मुझे इसकी संभावना बहुत कम ही लगती है. मेरे इस विचार के पीछे यह सोच है कि हमारे पास आकाशगंगा के परे जाने का कोई भी युक्तिसंगत कारण नहीं है. यदि हम अपनी आकाशगंगा से बाहर जाएंगे तो किसी दूसरी गैलेक्सी तक ही जाएंगे. हमारी अपनी गैलेक्सी आकाशगंगा के सबसे निकट जो गैलेक्सी (देवयानी या Andromeda galaxy) है वह लगभग 25 लाख प्रकाश वर्ष दूर है. यदि हम प्रकाश की गति से भी चलें तो भी उस तक 25 लाख वर्ष में पहुंचेंगे.
हो सकता है हमारी भावी पीढ़ियां दूसरी गैलेक्सियों तक जाने के लिए वर्महोल (wormholes) का प्रयोग करना सीख लें. यदि ऐसा हो गया तो हम “Contact” फिल्म की जोडी फॉस्टर की तरह वर्महोल्स की सुरंगों से होते हुए ब्रह्मांड में कहीं भी पहुंच सकते हैं. लेकिन वर्महोल्स से संबंधित हमारी जो थ्योरियां हैं वे बताती हैं कि इस प्रकार की यात्राओं के लिए वर्महोल इतने अस्थाई हैं कि हमें यात्रा करने का मौका ही नहीं मिलेगा.
किप थॉर्न ने वर्महोल संबंधित अपने 1988 में लिखे पेपर में एक समस्या पर विचार किया था. उन्होंने लिखा कि वर्महोल इतने अस्थाई और इतने अल्पायु होते हैं कि किसी को भी उनके माध्यम से यात्रा करने के लिए पर्याप्त समय मिलने के पहले ही वर्महोल गायब हो जाएगा. यहां एक लूपहोल हैः यदि भौतिकविद और इंजीनियर अंतरिक्ष के किसी बहुत बड़े क्षेत्र में “निगेटिव-एनर्जी घनत्व” का निर्माण कर सकें तो वर्महोल को कुछ समय तक बनाए रखा जा सकता है. ऐसा करने का फिलहाल तो कोई तरीका हमारे पास नहीं है, लेकिन सैद्धांतिक भौतिकी इसे खारिज नहीं करती. जब तक ऐसा न हो सकेगा तब तक हम तारों के परे जाने के बारे में भी नहीं सोच सकते. हालांकि यही एकमात्र समस्या नहीं है. कभी-कभी यह लगने लगता है कि हमें इन समस्याओं के समाधान पाने के लिए किसी दूसरी तरह की भौतिकी खोजनी पड़ेगी.
भविष्य में अंतर्तारकीय यात्राओं के लिए किसी प्रकार की टनलिंग संभव हो सकेगी, यह मेरा विश्वास है. यह भी हो सकता कि तकनीक उपलब्ध होने पर हम हमारे एक साल में ही एंड्रोमेडा गैलेक्सी तक की 25 लाख प्रकाश वर्ष की यात्रा कर सकेंगे. लेकिन वहां से वापस पृथ्वी पर आने पर हम पाएंगे कि इस बीच यहां 50 लाख वर्ष बीत चुके हैं. (image credit)