यह कहानी एक ऐसे आदमी के बारे में है जो अपनी पत्नी से बहुत प्रेम करता था. उसकी पत्नी भी उससे बहुत प्रेम करती थी. फिर कुछ ऐसा हुआ कि पत्नी बहुत बीमार पड़ गयी और चल बसी. आदमी ने अपनी मरती हुई पत्नी को वचन दिया कि वह उसके मरने के बाद दूसरा विवाह नहीं करेगा.
कुछ समय तक तो आदमी अपनी पत्नी को दिए वचन पर अटल रहा पर किस्मत ने तो उसके भाग में कुछ और ही लिखा था. उसे किसी औरत से प्रेम हो गया.
उस औरत के प्यार में वह इतना डूबा कि अपनी पत्नी से किया वादा भूल गया. आदमियों के लिए कसमें-वादे, सालगिरह आदि भूल जाना तो आम बात है पर औरतें इनकी बहुत परवाह करतीं हैं.
अपने विवाह की रात्रि को उसने अपनी मृत पत्नी का प्रेत देखा जो उससे पुराने वादे को तोड़ने की शिकायत करने के लिए आया था. उसे अपने सामने पाकर वह बहुत डर गया. प्रेत ने उसे अपना वादा भूल जाने के लिए बहुत लताड़ा पर वह अब क्या कर सकता था? वह चुप ही रहा. लेकिन मृत पत्नी उसकी बेवफाई को स्वीकार नहीं कर सकी और उसका प्रेत बार-बार आकर उसकी ज़िंदगी को बर्बाद कर देने की धमकी देता रहा.
इस सबसे तंग आकर आदमी एक दिन किसी महात्मा से मिलने गया और उन्हें सारी बात बताई. महात्मा ने कहा – “यह प्रेत बहुत बुद्धिमान है. अगली बार जब वह आये तो तुम अनाज की बोरी में से एक मुठ्ठी अन्न निकालकर उससे पूछना कि तुम्हारे हाथ में कितने दाने हैं.”
जब मृत पत्नी का प्रेत वापस आया तो आदमी ने वैसा ही किया. उसने बोरी में हाथ डालकर अपनी मुठ्ठी में दाने भर लिए और प्रेत से पूछा – “बताओ, मेरे हाथ में कितने दाने हैं?” यह सुनते ही प्रेत विलुप्त हो गया और फिर कभी नहीं आया.
इस कहानी की सत्यता यह है कि असल में कोई प्रेत नहीं था. पत्नी से किये वादे को तोड़ देने का अपराधबोध उस व्यक्ति को भीतर ही भीतर सालता रहा और उसके मन की भावनाएं और भय बाहरी विश्व में प्रक्षेपित होने लगे. यह बहुत कुछ वैसा ही है जैसे स्वप्न में होता है. जैसे कटे हुए हाथ की मौजूदगी का अहसास करानेवाला ‘फैंटम लिम्ब’ आदमी को दुःख दर्द देता है उसी तरह मनुष्य का मन उसके कर्मों और कमजोरियों को विविध रूपों में ढालने में सक्षम हैं जिनमें से कई अबूझ होते हैं.
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मनुष्य का मन उसके कर्मों और कमजोरियों को विविध रूपों में ढालने में सक्षम हैं जिनमें से कई अबूझ होते हैं.
बेहद रोचक कहानी
regards
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अरे यार बेहतरीन पोस्ट है
क्लाइमेक्स और अंत तो शानदार है भाई … वाह … वाह
टाईमपास प्रश्न
पर एक बात है : “फीमेल प्रेत” है … और वाक्य के एन्ड में “धमकी देता रहा” ??
@लेकिन मृत पत्नी उसकी बेवफाई को स्वीकार नहीं कर सकी और उसका प्रेत बार-बार आकर उसकी ज़िंदगी को बर्बाद कर देने की “धमकी देता रहा”
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गौरव भाई, हिंदी में ‘प्रेत’ शब्द के लिए बहुधा पुल्लिंग का ही प्रयोग किया है. मैंने ‘प्रेत बोली’ या ‘प्रेत आई’ कभी नहीं सुना या पढ़ा. यदि प्रेत के स्थान पर ‘आत्मा’ होता तो कुछ और कहा जा सकता था.
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@मैंने ‘प्रेत बोली’ या ‘प्रेत आई’ कभी नहीं सुना या पढ़ा
हा हा हा मैंने भी..
