हम अपने बच्चों को सारी खुशियां देना चाहते हैं क्योंकि हममें से बहुतों ने बहुत सादा बचपन बिताया. हमारे पैरेंट्स के पास विकल्प सीमित थे इसलिए हम अपने बच्चों को उन चीजों से वंचित नहीं रखना चाहते जो हमें उपलब्ध नहीं थीं. लेकिन हममें से कई पैरेंट्स अपने बच्चों के प्रति इतना अधिक स्नेह रखते हैं कि वे बच्चों में घर कर रही बुरी आदतों को नज़रअंदाज़ कर देते हैं और उन्हें स्वावलंबी नहीं बनाते. यदि आप ऐसे माता-पिता हैं तो बहुत जल्द ही चीजें आपके नियंत्रण से बाहर हो जाएंगी. निस्संदेह आप अपने बच्चों से बहुत प्रेम करते हैं लेकिन उनके बेहतर भविष्य के लिए यह ज़रूरी है कि नीचे दिए गए बिंदुओं पर विचार करेः
1. बच्चों की परवरिश राजाओं की भांति न करें – यह ज़रूरी है कि आप बच्चों को समय-समय पर यह अहसास होने दें कि वे महत्वपूर्ण हैं लेकिन उन्हें अपने नियंत्रण से मुक्त कर देने के परिणाम प्रतिकूल हो सकते हैं. बच्चों पर आपके नियंत्रण का अर्थ यह है कि आप उनके लिए सीमाओं का निर्धारण करें. उन्हें यह समझाएं कि उन्हें किन हदों को कभी पार नहीं करना है. इसके लिए यह ज़रूरी है कि आप उन्हें कुछ जिम्मेदारियां सौंपें और पैरेंट्स होने के नाते उनका मार्गदर्शन करें.
2. बच्चों को रूपए-पैसे का महत्व बताएं – आजकल अधिकांश घरों में माता-पिता कामकाजी होते हैं इसलिए वे बच्चों को पर्याप्त समय न दे पाने के कारण उन्हें सुख-सुविधा और पॉकेट मनी देकर अपने अपराध बोध को कम करते रहते हैं. ऐसा करते समय वे यह भूल जाते हैं कि पैसा एक साधन मात्र है और इसे साध्य नहीं बनना चाहिए. यदि आप स्वयं पर इस नीति का पालन करेंगे तो आपके बच्चे भी इसका महत्व समझेंगे. हम उस कालखंड में जी रहे हैं जब सब कुछ एक क्लिक पर सर्वसुलभ है. ऐसे में अपने बच्चों को छोटी उम्र से ही रूपए-पैसे देना, उनके लिए महंगी ज्वेलरी, मोबाइल, गेमिंग पैड आदि खरीदना उन्हें सुविधाभोगी बना देगा और ऐसे बच्चों में किसी भी चीज के प्रति कृतज्ञ होने का भाव नहीं पनपेगा.
3. बच्चों को खुद से काम करने के लिए प्रोत्साहित करें – जीवन में आगे बढ़ते रहने के लिए स्वयं कार्य करना बहुत ज़रूरी है. हर जिम्मेदार व्यक्ति को वयस्क होने पर स्वावलंबी बनना पड़ता है, अपने लिए उपयुक्त काम खोजना पड़ता है. अपने बच्चों को यह बात बताकर आप उन्हें उनके भावी जीवन की सफलता में सहायक हो सकते हैं. हो सकता है कि आप उन्हें किसी भी ऐसे काम से बचाना चाहते हों जो कठिन हो या जिसमें बहुत परिश्रम लगता हो लेकिन उन्हें कोई भी काम न सौंपकर आप उन्हें निठल्ला व आलसी ही बना देंगे. यदि आपके बच्चे खुद से उठकर पानी भी नहीं लेते हों तो आपको सावधान हो जाना चाहिए. ऐसा होने पर उन्हें किशोरावस्था में बाहरी दुनिया में एडजस्ट होने में बड़ी कठिनाई जाएगी. उन्हें इस बात का अहसास होने दीजिए कि अपने जूते पहनने से लेकर बगीचे में पानी डालने के काम में किसी भी तरह से संकोच करने से कोई लाभ नहीं होगा. अपना काम खुद करने की आदत विकसित करने से वे भावी जीवन में बड़ी जिम्मेदारियों को कुशलतापूर्वक अकेले ही निभाने की हिम्मत जुटा पाएंगे.
4. बच्चों को “थैंक यू” कहना व आभारी होना सिखाएं – हो सकता है आप अपने बच्चों को इस प्रकार पाल रहे हों कि वे सब कुछ डिज़र्व करते हैं और किसी के प्रति ऋणी न बनें लेकिन यह भावना आपके बच्चों में ओछापन भर देगी. किसी को “थैंक यू” कहना या किसी के काम के प्रति आभारी होने की बात कहने से बच्चे यह जान पाते हैं कि उनके लिए किए जा रहे काम कितने महत्वपूर्ण हैं.
