मैंने अपना पहला कंप्यूटर 1999 में लिया था. लेने के ही बाद से उसमें हर कभी खराबी आने लगीं . और मैं उसे सुधारने में दिन-रात लगा रहता था. उसके चलने की कोई गारंटी नहीं थी कि वह कितना चलेगा. वह अपनी मर्ज़ी से चलता और चलते-चलते बंद हो जाता. उसे हर वक्त सुधारते रहना पड़ता था.
उन दिनों के कंप्यूटर आज की तरह के नहीं थे. आजकल तो आप कंप्यूटर या लैपटॉप खरीदते हैं और दो-तीन साल उसे इस्तेमाल करके नया कंप्यूटर ले लेते हैं.
उन दिनों पता नहीं वह कौन सी बात थी जो मुझे हर वक्त अपने कंप्यूटर की हालत सुधारने में जी-जान से लगाए रहती थी.
लगभग हर दूसरे सप्ताह मैं अपने कंप्यूटर का पुर्ज़ा-पुर्ज़ा अलग करके उन्हें दोबारा जोड़कर देखता था कि काम बनता है या नहीं. मुझे लगता था कि जैसे मेरी किस्मत में वह काम पूरी ज़िंदगी करना लिखा था.
वह सब याद करते और लिखते हुए मुझे लग रहा है कि उसके बार-बार खराब होने का कारण शायद यह भी था कि मैं उसे कई बार पार्ट-दर-पार्ट अलग करके जोड़ने का आदी हो गया था.
और आपको एक मजेदार बात बताऊं? मुझे एक बार भी इस बात का पता नहीं चला कि वह आख़िर बार-बार काम करना क्यों बंद कर देता था. वह बस चलते-चलते रुक जाता था. बिला वज़ह.
और हर बार मैंने तमाम तरह के प्रयोग उसके साथ करके देखे जब तक वह फिर से नहीं चलने लगा.
और, जैसा कि मैंने ऊपर बताया, मैं कभी भी यह समझ नहीं पाया कि वह क्यों खराब हो जाता था. जब वह फिर से काम करने लगता तब सारी बात ही खत्म हो जाती. शायद मुझे उन दिनों टैक्नोलॉजी की ज्यादा समझ नहीं थी. शायद मैं सरफ़िरा बेवकूफ़ था. क्या पता, किसे पता…
कभी उसमें कहीं कोई बाल फंस जाता. कभी कहीं डस्ट चली जाती. क्या पता? मैंने कभी ज्यादा सीरीयसली नहीं सोचा. मैंने इसकी परवाह ही नहीं की. उसे फिर से चलाना ही मेरी सबसे बड़ी ज़रूरत थी.
और यह सब करते-करते मैंने ज़िंदगी का एक बड़ा सबक सीखा.
यह वो सबक है जो तभी से मेरे साथ है और मेरी ज़िंदगी का एक हिस्सा बन गया है. हर वह काम जो मैं करता हूं उसमें यह मददगार है. इस आर्टिकल को लिखते वक्त और अतीत में मेरे लिखे सभी आर्टिकल व भविष्य में जो आर्टिकल में लिखूंगा उनमें भी यह मेरी सहायता करता है.
इस दुनिया में जब हम बड़े हो रहे होते हैं तो हमें एक तरह का लॉजिक सिखाया जाता है. हमसे यह उम्मीद रखी जाती है कि किसी काम के नहीं बन पाने की सूरत में हमें यह ज्ञान हो कि ऐसा क्यों हुआ. हमसे यह उम्मीद रखी जाती है कि हमें सारी बातें साफ़-साफ़ पता हों.
लेकिन जिंदगी में बहुत कुछ ऐसा है जो लॉजिक से नहीं चलता. बहुत सारी बातें ऐसी होती हैं जो बिल्कुल भी लॉजिक फॉलो नहीं करतीं. कुछ चीज़ें ज़रूरत से ज्यादा जटिल होती हैं. कांप्लीकेटेड होती हैं. एक-दूसरे में गुंथी हुई होती हैं.
चाहे वह हमारे आपसी संबंध हों, या बिजनेस, या प्यार, या कुछ और. इनमें से किसी भी चीज़ में कोई लॉजिक नहीं चलता. ये ऐसी चीज़ें हैं जो निहायत ही अन-प्रेडिक्टेबल हैं.
हर बात की एक थ्योरी होती है और एक रियालिटी होती है. और ये दोनों अक्सर ही बहुत जुदा होती हैं. आमतौर पर ये दोनों एक दूसरे से बहुत ही विपरीत होती हैं.
ज्यादातर मौकों पर रियालिटी बिल्कुल अबूझ सी होती है, सैंसलेस होती है. हम नहीं बता सकते कि जैसा हुआ वैसा क्यों हुआ. इसका उस थ्योरी से कोई वास्ता नहीं होता जो हमने स्कूल-कॉलेज में पढ़ी या समाज में रहते हुए सीखी.
रियालिटी किसी तय लॉजिक या रूल को फॉलो नहीं करती. रियालिटी स्कूल के कोर्स में या किन्हीं किताबों में पढ़ी कॉन्सेप्ट्स से बहुत अलग होती है.
