“अच्छा कैसे लिखें” को लेकर दी जानेवाली ज्यादातर सलाह बकवास होती है.
तुम्हारे आर्टिकल में अच्छी फोटो इन्सर्ट कर देने से ही कोई उन्हें नहीं पढ़ेगा.
आर्टिकल में शानदार इन्फ़ोग्राफ़िक लगा देने से ही कोई उन्हें नहीं पढ़ेगा.
फोंट और पैराग्राफ़ वगैरह की उम्दा फ़ार्मेटिंग कर देने से ही कोई उन्हें नहीं पढ़ेगा.
किसी दूसरे की ब्लॉग पोस्ट पर अपना कमेंट छोड़ देने से ही कोई तुम्हारे आर्टिकल नहीं पढ़ेगा.
मैं जानता हूं कि इन बातों पर यकीन कर लेना बहुत अच्छा लगता है. क्योंकि ये सब है ही बहुत आसान. यह ऐसा है जैसे किसी ने तुम्हें एक रोडमैप दे दिया हो… और रोडमैप सभी को अच्छे लगते हैं. उन्हें देखने से यह अहसास होता है कि सब कुछ व्यवस्थित होगा, कंट्रोल में होगा, और तुम सही-सलामत अपनी मंजिल तक पहुंचोगे.
लेकिन लिखने के मामले में कोई रोडमैप काम नहीं आता.
तुम्हें लगता है कि किसी लिस्ट में सुझाई गई बातों को फॉलो करके, कुछ चेक-बॉक्स में निशान लगाकर अपना काम करने से बात बन जाएगी. तुम्हें लगता है कि लोग तुम्हें कैसे भी खोज निकालेंगे, तुम्हारा लिखा पढ़ेंगे और तुम फ़ेमस हो जाओगे.
अफ़सोस, चीजें इस तरह से नहीं चलतीं. जब तुम किसी मैप या गाइडबुक को फ़ॉलो करते हो तो तुम वह काम कर रहे होते हो जिसे करने में सभी जुटे हुए हैं. उसी राह पर चलने से तुम्हें खज़ाना नहीं मिलेगा.
ऊपर कही गई बातों को पढ़ते रहने पर तुम्हारा सामना लेखकों की एक बड़ी भीड़ से होगा जिसमें सभी एक जैसी बातें ही लिख या कह रहे हैं. इसमें तो कुछ नया नहीं है. यही वज़ह है कि तुम्हारे लेखन में किसी को कोई दिलचस्पी नहीं हो रही है.
अब कुछ काम की बात…
यदि तुम चाहते हो कि लोग तुम्हें रूचि लेकर पढ़ें तो तुम्हें चाहिए एक… ऑडिएंस.
यदि तुम्हारी कोई ऑडियेंस या पाठकवर्ग नहीं है तो लोग तुम्हें यूंही बैठे-ठाले पढ़ ले रहे हैं. लेखन को लेकर तुम्हारी हैसियत को बदलने के लिए यह बहुत ज़रूरी है कि तुम्हारी एक तयशुदा ऑडिएंस हो. एक ऑडिएंस क्रिएट करने के बाद यदि तुम कहीं की कोई टिप्स फ़ॉलो करोगे तो तुम्हारी पोजीशन में कुछ परसेंट का सुधार हो सकता है.
लेकिन ऐसा होने के लिए पक्की ऑडिएंस का होना सबसे बड़ी शर्त है.
सबसे पहले तो तुम्हें हार्डवर्क करना होगा. लेकिन ऊपर बताई गई बातों का ताल्लुक किसी हार्डवर्क से नहीं है. मैं किसी दूसरी तरह के हार्डवर्क की बात कर रहा हूं. असल हार्डवर्क है अपनी फ़ॉलोविंग बनाना. अपनी ऑडिएंस बनाना.
तो तुम अपनी ऑडिएंस बनाना चाहते हो? अपनी फ़ॉलोविंग बनाना चाहते हो?
मैं नहीं जानता कि तुम किस तरह के काम में लगे हो. लेकिन मैं तुम्हें बता सकता हूं कि मेरे मामले में किस तरह की रणनीति काम करती है…
# सैक्सी लड़कियों की फ़ोटोज़ लगाना
जो भी तुम्हें अपनी पोस्ट में फ़ोटो लगाने का सजेशन दे रहा है वो बकवास कर रहा है.
