गुरु की कठोर एवं संयमित दिनचर्या से प्रभावित होकर शिष्य ने उनका अनुसरण करने का निश्चय कर लिया और सबसे पहले उसने पुआल पर सोना शुरु कर दिया.
गुरु को शिष्य के व्यवहार में कुछ परिवर्तन दिखाई दे रहा था. उन्होंने शिष्य से पूछा कि वह इन दिनों क्या साध रहा है.
“मैं शीघ्र दीक्षित होने के लिए कठोर दिनचर्या का अभ्यास कर रहा हूं,” शिष्य ने कहा.
“मेरे श्वेत वस्त्र मेरी शुद्ध ज्ञान की खोज को दर्शाते हैं, शाकाहारी भोजन से मेरे शरीर में सात्विकता की वृद्धि होती है, और सुख-सुविधा से दूर रहने पर मैं आध्यात्मिक पथ पर अग्रसर होता हूं.”
गुरु मुस्कुराए और उसे खेतों की ओर ले गए जहां एक घोड़ा घास चर रहा था.
“तुम खेत में घास चर रहे इस घोड़े को देखते हो? इसकी खाल सफेद है, यह केवल घास-फूस खाता है, और अस्तबल में भूसे पर सोता है. क्या तुम्हें इस घोड़े में ज़रा सी भी साधुता दिखती है? क्या तुम्हें लगता है कि आगे जाकर एक दिन ये घोड़ा सक्षम गुरु बन जाएगा?”
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नमस्ते सर मैं आपके ब्लाग का नियमित पाठक हूँ । मुझे आपकी सभी कहानियां व पोस्ट बहुत अच्छी लगती हैं । ये कहानी भी मुझे बहुत अच्छी लगी ।आशा है आगे भी इतनी अच्छी पोस्ट पढने को मिलती रहेंगी । धन्यवाद
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