पर “प्रेतात्मा” शब्द कैसा रहेगा ?? 🙂
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या भूत:)
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:))
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ha ha ha
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चुड़ैल शब्द प्रयुक्त किया जा सकता पर आजकल लिंग-मुक्त शब्द उपयोग हो रहे हैं, यथा चेयरपर्सन/ अध्यक्ष, एक्टर, आदि
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निशांत जी ,सच तो यह है की मानव मस्तिस्क ही सभी प्रकार के भूतो का अड्डा हैऔर यह भी हकीकत है की मस्तिस्क सबसे बडा चिकित्सक भी है .वर्तमान लघुकथा कथा में जेसा की महात्मा जी ने सुझाया भूत उस आदमी द्वारा पत्नी से किये वादे को तोड़ देने का अपराधबोध ही था .आम निजी जीवन में भी देखा जा सकता है, किस प्रकार किसी अपराधबोध से ग्रसित लोग भिन्न भिन्न दुर्वय्सनो को सहारे जीवन का नाश कर रहे हैं.यहाँ तक की आत्महत्या तक कर बैठते हैं. जबकि जीवन तो नदी सामान चलते रहने की आसान प्रक्रया है जो आप ही कालसमुद्र में लीन हो जाती है.
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आपकी कथाएं चिंतन का खुराक हुआ करती हैं…
आपने जो कहा उससे शत प्रतिशत सहमति है..परन्तु अन्न के दाने गिनने वाली बात ठीक ठाक समझ नहीं आई..
अन्न के दाने गिनने के नाम पर उसका अपराधबोध समाप्त कैसे हो गया ???
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रंजना जी, अन्न के दाने गिनना कथाकार की एक डिवाइस है. प्रेत द्वारा अन्न के दाने नहीं गिन पाने पर आदमी का अपराधबोध समाप्त नहीं हुआ बल्कि उसे यह अहसास हो गया कि वह प्रेत केवल आभासी है क्योंकि वह प्रेतों द्वारा किये जा सकने वाले साधारण कार्य को करके नहीं दिखा सका.
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अच्छी कथा है .
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बहुत सुन्दर. सब कुछ apne andar की baat hi hoti है.
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यह कथा(विदाऊट लास्ट पैरा) पहले पढ़ी हुई है, सहमत हैं आपके लास्ट पैरा से भी।
अधिकतर मामलों में मन से ही संबंध है ऐसी बातों का, चाहें तो अपराधबोध कह सकते हैं।
अच्छी प्रस्तुति लगी।
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चर्चा मंच-२८८ पर आपकी पोस्ट शोभायमान है जी..
http://charchamanch.blogspot.com/2010/09/blog-post_25.html
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मनुष्य का मन उसके कर्मों और कमजोरियों को विविध रूपों में ढालने में सक्षम हैं जिनमें से कई अबूझ होते हैं.
-सच कहा..बढ़िया.
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हमारे विचार ही हमें धकियाते रहते हैं, रह रह कर। न कर पाने का भार ही प्रेत बन चढ़ा रहता है मानसिकता में। बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
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bahoot hi badiya katha…
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Good Story
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अपराध बोध कई बार इस तरह की अनुभूतियाँ देता है …
अच्छी कहानी …!
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अच्छी कथा है .
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रोचक कहानी है और कथित प्रेतों से मुक्ति का उपाय भी बताया आपने :))
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अच्छी कहानी है। इंसान के अंतरमन की झलक दिखाती है।
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निशांत जी बहुत ही अच्छी कहानी है , मैं अक्सर लाभांवित होता हूं .. धन्यवाद.. प्रेरक लघु कथा है।
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अब स्पष्ट हुआ….
बहुत बहुत आभार…
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Hello Nishant ji
Your story is very inspireation. i like your story. we are very thankful to leave this story.
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बहुत ही अच्छा लगा .यह कहानी हमारे अंदर के डर को सामने लाती है .
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kahani achachhi hai…. Aur kahani ka ant aur bhi sundar.
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Mujhe hindizen site bahut achchhi lagi. Esme jo prerak lekh ,kahania hai vah har us aadmi k jiwan ko sahi marg me la sakta h jo sahi marg se bhatag gaya hai. Esme jo prerak lekh hai vah har varg ka k manushya k liye bahut upyogi hai- sunil patel
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