क्यों? क्योंकि हर कोई अपनी पोस्ट में फ़ोटो लगा रहा है. हर कोई इसी एड्वाइस पर चल रहा है. इसीलिए यदि तुम भी अपनी पोस्ट में फ़ोटो लगा दोगे तो शायद ही कोई नोटिस करे. कोई परवाह नहीं करता.
फिर भी सच तो ये है कि पोस्ट में फ़ोटो या इन्फ़ोग्राफ़िक का इस्तेमाल करने से उसे पढ़नेवालों की संख्या में बढ़त होती है बशर्ते तुम्हारी एक ऑडिएंस हो. जहां कोई ऑडिएंस ही नहीं है वहां कोई पढ़नेवाला नहीं है.
यदि तुम्हारी कोई ऑडिएंस नहीं है तो थोड़े बहुत पाठक जुटाने का मैं एक ही तरीका जानता हूं, और वह है पोस्ट में सैक्सी लड़कियों की तस्वीरें लगा देना, जिन्हें खोजते हुए कोई तुम्हारे ब्लॉग में टपक पड़े. मैंने तो यह सब नहीं किया, तुम चाहो तो ट्राई कर सकते हो…
# दूसरों की पोस्ट नहीं पढ़ना
बहुत से लोग तुम्हें स्मार्ट और फ़ेमस राइटर्स की पोस्ट पर कमेंट करने की सलाह देंगे. यहां दिक्कत ये है कि उनकी पोस्ट पर कमेंट करने के लिए तुम्हें उसे पूरा पढ़ना पड़ेगा और उसे समझना पड़ेगा. फिर तुम्हें वहां कोई स्मार्ट कमेंट करना पड़ेगा जिसे लोग नोटिस करें.
ये तो बहुत सारा काम हो गया. इससे तो बेहतर है कि तुम अपने ब्लॉग पर ही कुछ छोटा-मोटा लिख लो.
यही वज़ह है कि दूसरों की पोस्ट पर अपना कमेंट छोड़नेवाले ज्यादातर लोग सिर्फ फ़िज़ूल की बातें कर रहे होते हैं. तुम उनके कमेंट पर सरसरी निगाह डालकर ही बता सकते हो कि उन्होंने पोस्ट को ढंग से नहीं पढ़ा है. इसीलिए जब तुम्हें वाकई किसी की पोस्ट पर कमेंट करने का दिल करे तो थोड़ी मेहनत करो. अपना और दूसरों का वक्त बरबाद मत करो.
मैं कभी भी किसी के ब्लॉग पर कमेंट नहीं करता. इसकी वज़ह ये है कि मेरी इच्छा ही नहीं होती कि मैं किसी और का लिखा पढ़ूं और फिर कोई स्मार्ट कमेंट करने का सोचूं. सच तो ये है कि मुझे स्मार्ट लोगों की कही और लिखी ज्यादातर बातें समझ में ही नहीं आतीं.
इसकी बजाए मैं अपने ओरीजिनल कंटेट को तैयार करने पर पूरा ध्यान लगाता हूं. मैं वाकई दूसरों की लिखी बातें नहीं पढ़ता. मुझे लगता है कि इससे मुझे अपने मौलिक विचारों तक पहुंचने में मदद मिलती है. ये मुझे ज्यादा क्रिएटिव बनाता है. मैं कुछ नया खोज पाता हूं. यदि मैं इसमें सफल न भी रहूं तो मैं परवाह नहीं करता.
# लोगों की बेइज्जती करना
मैं तुम्हें सच में ही किसी की बेइज्जती करने को नहीं कह रहा हूं. प्लीज़ मेरे कहने में आकर किसी की इन्सल्ट मत कर देना. लेकिन तुम्हें किसी क्रेज़ी आदमी की तरह रिएक्ट करना पड़ेगा. तुम्हें पूरे होशोहवास में वे बातें कहनी पड़ेंगी जिन्हें कुछ लोग पसंद न करें. तुम्हें दूसरों की परवाह किए बगैर अपनी खरी-खरी ओपीनियन देनी होगी. तुम्हें यह सच में करके दिखाना होगा.