और यही कारण है कि आज मैं इस बात को जानता हूं कि चाहे मैं कुछ भी करूं, चाहे मैं किसी भी बात के पीछे के लॉजिक के बारे में कुछ भी सोचूं, मेरे तकरीबन सभी पूर्वानुमान और सारी धारणाएं अक्सर ही गलत साबित होते हैं. अपने दस साल के ब्लॉगिंग कैरियर में मैंने यह सीखा. मैंने देखा कि जिन चीज़ों के चलने की मैंने उम्मीद की थी वे बुरी तरह से फेल हो गईं. वहीं दूसरी ओर मैं कोई काम बिल्कुल मन करता रहा लेकिन उसे लोगों ने पसंद किया.
चाहे जो हो, अलग तरीके से सोचना शायद आजकल की सबसे बड़ी समस्या है. लोग लॉजिक में बहुत अधिक यकीन करते हैं. वे कार्य-कारण प्रभाव के बारे में सोचते हैं जिसके अनुसार कुछ ऐसा होगा तो उसके वैसे परिणाम निकलेंगे. लेकिन ऐसा अक्सर ही नहीं होता.
आजकल लोग खराब हो जाने पर अपने कंप्यूटर या लैपटॉप को खोलकर नहीं बैठ जाते. लोग चीज़ों को सुधारने के लिए इस लिमिट तक जाने की ज़हमत नहीं उठाते. यदि वह किसी भी तरह नहीं सुधरती तो लोग उसे कबाड़ में फेंक देते हैं. लोग किसी चीज़ की कद्र तभी तक करते हैं जब तक वह काम करती रहती है.
ऐसे में जब आप किसी चीज़ को कभी सुधारने की कोशिश नहीं करते, जब आप उन्हें समझने की कोशिश नहीं करते, जब आप अपने कंप्यूटर के पुर्ज़े खोलकर नहीं देखते… तो आप इस बात को नहीं समझ सकते कि जीवन में कुछ भी तय लॉजिक से नहीं चलता.
ज़िंदगी में कुछ भी प्रेडिक्टेबल नहीं है. ज़िंदगी में कुछ भी एक सीध में नहीं चलता.
ज़िंदगी का सच यह है कि इसमें हर चीज़ ऊन के बड़े से उलझे हुए गोले की तरह इतनी गुत्थमगुत्था है कि हम उसे समझ नहीं सकते. सिर्फ लॉजिक से हम इसे समझ नहीं सकते. यह पूरी अनप्रेडिक्टेबल है.
और यही वह सबसे बड़ा सबक है जो मैंने 90 के दशक में तब सीखा जब मैं अपने कंप्टर को पार्ट-पार्ट करके जोड़ने की कोशिश करता रहता था.
कहीं कोई लॉजिक नहीं है. कहीं कोई ब्लूप्रिंट नहीं है. ऐसी कोई गाइडबुक नहीं है जिसे हम फॉलो कर सकें.
ज़िंदगी ट्रायल और एरर्स का सेट है. इसे बहुत ज़िद के साथ बहुत धुन के साथ जीने की ज़रूरत है. साथ ही साथ इस बात को समझने के लिए थोड़ा धीरज भी चाहिए कि एक-न-एक दिन सब चीज़ें समझ में आने लगेंगी, उलझी हुई चीज़ों सुलझने लगेंगी. बिगड़ते हुए काम कभी तो बनेंगे!
आपको क्या लगता है?
Photo by Ashley Batz on Unsplash
ur articles are very nice n connected with day to day life .keep it up
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वाह जी, वाह! तुसी ग्रेट हो!!
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बिलकुल सही कहा सर।
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nice article
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आपका बात कहने का तरीका बेहतरीन है. जिन्दगी की अंधेरी राह में एक धुंधली सी रोशनी की तरह.
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ज़िंदगी ट्रायल और एरर्स का सेट है. इसे बहुत ज़िद के साथ बहुत धुन के साथ जीने की ज़रूरत है
इस एक वाक्य में जीवन का सार समाया है
सर आपके लिखने का स्टाइल ही ऐसा है कि पूरा लेख पढ़ जाते है
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waha gutthi jo kabhi uljhi thi aadam ke hathon aaj tak suljha rha hun . wah dear bhut achha samjhaya hai aapne tnks
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Very nice article sir..
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aapne ek chhoti si baat kehkar bahut badi jindagi ki sachhayi bata di he. bahut hiuttam lekh.
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सोलह आने सच्ची बात कही है आपने कि जीवन में कुछ भी पहले तय लॉजिक से नहीं चलता। बेहद उम्दा किस्म का मोटीवेशन है यह। अच्छे लेख के लिए अाापका बहुत बहुत आभार।
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निशांत महोदय, बहुत दिनों से आप की कोई पोस्ट नहीं आईं। आप कुशल से तो है। हो सके तो पोस्ट कीजिए।
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सॉरी, विपुल जी. आपका कमेंट स्पैम में चला गया था.
बीच में यात्रा पर और लौटने पर काम के दबाव के कारण पोस्ट नहीं कर पाया. अब कोशिश करूंगा.
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Apne bahut hi sahi bat ki h…hame bahut pasand ayi…..thnku very much
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Our life is a trial,what we are doing currently will be useful for our future,every dots connect with each other and make one line
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interesting article. keep it up.
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शानदार पोस्ट …. sundar prastuti … Thanks for sharing this!! 🙂 🙂
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बहुत ही अच्छा लेख और प्रस्तुति है!
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