नदी के तट पर गुरुदेव ध्यानसाधना में लीन थे. उनका एक शिष्य उनके पास आया. उसने गुरु के प्रति भक्ति और समर्पण की भावना के वशीभूत होकर दक्षिणा के रूप में उनके चरणों के पास दो बहुत बड़े-बड़े मोती रख दिए.
गुरु ने अपने नेत्र खोले. उन्होंने एक मोती उठाया, लेकिन वह मोती उनके उनकी उँगलियों से छूटकर नदी में गिर गया.
यह देखते ही शिष्य ने नदी में छलांग लगा दी. सुबह से शाम तक नदी में दसियों गोते लगा देने के बाद भी उसे वह मोती नहीं मिला. अंत में निराश होकर उसने गुरु को उनके ध्यान से जगाकर पूछा – “आपने तो देखा था कि मोती कहाँ गिरा था! आप मुझे वह जगह बता दें तो मैं उसे ढूंढकर वापस लाकर आपको दे दूँगा!”
गुरु ने दूसरा मोती उठाया और उसे नदी में फेंकते हुए बोले – “वहां!”
Photo by Andrew McElroy on Unsplash
सुन्दर प्रेरक कथा
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moh maya rhit saint …..
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jab pardha peheli baar samjha na sak….fir jab samjha tou kuch bhi na keh saka…
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श्रद्धा और भक्ति हीं गुरु के लिए वास्तविक दक्षिणा है जो किसी भी धातु या द्रव्य से अधिक मूल्यवान है।
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