यहां 99.9% लोगों की अपनी कोई ओपीनियन नहीं होती. या फिर वे अपनी ओपीनियन ज़ाहिर करने से डरते हैं. वे अपने विचारों को, अपनी भावनाओं को प्रगट करने से घबराते हैं. वे यही सोचते हैं कि दूसरे लोग उनके बारे में क्या सोचेंगे. वे नहीं चाहते कि वे किसी को नाराज़ कर बैठें.
यही वज़ह है कि ये 99.9% लोग वही दोहराते रहते हैं जो उनसे पहलेवाले वहां कहकर निकल चुके हैं. यही वज़ह है कि कोई उनके लिखे में दिलचस्पी नहीं लेता.
# लोगों को खुद से जोड़ना
हर महीने मैं हजारों लोगों को खुद से ट्विटर, मीडियम और क्वोरा पर जोड़ता हूं. क्यों? क्योंकि किसी को भी मेरे बारे में, मेरे काम के बारे में, मेरे विचारों के बारे में ऐसे ही पता नहीं चल जाएगा. विचार अपने आप नहीं फैलते. उन्हें फैलाना पड़ता है.
# एनालाइटिक्स की परवाह न करना
बहुत सारे लोग अपना बहुत सा वक्त डेटा एनालिलिस और ऑप्टिमाइजेशन में खपा देते हैं. किसी ने ब्लॉग पर कितना वक्त गुजारा, कौन कहां से आया, कहां गया, कितना पढ़ा, कहां क्लिक की, यूट्यूब पर कितने मिनट वीडियो देखा, रिटर्निंग विज़िटर कितने हैं… वगैरह-वगैरह.
मुझे नहीं पता कि लोग मेरे ब्लॉग पर कितना वक्त गुज़ारते हैं या वे कितने आर्टिकल पढ़ते हैं, या वे पढ़ते भी हैं या नहीं. मैंने साल भर पहले गूगल एनालाइटिक्स इन्स्टाल किया था लेकिन मैंने इसे बमुश्किल दो बार ही चैक किया होगा.
मैं सिर्फ इतना जानता हूं कि हर दिन के अंत तक किसने लोग मेरे ब्लॉग को साइन-अप करते हैं.
बाकी बातों से कोई फर्क नहीं पड़ता. कम-से-कम मुझे तो नहीं पड़ता. आंकड़ों के हेर-फेर में पड़ने पर तुम्हें यह लगने लगता है कि बहुत सारी चीजें ठीक से नहीं हो रही हैं. तुम्हें लगने लगता है कि तुम्हारे लिखने में कई गड़बड़ियां हैं.
क्योंकि केवल 2% लोग ही तुम्हारे लिखे को अच्छे से पढ़ते हैं. फिर तुम चाहोगे कि इस फिगर में थोड़ी बढ़ोत्तरी हो. इसके लिए तुम वह सब लिखने लगोगे जो शायद और भी लोगों को पसंद आए. हर किसी को खुश करने के चक्कर में तुम दूसरे लोगों की तरह लिखने लगोगे. इस तरह तुम्हें तुम्हारी ऑडिएंस कभी नहीं मिलेगी.
इसका कारण ये है कि अच्छा पढ़ने, सुनने या देखने वाली ऑडिएंस पर दूसरे लोग पहले ही कब्जा कर चुके हैं. ये ऑडिएंस उनके पास चली गई है जिनकी अपनी यूनीक राइटिंग स्टाइल है, और अब हर कोई उन्हें कॉपी कर रहा है…
# दो लाइनों के महत्व को समझना
तुम्हारे आर्टिकल की पहली दो लाइनों से ज्यादा महत्वपूर्ण और कुछ नहीं है. इसी तरह आखिरी की दो लाइनें. ज़रा देखो कि मैंने इस आर्टिकल की पहली दो लाइनों में क्या लिखा था. यदि तुम इस लंबे आर्टिकल के इस भाग तक पहुंच गए हो तो इसमें बहुत हद तक उन्हीं दो शुरुआती लाइनों की करामात है जिन्होंने तुम्हें इसे पढ़ने पर मजबूर किया. क्यों? पहले ऊपर देखो फिर नीचे…
# जानदार पोस्टें लिखना
ज्यादातर लोग लिस्टवाली पोस्टें गलत तरीके से लिखते हैं. यदि तुम भी लिस्टवाली पोस्ट लिखते हो तो अमूमन पहली (या केवल वही) चीज जो लोग पढ़ेंगे वो है तुम्हारी सब-हेडलाइन्स. यदि ये सब-हेडलाइन्स बोरिंग या अनइन्ट्रेस्टिंग लगीं तो लोग तुम्हारी पोस्ट पढ़ने में अपना वक्त नहीं लगाएंगे.
