खोटा सिक्का

यह एक सूफी कथा है. किसी गाँव में एक बहुत सरल स्वभाव का आदमी रहता था. वह लोगों को छोटी-मोटी चीज़ें बेचता था.

उस गाँव के सभी निवासी यह समझते थे कि उसमें निर्णय करने, परखने और आंकने की क्षमता नहीं थी. इसीलिए बहुत से लोग उससे चीज़ें खरीदकर उसे खोटे सिक्के दे दिया करते थे. वह उन सिक्कों को ख़ुशी-ख़ुशी ले लेता था.

किसी ने उसे कभी भी यह कहते नहीं सुना कि ‘यह सही है और यह गलत है’. कभी-कभी तो उससे सामान लेनेवाले लोग उसे कह देते थे कि उन्होंने दाम चुका दिया है, और वह उनसे पलटकर कभी नहीं कहता था कि ‘नहीं, तुमने पैसे नहीं दिए हैं’. वह सिर्फ इतना ही कहता ‘ठीक है’, और उन्हें धन्यवाद देता.

दूसरे गाँवों से भी लोग आते और बिना कुछ दाम चुकाए उससे सामान ले जाते या उसे खोटे पैसे दे देते. वह किसी से कोई शिकायत नहीं करता.

समय गुज़रते वह आदमी बूढ़ा हो गया और एक दिन उसकी मौत की घड़ी भी आ गयी. कहते हैं कि मरते हुए ये उसके अंतिम शब्द थे: – “मेरे खुदा, मैंने हमेशा ही सब तरह के सिक्के लिए, खोटे सिक्के भी लिए. मैं भी एक खोटा सिक्का ही हूँ, मुझे मत परखना. मैंने तुम्हारे लोगों का फैसला नहीं किया, तुम भी मेरा फैसला मत करना.”

ऐसे आदमी को खुदा कैसे परखता?

Image credit

There are 13 comments

  1. rafat alam

    “मेरे खुदा, मैंने हमेशा ही सब तरह के सिक्के लिए, खोटे सिक्के भी लिए. मैं भी एक खोटा सिक्का ही हूँ, मुझे मत परखना. मैंने तुम्हारे लोगों का फैसला नहीं किया, तुम भी मेरा फैसला मत करना.”
    निशांत साब ,अति सुंदर, बहुत बड़ी बात पेश की है आपने खोटे सिक्का कथा के साथ.क्या टिप्पणी कर सकता हूँ सिवा नक़ल के जो ऊपर कर दी है जो खरा सोना है उसकी तो नक़ल ही हो सकती है.काश मै (से मतलब आज का आदमी )०.००१%भी सवभाव में उस सरल आदमी की नकल कर पाता खुद तो तर ही जाता ,आज गन्दा माहोल भी स्वयं ही पवित्र हो जाता .

    पसंद करें

  2. रंजना

    “मेरे खुदा, मैंने हमेशा ही सब तरह के सिक्के लिए, खोटे सिक्के भी लिए. मैं भी एक खोटा सिक्का ही हूँ, मुझे मत परखना. मैंने तुम्हारे लोगों का फैसला नहीं किया, तुम भी मेरा फैसला मत करना.”

    ऐसे आदमी को खुदा कैसे परखता?

    वाह …..

    मन को छूकर अभिभूत कर गया यह वृतांत…
    संत को सचमुच ऐसे ही होते हैं और विनयशीलता संत का जेवर होता है..

    बहुत बहुत आभार आपका इस सुन्दर प्रेरनादायी कथा के लिए..

    पसंद करें

  3. अपने कर्म से नहीं डिगना

    आगे की कथा:

    खुदा ने यह सुना तो उनकी आंखों में गुस्से की अग्नि जल उठी, उन्होंने कहा:

    “मूर्ख, मैंने तुझे सौदागर बनाया, जिसका धर्म होता है हर वस्तु का उचित मूल्य ले. जो तूने किया वह किसी भी तरह से जायज नहीं माना जा सकता. न तो यह खैरात है, जिसका मतलब है किसी जरुरतमंद को मदद पहुंचाना, न वह किसी व्यक्ति को सद्कार्य के लिये प्रेरणा देती है.

    तूने लोगों का धोखा सह लिया, जिससे उन्हें भरोसा हो गया की धोखा देना आसान है और वह तुझे लगातार धोखा देते रहे. उनके पाप बढ़ते रहे, तू उन्हें पाप करने के लिये प्रवृ्त्त करता रहा.

    चल तेरी छोड़ भी दुं तो उन बाकियों का क्या जिन उन्हें बेईमानों ने लूटा? तेरे ही गांव की एक गरीब कुम्हारन ने जब ऐसे ही एक आदमी का सही दाम न चुकाने का विरोध किया तो उसने उसके घड़े तोड़ दिये, जिसकी वजह से उसे 6 दिन तक फाका करना पड़ा. इसका पाप भी तेरे ही सर है.

    तुझे मैंने दुनिया में अपना धर्म निभाने को भेजा, वह तू न कर सका. अब तू मुझे, खुदा को, जो कभी भी इसांफ से नहीं फिरता, अपने धर्म से डिगने को कह रहा है? तुझे अपने किये पापों का फल तो भुगतना ही होगा.

    यह कहकर खुदा ने उस बेवकूफ सौदागर को दोजख रसीद किया.

    पसंद करें

टिप्पणी देने के लिए समुचित विकल्प चुनें

Fill in your details below or click an icon to log in:

WordPress.com Logo

You are commenting using your WordPress.com account. Log Out /  बदले )

Facebook photo

You are commenting using your Facebook account. Log Out /  बदले )

Connecting to %s

This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.