5. अपने बच्चों के सामने बचपना न दिखाएं – पैरेंट्स होने के नाते हमें बच्चों के सामने आदर्श स्थापित करना चाहिए. हमारे बच्चों को यह दिखना चाहिए कि हम जिम्मेदार, दृढ़-प्रतिज्ञ व खरे हैं. यदि हम ही अपने बच्चों के सामने गैरजिम्मेदार बर्ताव करेंगे तो वे हमसे क्या सीखेंगे? कुछ पैरेंट्स अपने बच्चों से हमेशा खीझभरा व्यवहार करते हैं या हमेशा उनकी शिकायतें करते रहते हैं. हमारे बच्चों के सबसे बड़े शिक्षक हम ही हैं और हमारी पर्सनालिटी के निगेटिव लक्षणों को वे सहजता से अपने जीवन में उतार लेंगे.
6. बच्चों को उनकी सीमाओं का बोध कराएं – बच्चे स्वभाव से शरारती और सिरचढ़े हो सकते हैं लेकिन पैरेंट्स होने के नाते यह हमारी जिम्मेदारी है कि हम उन्हें संयत व्यवहार करना सिखाएं. हमें उनमें ऐसे गुणों को विकसित करने का प्रयास करना चाहिए जिनसे वे सबके प्रिय बनें. इसके लिए यह ज़रूरी है कि उन्हें बताया जाए कि उनकी किन बातों को बर्दाश्त नहीं किया जाएगा. बच्चों के नखरों व ज़िद के आगे हार मान लेने पर वे उच्छृंखल और बदतमीज़ बन जाएंगे.
7. बच्चों को हमेशा उनकी मनमानी न करने दें – जागरूक पैरेंट्स के लिए यह जानना ज़रूरी है कि वे अपने बच्चों को क्या करने या नहीं करने की इज़ाज़त दें. बच्चे को उसकी फरमाइश पर एक चॉकलेट या पर्सनल टैब्लेट दिला देना एक ही बात नहीं है. आप बच्चे की ज़रूरत का आकलन करके स्वयं यह तय करें कि उसके लिए क्या अनिवार्य है और क्या गैरज़रूरी है.
8. बच्चों को गलत बातों के लिए गिफ्ट नहीं दें – यदि आपका बच्चा पुराने खिलौने से ऊबकर तुनकमिजाजी या चिड़चिड़ा व्यवहार कर रहा हो तो उसे शांत करने के लिए नया खिलौना दिला देना गलत नीति है. बच्चों को कोई भी गिफ्ट या नया खिलौना दिलाते समय उन्हें यह अहसास होने दें कि वे उसे डिज़र्व करते हैं और उनकी अच्छाइयों के लिए उन्हें रिवार्ड दिया जाता है. ऐसा होने पर वे उत्तरदायी बनेंगे और अपने सामान व खिलौनों को एहतियात से रखेंगे और उनकी कीमत समझेंगे.
9. बच्चों को सुसंगति के अवसर प्रदान करना – कोई पैरेंट्स नहीं चाहता कि उनके बच्चे बिगड़ैल बच्चों के साथ दोस्ती करें लेकिन बहुत कम पैरेंट्स अपने बच्चों को बुजुर्गों के साथ समय बिताने की सलाह देते हैं. अपने दादा-दादी, नाना-नानी या परिवार के अन्य बुजुर्ग व्यक्तियों के पास जीवनानुभवों का खजाना होता है जिससे आनेवाली पीढ़ियां वंचित होती जाएंगी. आप अपने बच्चों को कभी-कभार ही सही लेकिन बुजुर्गों के साथ हिलने-मिलने का मौका दें, अपने घर में उन लोगों को बुलाएं जो सामुदायिक सेवा आदि से जुड़े हों और वॉलंटियर का काम करते हों. बच्चों के लिए यह बहुत ज़रूरी है कि लोगों के साथ उनके संबंध स्वस्थ हों और बुराई की ओर खींचनेवाली संगति से वे दूर रहें.
10. अपने बच्चों की गलतियों पर उनका पक्ष नहीं लें – आपका बच्चा उसके द्वारा किए जानेवाले हर सही-गलत काम के लिए जवाबदेह होना चाहिए. यदि उसने कोई गलती की है तो आप उसका पक्ष नहीं लें. बच्चों को उनकी गलतियों से सबक लेने दें और उन्हें मामूली सज़ा देने से पीछे नहीं हटें. यदि आप हर समय अपने बच्चे का ही पक्ष लेंगे तो वे अपनी गलतियों से कोई सीख नहीं लेंगे और सुधरने की बजाए बिगड़ते जाएंगे.
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बहुत सही संकलन …
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