यही वज़ह है कि मेरी पहली सब-हेडलाइन सबसे ज्यादा ध्यान खींचनेवाली होती है. मैं हमेशा कोशिश करता हूं कि मेरी पोस्ट की सारी सब-हेडलाइन्स बिल्कुल फ्रेश हों. ये सच है कि मैंने इसका डिमांस्ट्रेशन करने के लिए थोड़ी ज्यादा छूट ले ली लेकिन ये तरकीब काम कर गई क्योंकि तुम अभी भी ये आर्टिकल पढ़ रहे हो.
# कुछ भी नहीं पढ़ना
हर कोई तुम्हें कहेगा कि अच्छा राइटर बनने के लिए हर दिन कुछ-न-कुछ पढ़ना बहुत ज़रूरी है. मुझे ये सलाह बहुत ओवर-रेटेड लगती है. अच्छा राइटर बनने के लिए सबसे ज़रूरी शर्त ये है कि तुम रोज़ लिखो. ये सच है कि पढ़ना महत्वपूर्ण है, खासकर तब जब तुम शुरुआती दौर में हो. लेकिन बहुत से लोग अच्छा पढ़ते रहने के जाल में फंस जाते हैं, वे लिखने पर ध्यान नहीं देते.
इसकी वज़ह ये है कि लिखने की तुलना में पढ़ना बहुत आसान है. पढ़ने वक्त तुम्हें अपने दिमाग को झकझोरना नहीं पड़ता. पढ़ते वक्त तुम रिलैक्स रहते हो पढ़ने का आनंद उठाते हो. मैंने तो 2015 में ही पढ़ना बंद कर दिया था ताकि मैं अपने दिमाग को झिंझोड़ सकूं और अपनी वॉइस को पा सकूं…
# कब लिखना – कब नहीं लिखना
रोज़ लिखो. रोज़ लिखने से तुम्हें हफ्ते में एक या दो बार लिखने की तुलना में कम समय और रिसोर्स लगेंगे. जब तुम हफ्ते में एक या दो बार लिखते हो तो तुम्हारा बाकी का वक्त लिखने की प्लानिंग और फालतू के सोचविचार में लग जाता है कि क्या लिखें, कैसे लिखें ताकि लोग रुचि लेकर पढ़ें.
कब लिखें का निर्णय करते रहने से हमारे दिमाग की क्षमता पर दबाव पड़ता है और वक्त भी बरबाद होता है. इसीलिए रोज़ ही लिखने की आदत डालना बेहतर है. हर दिन लिखने की आदत डाल लेने से तुम फालतू की टालमटोल करते रहने से बच जाते हो. लिखो. रोज़ लिखो. चाहे जो हो. कब-जब-जब के चक्कर में मत पड़ो.
# खुद को रीइन्वेन्ट करना
रीइन्वेन्शन का मतलब है खुद को नए सिरे से तैयार करते रहना. जब तुम रोज़ लिखते हो तो तुम्हें खुद को रीइन्वेन्ट करने का मौका मिलता रहता है. क्योंकि हो सकता है कि किसी दिन तुम दो-तीन पेज की लिस्ट पोस्ट लिखने के लिए वक्त नहीं निकाल पाओ. हो सकता है किसी दिन तुम्हारे पास अपने विचारों को लिखने के लिए मुश्किल से पांच मिनट ही मिल पाएं.
