र ग्रह के स्थान पर आ जाए तो इसकी चमक में 5 मैग्नीट्यूड की वृद्धि हो जाएगी. इसकी चमक लगभग -9.5 मैग्नीट्यूड हो जाएगी. इतनी तेज चमक में रात को परछाइयां बनना या किताब पढ़ना संभव होगा.
शनि का व्यास शुक्र के व्यास का लगभग 10 गुना है. हमें इसके वलय (rings) बिना दूरबीन के दिखाई देने लगेंगे. जब यह हमारे अधिक समीप होगा तब इसके वलयों सहित शनि ग्रह पूर्णिमा के चंद्रमा के आधे आकार जितना दिखेगा.
लेकिन शनि ग्रह को अचानक ही सूर्य से नजदीकी बढ़ जाने के कारण बहुत तेज तापमान का सामना करना पड़ेगा. वर्तमान में शनि जिस स्थान पर है वहां बहुत ठंडक है. शनि के वलय जमी हुई गैस और हिम से बने हैं. सूर्य के समीप जाने पर गैस और हिम पिघलकर भाप बन जाएगी. ऐसा हर वलय वाले ग्रह के साथ और उसके उपग्रहों के साथ होगा. भाप बन जाने पर धूमकेतुओं की तरह गैस और वाष्प के बादलों की बहुत बड़ी पूंछ पूरे आकाश को घेर लेगी. इस दृश्य की कल्पना करना या उसका अनुमान लगाना कठिन है. हम यह भी नहीं कह सकते कि वह कितनी चमकदार होगी. कुछ समय के लिए उसकी चमक -20 के मैग्नीट्यूड में हो सकती है अर्थात अपने शिखर पर वह पूर्ण चंद्रमा से भी अधिक चमकदार होगी. यह सब कुछ साल या दशक तक दिखता रहेगा, फिर धीरे-धीरे यह अंतरिक्ष में बिखर कर गायब होता जाएगा.
धूकेतुओं जैसी बर्फीली पूंछ वाले हिमकण सौरवायु से धकेले जाएंगे और शायद यह बृहस्पति के निकट तक चले जाएं. पृथ्वी इस पूंछ से बार-बार गुजरेगी और इसके परिणामस्वरूप घनघोर उल्कापात होगा जिसमें प्रति घंटे हजारों हिम उल्काएं वायुमंडल में प्रवेश करेंगी. पृथ्वी की कक्षा में स्थापित हजारों उपग्रहों के लिए यह बहुत खतरनाक परिस्तिथि होगी.
सूर्य के इतने निकट होने पर शनि ग्रह के पर्यावरण और उसकी भौगोलिकी पर भी बहुत प्रभाव पड़ेगा जिसके परिणाम बहुत रोचक हो सकते हैं पर उनकी चर्चा फिर कभी… (image credit)