बृहस्पति ग्रह के वातावरण में 90% हाइड्रोजन और लगभग 10% हीलियम है. इनमें से हाइड्रोजन अति ज्वलनशील गैस है. वहां माचिस जला देने पर तो पूरा ग्रह धमाके से उड़ जाना चाहिए. नहीं क्या?
नहीं. माचिस में जलनेवाला पदार्थ कार्बन का होता है, जो घर्षण से उत्पन्न हुई ऊष्मा में ऑक्सीजन की उपस्थिति में जलकर CO2 बनाता है. जब ऑक्सजन ही नहीं होगी तो माचिस भी नहीं जलेगी. हाइड्रोजन भी पृथ्वी पर ऑक्सीजन की उपस्थिति में जलकर H2O बनाती है.
बीसेक साल पहले जब शूमेकल-लेवी 9 धूमकेतु बृहस्पति ग्रह से टकराया तब वहां होनेवाला धमाका 5 करोड़ मेगाटन TNT की क्षमता का था. इतना प्रलयंकारी विस्फोट होने पर और वातावरण में हाइड्रोजन तथा अन्य ज्वलनशील गैसों की भरमार होने पर भी बृहस्पति में आग नहीं लगी क्योंकि वहां इन गैसों के ज्वलन में सहायता करनेवाली मुक्त ऑक्सीजन नाम मात्र की भी नहीं है. अतीत में बृहस्पति पर शूमेकल-लेवी 9 से भी बड़े धूमकेतु और उल्का पिंड गिरे होंगे. सौरमंडल के निर्माण के समय ऐसा अक्सर ही होता रहा होगा. कोई ग्रह इतने नाजुक नहीं होते कि वे हल्की सी आग लगने पर जलकर राख हो जाएं.
अंतरिक्ष में मुक्त ऑक्सीजन की उपस्तिथि बहुत कम है. इसके होने की संभावना वहीं है जहां पेड़-पौधे प्रकाश संश्लेषण करते हैं. खगोलशास्त्री जब अंतरिक्ष में दूसरे ग्रहों पर जीवन के प्रमाण खोजते हैं तो सबसे पहले यह देखते हैं कि उसके वातावरण में ऑक्सीजन कितनी है. अंतरिक्ष की बहुत विशाल दूरियों में कई प्रकाश वर्ष दूर किसी ग्रह के वातावरण में ऑक्सीजन की पहचान करना बहुत कठिन है. यही कारण है कि हम बाह्य अंतरिक्ष में जीवन की खोज के प्रति बहुत आशान्वित नहीं हैं. (image credit) नासा के इस चित्र में बृहस्पति और उसका उपग्रह इओ (Io) एक साथ दिख रहे हैं.