और यही वह ज़रिया है जब तुम्हें खुद को रीइन्वेन्ट करना पड़ेगा. तुम्हारे सोचने, लिखने, और बोलने के तरीके को बार-बार इंप्रूव करते रहना पड़ेगा. यही एकमात्र तरीका है जिससे तुम हमेशा नई-नई चीजों को सीख सकोगे. इसी उपाय से तुम्हारे भीतर से लिखने का डर निकल सकेगा. मैं तो कभी-कभी वक्त की बेहद कमी होने पर एक-दो लाइनों की पोस्ट भी लिख देता हूं…
# औसत पोस्टें लिखना
लिखने या अपनी पोस्टें पब्लिश करने के डर का सामना करने का एक तरीका ये है कि तुम कभी-कभार औसत या घटिया पोस्टें भी लिखो. मेरे ब्लॉग में ज्यादातर कंटेंट कामचलाऊ है. मुझे उससे कोई फर्क नहीं पड़ता. मेरे लिए सबसे ज़रूरी बात ये है कि मैं असफल होने या रिजेक्ट कर दिए जाने के अपने डर पर जीत कायम करूं.
यदि तुम हर वक्त शानदार पोस्टें लिखते रहोगे तो तुम्हारे ऊपर हर वक्त शानदार कंटेंट लिखने और पोस्ट करने का दबाव बढ़ता जाएगा. कोई भी व्यक्ति लंबे समय तक इस प्रेशर में काम नहीं कर सकता. तुम हमेशा ही चौके और छक्के नहीं लगा सकते. तुम्हें कभी-कभी एक-एक करके भी रन बटोरने होंगे. परफ़ेक्शन के फेर में पड़ना ठीक नहीं.
कभी-कभी क्वालिटी नहीं बल्कि क्वांटिटी काम कर जाती है…
# लिखने के नियम गढ़ना
लेखन के अपने नियम-कायदे होते हैं. यहां कोई सेट रूल नहीं हैं. लिखने को लेकर मैंने जो कुछ भी कहा या लिखा है वह बहुत हद तक बेमानी है. मेरे बनाए नियम-कायदे मुझपर लागू होते हैं. हो सकता है कि वे तुमपर लागू न हों. असल बात तो ये है कि तुम्हें अब लिखना शुरु करना है और अपने नियम-कायदे आप बनाने हैं, दूसरों के बनाए रूल्स तुम्हें फ़ॉलो नहीं करने हैं…
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Mind blowing article sir. Main bhi hamesha best likhne ki koshish karta rahta hu. Thanks for this wonderful article. It gave me a nice thought. Bus kaam karte jaiye. Hamesha 4-6 nahi lag paate. Single lekar bhi strike routed karte rahna chahiye. Wonderful article 🙂
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I am glad that you liked this post, Sandeep. Keep reading and writing.
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बहुत सही पकड़े हैं निशान्त जी । 🙂
ब्लागिंग कुछ अलग नही है । हम यहाँ भी वैसे ही व्यव्हार करते हैं जैसे आम जीवन में करते हैं। ये मेरा अपना अनुभव है ।
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आपने बहुत ही बढ़िया तरीके से describe किया है.
जो blogging के लाइन में नए है , उनको इससे बहुत मदद मिलेगा.
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Thank you, Sabina, for your valuable comment.
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kuchh nyi jankari mili vrna jyadatar blogger aapke pehle diye gye points ko hi suggest krta he or follow krneko bolta he.
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Accha likha hai aur kuch hatkar likha hai….jo sahi bhi hai……dhanyavad…..
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बहुत बढ़िया article लेकिन इसे कोई मानने वाला नहीं है ठीक उसी तरह जैसे हम TED Talk बस सुनके ही रह जाते हैं। करना तो हमें वही है जो अब तक करते आए हैं।
रही बात ऑडियंस की तो अपनी ऑडियंस को अपने आप से अधिक ज्ञानी समझें। आप कभी निराश नहीं होंगे।
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निशांत जी आपने बहुत ही अच्छा और सही लिखा है पढकर बहुत कुछ सीखने को मिला।
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कुछ अच्छा ही बोला है लिखने वाले ने। अपने दिल की बातों को बस बता दिया हैं बिना जाने की कौन क्या सोचेगा।
अच्छा ये लगा की परफेक्शन लाने के चक्कर में हम पोस्ट ही नहीं कर पाते की कब हमारी पोस्ट अच्छी होगी और हम पोस्ट करेंगे।
बढ़िया लगा पोस्ट को पढ़कर। ☺
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